- भारतीय संविधान ने भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों को क्रमशः अनुच्छेद 72 और 161 द्वारा शक्तियां प्रदान की हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति के पास अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति की सज़ा को माफ करने, राहत देने, छूट देने या निलंबित करने, हटाने या कम करने की शक्ति होगी, जहाँ दंड मौत की सज़ा के रूप में है।
- भारत में क्षमादान की शक्ति संवैधानिक योजना का एक हिस्सा है।
राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तिय:-
1.क्षमा (Pardon):-
इसमें राष्ट्रपति अपनी क्षमा शक्ति का उपयोग कर सजा और बंदीकरण दोनों को हटा सकते हैं तथा दोषी की सजा को दंड या दंडादेशों से पूरी तरह से मुक्त कर सकते हैं।
2. विराम (Respite):-
राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति द्वारा किसी दोषी को प्राप्त मूल सजा के प्रावधान को विशेष परिस्थितियों में बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए, किसी विशेष तथ्य के कारण किसी दोषी की शारीरिक अक्षमता या अगर किसी गर्भवती महिला को सजा मिली है तो उसकी सजा अवधि को परिवर्तित कर सकते हैं।
3. दण्डविराम (Reprieve):-
अपनी इस क्षमा शक्ति के द्वारा राष्ट्रपति अस्थायी समय के लिए किसी सजा (विशेषकर मृत्युदंड) के निष्पादन पर रोक लगा सकते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य दोषी को राष्ट्रपति से क्षमा मांगने या उसे कम करने के लिए समय देना है।
4. परिहार (Remission):-
जब राष्ट्रपति अपनी इस क्षमा शक्ति का उपयोग करते हैं तो इसमें सजा की अवधि को कम करने का निर्णय ले सकते हैं। हालांकि इसमें सजा का चरित्र वही रहता है। उदाहरण के लिए, दो साल के कठोर कारावास की सजा को एक वर्ष के कठोर कारावास में बदला जा सकता है, लेकिन कारावास कठोर ही रहता है। इसमें सिर्फ दंड की अवधि को कम किया जाता है।
5. लघुकरण (Commutation):- राष्ट्रपति इस क्षमा शक्ति का उपयोग कर के दंड के स्वरुप में बदलाव कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी अपराधी को कोर्ट द्वारा मृत्युदंड की सजा दी गई है तो उसे आजीवन कारावास में बदला जा सकता है। वहीं, अगर अपराधी को कठोर कारावास मिला है तो उसे साधारण कारावास में बदला जा सकता है।
- क्षमादान अधिकार के तौर पर नहीं मांगा जा सकता।
- क्षमादान से न केवल सज़ा को माफ हो जाती है बल्कि, कानून के अनुसार अपराधी को उसी स्थिति में पहुँचा देती है जैसे कि उसने कभी अपराध किया ही न हो।
- क्षमादान शक्ति का प्रयोग अपराध होने के बाद किसी भी समय किया जा सकता है।
- यह पूर्णतः एक कार्यकारी कार्य है।
राष्ट्रपति अपनी क्षमादान शक्तियों का प्रयोग इन परिस्थितियों में कर सकते हैं –
- जब राष्ट्रपति किसी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ सजा के मामले पर विचार कर रहे हो जिसने किसी केंद्रीय कानून के खिलाफ अपराध किया हो।
- जब राष्ट्रपति सजा के एक मामले पर विचार कर रहे हों अपराधी या दोषी को कोर्ट-मार्शल या सैन्य अदालत द्वारा कोई सजा दी गई हो।
- जब कोर्ट द्वारा किसी अपराधी को मौत की सजा दी गई हो तब भी राष्ट्रपति अपनी क्षमा दान की शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं।
राष्ट्रपति की क्षमादान करने की शक्ति की सीमाएँ:
- राष्ट्रपति सरकार से स्वतंत्र होकर अपनी क्षमादान की शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।
- कई मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया है कि राष्ट्रपति को दया याचिका पर फैसला करते समय मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है।
- इन मामलों में वर्ष 1980 का मारू राम बनाम भारत संघ और वर्ष 1994 का धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य शामिल हैं।
क्षमादान करने की प्रक्रिया:
- राष्ट्रपति, कैबिनेट की सलाह के लिये दया याचिका को गृह मंत्रालय को अग्रेषित करता है।
- मंत्रालय इसे संबंधित राज्य सरकार को अग्रेषित करता है; उसके जवाब के आधार पर यह मंत्रिपरिषद की ओर से अपनी सलाह तैयार करता है।
पुनर्विचार:
- हालाँकि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल से सलाह लेने के लिये बाध्य है, अनुच्छेद 74 (1) उसे एक बार पुनर्विचार के लिये इसे वापस करने का अधिकार देता है। यदि मंत्रिपरिषद किसी परिवर्तन के विरुद्ध निर्णय लेती है, तो राष्ट्रपति के पास उसे स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमा शक्तियों में अंतर –
- भारत के संविधान में राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल दोनों को ही क्षमा करने की शक्तियां प्राप्त हैं, लेकिन इन दोनों की क्षमा शक्तियों में कुछ अंतर होता है।
- संविधान के अनुच्छेद 72 अनुसार भारत के राष्ट्रपति की क्षमा शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को दी गई क्षमा शक्ति से अधिक है, जिनमें दो प्रमुख अंतर है –
- कोर्ट मार्शल में क्षमा करने की शक्ति – कोर्ट मार्शल के तहत सजा प्राप्त व्यक्ति की सजा को माफ करने की शक्ति सिर्फ राष्ट्रपति के पास होती है। अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल के पास ऐसी शक्ति नहीं होती है।
- मृत्युदंड में क्षमा – भारत के राष्ट्रपति मृत्युदंड की सजा के मामले में भी क्षमादान दे सकते हैं, लेकिन राज्यपाल के पास मृत्युदंड के मामलों में क्षमा करने की शक्ति नहीं होती है।
क्षमादान देने का उद्देश्य:-
- क्षमादान न्याय की विफलता या संदिग्ध दोषसिद्धि के मामलों में किसी निर्दोष व्यक्ति को दंडित होने से बचाने में काफी हद तक सहायक हो सकता है।
- क्षमा किये जाने की आशा ही अपराधी को जेल में अच्छा आचरण करने के लिए प्रोत्साहित करती है और इस प्रकार, जेल अनुशासन के मुद्दे को सुलझाने में काफी मदद करती है।
- क्षमादान शक्ति का उद्देश्य संभावित न्यायिक त्रुटियों को सुधारना है, क्योंकि न्यायिक प्रशासन की कोई भी मानवीय प्रणाली अपूर्णताओं से मुक्त नहीं हो सकती।
- यदि राष्ट्रपति दंड का स्वरूप अधिक कठोर समझता है तो उसका बचाव करने के लिये।
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