लोकसेवा आयोग की शक्तियां एवं कार्य:-
संविधान के अनुच्छेद 220 के अनुसार लोकसेवा आयोग के निम्नलिखित कार्य निर्धारित किये गये हैं
(1) नियुक्ति सम्बन्धी कार्य (प्रतियोगिता परीक्षाओं की व्यवस्था ):-
- संघ लोक सेवा आयोग केंद्र सरकार के लिए कार्मिकों की नियुक्ति संबंधी परीक्षा आयोजित कराता है।
- विभिन्न विभागों में रिक्त हुए स्थानों की सूचना शासन द्वारा लोकसेवा आयोग की दी जाती है।
- आयोग इन स्थानों की पूर्ति के लिए लिखित या मौखिक अथवा दोनों प्रकार की परीक्षाएं आयोजित करता है।
- आयोग परीक्षा के नियम तथा कार्यक्रम व प्रार्थी की योग्यता के विषय में कुछ बातें निर्धारित करके उनका प्रकाशन समाचार-पत्रों में करता है।
- वह परीक्षाओं में भाग लेने के लिए सम्पूर्ण भारत या कुछ परिस्थितियों में किन्हीं विशेष क्षेत्रों के निवासियों से प्रार्थना-पत्र आमन्त्रित करता है।
- इन परीक्षाओं के आधार पर उनके द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति हेतु सुयोग्य व्यक्तियों का चयन किया जाता है।
- यदि किसी राज्य का राज्यपाल संघ लोक सेवा आयोग से संबंधित राज्य के लिए लोक सेवा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए कहे, तो संघ लोक सेवा आयोग इसका प्रबंध करता है।
- संघ लोक सेवा आयोग परीक्षाएं भारत में आयोजित कुछ प्रमुख संघ लोक सेवा आयोग परीक्षाएँ निम्नलिखित हैं:
- भारतीय सांख्यिकी सेवा परीक्षा (ISS)
- भारतीय वन सेवा परीक्षा (IFS)
- IAS, IPS, IRS आदि पदों की भर्ती के लिए भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (ICSE)।
- संयुक्त चिकित्सा सेवा परीक्षा
- संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा (CDS)
- यूपीएससी EPFO और अन्य परीक्षाओं के लिए संघ लोक सेवा आयोग भर्ती परीक्षा
- भारतीय इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा
- संयुक्त भू-वैज्ञानिक और भूविज्ञानी परीक्षा
- राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नौसेना अकादमी परीक्षा (NDA)
- भारतीय आर्थिक सेवा परीक्षा (IES)
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (ACS) परीक्षा
(2) राज्य सरकारों की सहायता करना:-
- दो या दो से अधिक राज्य ‘संघ लोक सेवा आयोग’ से किसी ऐसी सेवा के लिए अभ्यर्थियों के चयन करने की बात कहे, जिसके लिए विशेष अर्हता की आवश्यकता होती है, तो संघ लोक सेवा आयोग इस हेतु संयुक्त भर्ती परीक्षा की रूपरेखा का निर्माण करता है तथा उसके परिचालन में राज्यों की सहायता करता है।
(3) परामर्श सम्बन्धी कार्य:-
- लोक सेवा आयोग प्रमुख रूप से एक परामर्शदात्री समिति है जिसका कार्य सेवाओं के सम्बन्ध में शासन को परामर्श प्रदान करना है।
- यद्यपि सरकार आयोग के परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है, किन्तु सामान्यतः आयोग की सिफारिशों तथा उसके परामर्श को स्वीकार कर ही लिया जाता है।
- संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को निम्नांकित विषयों के सम्बन्ध में संघीय लोकसेवा आयोग से परामर्श लेना होता है।
- असैनिक सेवाओं तथा असैनिक पदों पर भर्ती की प्रणाली के सम्बन्ध में परामर्श।
- यह आयोग किसी सरकारी कार्मिक के विरुद्ध चलने वाली विधिक कार्रवाइयों के संबंध में भी सरकार को सलाह देता है।
