एनसीएसटी की रिपोर्ट:-
- आयोग के द्वारा राष्ट्रपति को वार्षिक या ऐसे अन्य समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है जैसा वह उचित समझे।
- आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई के बारे में बताने वाले एक ज्ञापन के साथ सभी रिपोर्टों को राष्ट्रपति द्वारा संसद के समक्ष रखी जाती हैं।
- ज्ञापन में ऐसी किसी भी सिफारिश को स्वीकार न करने के कारणों का भी उल्लेख होता है।
- राष्ट्रपति किसी राज्य सरकार से संबंधित आयोग की रिपोर्ट को संबंधित राज्यपाल को भी प्रेषित करते है।
- राज्यपाल इसे राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करते है, साथ ही आयोग की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई की व्याख्या करते हुए एक ज्ञापन भी दिया जाता है।
- ज्ञापन में ऐसी किसी भी सिफारिश को स्वीकार न करने के कारणों का भी उल्लेख होता है।
निष्कर्ष : राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) भारत के वास्तव में समावेशी समाज के निरंतर प्रयास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- अधिकारों की प्रभावी सुरक्षा, विकास पहलों को बढ़ावा देने और नीतिगत बदलावों की वकालत करके आयोग के द्वारा अनुसूचित जनजातियों को सशक्त बनाया जाता है तथा अनुसूचित जनजातियों के बेहतर न्यायसंगत भविष्य का निर्माण कर सकता है।
- जैसे-जैसे भारत समावेशी विकास और सामाजिक न्याय की ओर अग्रसर होता है, वैसे-वैसे एनसीएसटी एक महत्त्वपूर्ण संस्था बनकर उभर रहीं है।
अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए संवैधानिक प्रावधान:-
- अनुच्छेद 244(1) – असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों को छोड़कर किसी भी राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण के लिए पाँचवीं अनुसूची के प्रावधान लागू होंगे।
- अनुच्छेद 244(2) – छठी अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन पर लागू होंगे।
- अनुच्छेद 275(1) – भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक वर्ष भारत की संचित निधि से अनुदान की गारंटी देता है।
- अनुच्छेद 330 – लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण।
- अनुच्छेद 332 – राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण।
अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए वैधानिक प्रावधान:-
- भारतीय दंड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1955 – इस अधिनियम का उद्देश्य भारत में अस्पृश्यता और जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करना है।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 – इसका उद्देश्य भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अत्याचारों को रोकना है।
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विस्तार) अधिनियम, 1996 के प्रावधान – इसका उद्देश्य पंचायतों से संबंधित प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करना है, जहाँ मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय रहते हैं।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 – यह वन भूमि और संसाधनों पर अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के अधिकारों को कानूनी मान्यता प्रदान करता है।
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