राजभाषा अधिनियम (1963) ने राजभाषा पर एक संसदीय समिति की व्यवस्था की थी जिसका काम था कि राज्य के अधिकारिक उद्देश्यों से हिंदी भाषा के व्यवहार (प्रयोग) में हुई प्रगति की समीक्षा की जाए।
इस एक्ट के तहत उक्त समिति का गठन एक्ट को 26 जनवरी, 1965 को पारित होने के दस वर्ष बाद होना था। इस तरह 1976 में यह समिति गठित की गई। समिति में 30 संसद सदस्य हैं- 20 लोकसभा से तथा 10 राज्यसभा से। समिति के गठन और प्रकार्य से संबंधित निम्नलिखित प्रावधान निम्नलिखित हें:
- एक्ट के लागू होने की तिथि से लेकर दस वर्ष गुजर जाने के बाद एक राजभाषा समिति का गठन होगा। यह इस उद्देश्य से पेश प्रस्ताव जो संसद के किसी एक सदन में पेश होगा, जिसे राष्ट्रपति की पूर्वानुमति प्राप्त होनी और जो दोनों सदनों द्वारा पारित हो चुका होगा।
- समिति में तीस सदस्य होंगे। इनमें बीस लोकसभा के होंगे, दस राज्यसभा के। इनका चयन लोकसभा सदस्यों तथा राज्यसभा सदस्यों द्वारा एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से होगा।
- समिति का यह उत्तरदायित्व होगा कि केंद्र के प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए हिंदी के प्रयोग की दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा करें। तत्पश्चात् राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट सौंपे, जिनमें अनुशंसाएँ हों। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाएँगे ओर सभी राज्य सरकारों को प्रेषित करेंगें।
- राष्ट्रपति, रिर्पोट पर विचार के उपरांत और राज्य सरकारों के विचारों का गौर करने के बाद पूरी रिपोर्ट या उसके कुछ अंशों पर निर्देश जारी कर सकते हैं।
समिति के अध्यक्ष समिति के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। परंपरा के अनुसार, केंद्रीय गृहमंत्री समय-समय पर समिति के अध्यक्ष चुने जाते रहे हैं।
समिति का काम है कि वह अपनी रिपोर्ट अपनी अनुशंसाओं सहित राष्ट्रपति को सौंप दें। ऐसा वह केंद्र सरकार के दफ्तरों में हिंदी के प्रयोग को परखने बाद करेगी। वास्तविक स्थिति को परखने के लिए अन्य विधियों को अपनाने के अलावा समिति केंद्र सरकार के दफ्तरों का निरीक्षण करेगी जहाँ कई प्रकार की गतिविधियों द्वारा दफ्तरों को हिंदी के महत्तम प्रयोग के लिए प्रेरित किया जाए ताकि संविधान के उद्देश तथा राजभाषा अधि नियम के प्रावधान कार्यान्वित किये जा सकें।
इस उद्देश्य से समिति ने तीन उप-समितियाँ गठित कीं। तीनों उप-समितियों से निरीक्षण करवाने के लिए कई मंत्रालय/विभाग भी तीन भागों में बाँट दिये गए।
इसके अलावा कई उद्देश्यों तथा अन्य सम्बद्ध मामलों में
- राजभाषा के प्रयोग का आकलन करने के लिए यह तय किया गया कि विविध क्षेत्रों से गणमान्य, जैसे-शिक्षा, न्यायालय, स्वयंसेवी संस्थाएँ तथा मंत्रालयों/विभागों के सचिवों से मौखिक प्रमाण हासिल किए जाए।
- इस समिति द्वारा केंद्र सरकार के दफ्तरों में हिंदी के उत्तरोत्तर प्रयोग को संविधान द्वारा निर्दिष्ट राजभाषा संबंधी प्रावधानों को पृष्ठभूमि में समीक्षित किया जाए।
- इसके लिए राजभाषा अधिनियम, 1963 तथा उसमें उल्लिखित नियमों के आलोक में भी यह समीक्षा हो।
- एतद विषयक सरकारी विज्ञप्तियों/निर्देशों को संज्ञान लिया जाए। समिति के संदर्भ पद (terms of reference) व्यापक होने के चलते, यह और भी प्रासंगिक आयामों का आकलन करती है।
- ये आयाम हैं- स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में शिक्षण का माध्यम, सरकारी सेवाओं में भर्ती का तरीका, विभागीय परीक्षाओं का माध्यम आदि। राजभाषा के अनेक पक्षों के विस्तार को संज्ञान में लेते हुए और वर्तमान स्थिति को भी ध्यान में रखते हुए समिति ने जून, 1985 तथा अगस्त 1986 में हुई। अपनी बैठकों में फैसला किया कि वह राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भागों (Parts) में पेश करेगी।
- रिपोर्ट का हर भाग राजभाषा नीति के खास पक्ष से संबद्ध होगा। समिति के सचिव समिति सचिवालय के अध्यक्ष हैं। उनकी मदद के लिए अवर सचिव तथा अन्य अधिकारियों के स्तर के अधिकारी होते है। वे समिति के विभिन्न कार्यो के निष्पादन में हर संभव सहायता करते हैं। प्रशासनिक उद्देश्यों से यह कार्यालय गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के अधीन है
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