- असैनिक सेवाओं तथा पदों पर नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानान्तरण, आदि के सम्बन्ध में अपनाये जाने वाले सिद्धान्तों पर परामर्श।
- असैनिक सेवाओं के किसी कर्मचारी द्वारा सरकारी कार्य को करते हुए शारीरिक चोट या धन की क्षतिपूर्ति के लिए किये गये दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
- संघ सरकार के किसी कर्मचारी द्वारा पेन्शन या सरकारी मुकदमे में अपनी रक्षा में व्यय किये गये धन की क्षतिपूर्ति के दावे के सम्बन्ध में परामर्श।
- यह आयोग राष्ट्रपति द्वारा माँगे जाने पर अन्य मामलों में भी सलाह देता है।
- किसी लोक सेवक की निंदा, उसकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति, उसे सेवा से हटाना या बर्खास्त करना, उसकी रैंक में कमी करना या पदावनति करना, उसकी प्रोन्नति रोकना, उसकी लापरवाही के कारण सरकार को हुई धन हानि की आंशिक या पूर्ण प्राप्ति आदि के विषय में भी संघ लोक सेवा आयोग सरकार को परामर्श देता है।
- यह आयोग संघ सरकार में प्रत्यक्षतः अथवा पदोन्नति के माध्यम से होने वाली नियुक्तियों के संबंध में भी सरकार को सलाह देता है।
राष्ट्रपति ऐसे भी नियम बना सकता है कि सरकारी नौकरियों से सम्बन्धित कुछ निश्चित विषयों के बारे में संघ लोकसेवा आयोग का परामर्श लेना आवश्यक न हो। परन्तु ऐसे नियमों को लागू करने के पूर्व उन्हें संसद के सम्मुख प्रस्तुत करना आवश्यक है। संसद उन नियमों में परिवर्तन कर सकती अथवा उन्हें रद्द कर सकती है। अनुसूचित जातियों जनजातियों एवं पिछड़ी हुई जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण और संरक्षण के सम्बन्ध में भी आयोग का परामर्श लेना आवश्यक नहीं होता है।
(4) प्रतिवेदन सम्बन्धी कार्य:-
- संघ लोकसेवा आयोग राष्ट्रपति को तथा राज्य लोकसेवा आयोग अपने राज्य के राज्यपाल को प्रतिवर्ष अपने कार्यों के लेखे-जोखे संबंधी प्रतिवेदन देते हैं। उनका विवरण या प्रतिवेदन(Statement or Report) प्राप्त होने पर राष्ट्रपति उक्त प्रतिवेदन के साथ अपनी ओर से एक ज्ञापन भी जोड़ता है, जिसमें उन मामलों का पूरा विवरण रहता है जिन पर राष्ट्रपति में संघ लोकसेवा आयोग की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया।
- इस ज्ञापन में उसके द्वारा आयोग के परामर्श को स्वीकार न करने के कारणों पर प्रकाश डाला जाता है।
- इस प्रबन्ध से संसद को सरकारी कार्यवाहियों की जांच के सम्बन्ध में निर्णायक भूमिका प्रदान की गयी है।
- आयोग अपने प्रतिवेदन में लोकसेवा आयोग को सुदृढ़ करने के सुझाव भी दे सकता है।
- संघ लोक सेवा आयोग प्रतिवर्ष अपने कार्यों के लेखे-जोखे संबंधी प्रतिवेदन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है।
केंद्र सरकार द्वारा संघ लोक सेवा आयोग से माँगा गया परामर्श सिर्फ सलाहकारी प्रकृति का होता है। यह पूर्णतः केंद्र सरकार के विवेक पर निर्भर करता है कि वह संघ लोक सेवा आयोग द्वारा दिए गए परामर्श को माने अथवा नहीं। सरकार यदि चाहे तो संघ लोक सेवा आयोग द्वारा दिए गए परागण परामर्श को शब्दशः स्वीकार कर सकती है अथवा उसे अंशतः स्वीकार कर सकती है अथवा उसे पूर्णतः खारिज़ कर सकती है।
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