- लोक अदालतों को विभिन्न न्यायिक सेवा प्राधिकरण द्वारा आयोजित करवाया जाता है। यानी कि ये विधि मान्य तो हो गया था लेकिन स्थायी नहीं हुआ था।
- इसीलिए ‘कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987‘ को 2012 में संशोधित कर सार्वजनिक उपयोगी सेवाओं से जुड़े मामलों के लिए स्थायी लोक अदालतों का प्रावधान किया गया।
स्थायी लोक अदालत की विशेषताएँ:-
लोक अदालत के मुक़ाबले स्थायी लोक अदालत में जो प्रमुख बदलाव लाये गए वो कुछ इस प्रकार है –
1. स्थायी लोक अदालत का अध्यक्ष वो होगा जो कि जिला न्यायाधीश या अतिरिक्त जिला न्यायाधीश रहा हो अथवा जो जिला न्यायाधीश से भी उच्चतर श्रेणी की न्यायिक सेवा में रहा हो। इसके साथ ही दो अन्य व्यक्ति होंगे जिन्हे सार्वजनिक सेवाओं में पर्याप्त अनुभव हो।
2. स्थायी लोक अदालत के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत अधिक जनोपयोगी सेवाएँ होंगी, जैसे, यात्री अथवा माल परिवहन, टेलीग्राफ या टेलीफोन सेवाएँ, किसी संस्थान द्वारा जनता को बिजली, प्रकाश या पानी की आपूर्ति, अस्पतालों में सेवाएँ, बीमा सेवाएँ आदि।
3. स्थायी लोक अदालत का गैर-समाधेय (Non Compoundable) मामलों में कोई कोई क्षेत्राधिकार नहीं होगा।
4. आवेदन स्थायी लोक अदालत को प्रस्तुत करने के बाद उस आवेदन का कोई भी पक्ष उसी वाद में किसी न्यायालय मे समाधान के लिए नहीं जाएगा।
5. जब कभी स्थायी अदालत को ऐसा प्रतीत हो कि किसी वाद में समाधान के तत्व मौदूद है जो संबन्धित पक्षों को स्वीकार्य हो सकते है तब वह संभावित समाधान को एक सूत्र दे सकती है और उसे पक्षों के समक्ष रख सकती है ताकि वे भी उसे देख ले समझ ले।
6. यदि इसके बाद वादी (complainant) एक समाधान तक पहुंच जाते है तो लोक अदालत इस आशय का फैसला सुना सकती है। यदि वादी समझौते के लिए तैयार नहीं हो पाते तब लोक अदालत बाद के गुणदोष के आधार पर फैसला सुना सकती है।
7. स्थायी लोक अदालत द्वारा दिया गया प्रत्येक न्याय निर्णय अंतिम होगा और वादियों एवं समस्त पक्षों पर बाध्यकारी होगा। (लोक अदालत के गठन में शामिल व्यक्तियों के बहुमत के आधार पर फैसला पारित होगा)
लोक अदालत की खामी:-
- लोक अदालतों की सबसे बड़ी खामी ये है कि इसकी व्यवस्था प्रमुखत: समझौता अथवा पक्षों के बीच समाधान पर आधारित है।
- यदि दोनों पक्ष किसी समझौते या समाधान तक नहीं पहुँच पाते तब मामला या तो न्यायालय को वापस भेज दिया जाता है जहां से वह यहाँ भेजा गया था या दोनों पक्षों को सलाह दी जाती है की वे अपने विवाद को न्यायालयी प्रक्रिया द्वारा सुलझाएँ। इससे न्याय प्राप्त मे अनावश्यक देरी होती है।
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