- पृथक्करण का सिद्धांत: (Separation of Powers):- भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो राज्य की शक्तियों को तीन स्वतंत्र शाखाओं में विभाजित करता है:
(i)विधायिका (Legislature): यह कानून बनाने वाली शाखा है। इसमें संसद (लोक सभा और राज्य सभा) और राज्य विधानसभाएं शामिल हैं।
(ii) कार्यपालिका (Executive): यह कानूनों को लागू करने वाली शाखा है। इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल और सरकारी अधिकारी शामिल हैं।
(iii) न्यायपालिका (Judiciary): यह कानूनों की व्याख्या करने और विवादों का निपटान करने वाली शाखा है। इसमें सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयें और अधीनस्थ न्यायालयें शामिल हैं।
इस सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य:
- किसी भी एक अंग को अत्यधिक शक्तिशाली होने से रोकना और
- सत्ता का दुरुपयोग रोकना है।
पृथक्करण के तीन मुख्य पहलू हैं:
(i) शक्तियों का विभाजन: जैसा कि ऊपर बताया गया है, राज्य की शक्तियों को तीन अलग-अलग शाखाओं में विभाजित किया गया है।
(ii) शक्तियों का संतुलन: प्रत्येक शाखा के पास दूसरी शाखाओं को नियंत्रित करने और उन पर रोक लगाने की शक्तियां होती हैं।
(iii) शक्तियों की पारस्परिक निर्भरता: कोई भी शाखा दूसरे दो के बिना प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर सकती है।
पृथक्करण का सिद्धांत भारत में कैसे लागू होता है:
- संविधान में: अनुच्छेद 50, 76, 124 और 217 शक्तियों के पृथक्करण से संबंधित हैं।
- न्यायिक पुनरावलोकन: न्यायपालिका के पास यह शक्ति है कि वह यह तय करे कि कानून संविधान के अनुरूप हैं या नहीं।
- अन्य संवैधानिक प्रावधान: जैसे कि विधायिका के विशेषाधिकार, कार्यपालिका की जवाबदेही और न्यायिक स्वतंत्रता, पृथक्करण के सिद्धांत को मजबूत करते हैं।
2. ग्रहण का सिद्धांत (Doctrine of Eclipse):-
भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो न्यायपालिका को कानूनों की व्याख्या करने और उनकी वैधता पर निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है। यह सिद्धांत अनुच्छेद 13 पर आधारित है, जो मौलिक अधिकारों को संविधान के तहत लागू करने योग्य बनाता है।
ग्रहण का सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य:
- यह सुनिश्चित करना है कि कानून संविधान के अनुरूप हों और
- नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो।
यह सिद्धांत कैसे काम करता है:
- यदि कोई कानून संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो नागरिक उस कानून को चुनौती देने के लिए न्यायालय में जा सकते हैं।
- न्यायालय उस कानून की व्याख्या करेगा और यह तय करेगा कि वह संविधान के अनुरूप है या नहीं।
- यदि न्यायालय यह तय करता है कि कानून संविधान के अनुरूप नहीं है, तो उसे अमान्य घोषित कर दिया जाएगा।
ग्रहण का सिद्धांत का महत्व:
- यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है: यह सुनिश्चित करता है कि सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कानून नहीं बना सकती है।
- यह कानून के शासन को बनाए रखता है: यह सुनिश्चित करता है कि कानून सभी पर समान रूप से लागू होते हैं और कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।
- यह न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है: यह न्यायपालिका को निष्पक्ष और निष्पक्ष निर्णय लेने की स्वतंत्रता देता है।
उदाहरण:
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह तय किया कि संसद संविधान के बुनियादी ढांचे को नहीं बदल सकती है। यह ग्रहण के सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है क्योंकि इसने न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने और उसकी रक्षा करने की शक्ति प्रदान की।
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