संविधान के भाग 1 के अंतर्गत अनुच्छेद 1 से 4 में संघ और उसके क्षेत्र का वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 में संसद को राज्यों के पुनर्गठन की शक्ति प्रदान की गई है। इसका अर्थ है कि संसद विधायी प्रक्रिया द्वारा नए राज्यों का निर्माण कर सकती है, मौजूदा राज्यों की सीमाओं को बदल सकती है या राज्यों को मिलाकर या विभाजित कर सकती है। भारतीय सविधान कीअनुच्छेद 3 संसद को अधिकृत करता है:
- किसी राज्य में से उसका राज्य क्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी;
- किसी राज्य के क्षेत्र को बढ़ा सकेगी।
- किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी।
- किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी।
- किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी।
संसद निम्नलिखित परिस्थितियों में राज्यों का पुनर्गठन कर सकती है:
- भाषाई आधार: यदि लोग एक ही भाषा बोलते हैं और एक ही संस्कृति साझा करते हैं, तो संसद उनके लिए एक अलग राज्य बना सकती है।
- प्रशासनिक सुविधा: यदि किसी राज्य का प्रशासन करना बहुत बड़ा या मुश्किल है, तो संसद इसे छोटे राज्यों में विभाजित कर सकती है।
- आर्थिक विकास: यदि किसी क्षेत्र का आर्थिक विकास बेहतर करने के लिए राज्यों का पुनर्गठन करना आवश्यक है, तो संसद ऐसा कर सकती है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा: यदि राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में राज्यों का पुनर्गठन करना आवश्यक है, तो संसद ऐसा कर सकती है।
राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में शामिल है:
- राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना: केंद्र सरकार एक राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना करती है जो राज्यों के पुनर्गठन के संबंध में सिफारिशें करता है।
- आयोग की रिपोर्ट: आयोग अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को प्रस्तुत करता है।
- जनता की राय: केंद्र सरकार राज्यों के पुनर्गठन के प्रस्ताव पर जनता की राय मांगती है।
- संसद में विधेयक: केंद्र सरकार संसद में एक विधेयक पेश करती है जिसमें राज्यों के पुनर्गठन का प्रस्ताव होता है।
- संसद द्वारा पारित: यदि संसद दोनों सदनों द्वारा विधेयक को पारित करती है, तो यह कानून बन जाता है।
राज्य पुनर्गठन आयोग – 1953 की मुख्य सिफारिशें
- केवल भाषा तथा संस्कृति के आधार पर राज्यों का पुनगर्ठन नहीं किया जाना चाहिए।
- राज्यों का पुनर्गठन करते समय राष्ट्रीय सुरक्षा, वित्तीय तथा प्रशासनिक आवश्यकता तथा पंचवर्षीय योजना को सफल बनाने की क्षमता को भी ध्यान में रखना चाहिए।
- ए.बी. सी. तथा डी. राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करके भारतीय संघ को 16 राज्यों तथा 3 संघ राज्य क्षेत्रों में विभाजित करना चाहिए।
- केंद्र सरकार ने आयोग की सिफारिशों को कुछ संशोधन के साथ स्वीकार करते हुए राज्रू पुनर्गठन अधिनिय, 1956 संसद से पारित करवाया। इस अधिनियम के प्रवर्तन के कारण भारत में 14 राज्यों (आन्ध्र प्रदेश, असम, बम्बई, बिहार, जम्मू-कश्मीर, केरल, मध्य प्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान तथा पश्चिम बंगाल) और 5 संघ राज्य क्षेत्रों (दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, अण्डमान निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप, अमीन द्वीप तथा मिनीकाय द्वीप) का गठन किया गया।
- 1956 में फ्रांस की सरकार के साथ हस्तान्तरण सन्धि पर भारत द्वारा हस्ताक्षर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने चंद्रनगर, माहे, यना और कारकल, जो फ्रांसीसी उपनिवेश थे, को अर्जित कर लिया और इन सभी को मिलाकर छठवें संघ राज्य क्षेत्र “पाण्डिचेरी” का गठन किया गया।
- गोवा मुक्ति संग्राम की उग्रता के कारण भारत सरकार ने 1961 में सैनिक हस्तक्षेप करके गोवा, दमन तथा दीव को जीतकर भारत में मिला लिया और इसे सातवाँ संघ राज्य क्षेत्र बनाया गया।
- बम्बई प्रांत दो भाषा (मराठी तथा गुजराती) भाषियों के पारस्परिक संघर्ष के कारण बम्बई को 1960 में विभाजित करके 15वें राज्य गुजरात का गठन किया गया।
- नागा आन्दोलन के कारण असम को विभाजित करके 1962 में नागालैण्ड को अलग राज्य बनाया गया।
- 1966 में पंजाब को विभाजित करके पंजाब को पंजाबी भाषी प्रांत बना दियि गया तथा हिन्दी भाषा प्रांत को हरियाणा राज्रू बनाया गया।
- 1969 में असम को एक बार फिर विभाजित करके मेघालय को राज्य बनाया गया।
- 1971 में हिमाचल प्रदेश तथा मेघालय को राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
- 1974 में सिक्किम को पहले सहयोगी राज्रू का दर्जा प्रदान किया गया और 1975 में उसे भारत का राज्य बना दिया गया।
- 1986 में अरूणांचल प्रदेश तथा मिजोरम को पूर्ण राज्य तथा 1987 में गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
- वर्तमान में भारत के राज्यों की संख्या 28 और संघ राज्य क्षेत्रों की संख्या 8 हैं इन्हें संविधान की प्रथम अनुसूची में शामिल किया गया है।
दूसरी तरफ 1969 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि भारत और अन्य देश के बीच सीमा निर्धारण विवाद को हल करने के लिए संवैधानिक संशोधन की जरूरत नहीं है। यह कार्य कार्यपालिका द्वारा किया जा सकता है। इसमें भारतीय क्षेत्र को विदेश को सौंपना शामिल नहीं है।
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