- अनुच्छेद 163 में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद का प्रावधान है, जो राज्यपाल को उसके विवेकाधीन कार्यों को छोड़कर अन्य कार्यों के निष्पादन में सहायता और सलाह प्रदान करेगी।
- यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई मामला राज्यपाल के विवेक के अंतर्गत आता है या नहीं, तो राज्यपाल का निर्णय अंतिम होता है और उनके द्वारा किए गए किसी भी कार्य की वैधता पर इस आधार पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता कि उन्हें अपने विवेक से कार्य करना चाहिए था या नहीं करना चाहिए था।
- मंत्रियों द्वारा राज्यपाल को दी गई सलाह की प्रकृति के बारे में किसी भी न्यायालय द्वारा पूछताछ नहीं की जा सकती।
- यह प्रावधान राज्यपाल और मंत्रियों के बीच घनिष्ठ और गोपनीय संबंध पर जोर देता है।
- जैसा कि 1974 के शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था :-
- राज्यपाल को अपनी शक्तियों और कार्यों के प्रयोग में राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होता है, सिवाय उन क्षेत्रों को छोड़कर जहां उसे अपने विवेक से कार्य करना होता है।
- राज्यपाल को राज्य मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना या उसके विरुद्ध व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की आवश्यकता नहीं है।
- जहां कहीं भी संविधान में राज्यपाल की संतुष्टि की अपेक्षा की गई है, वहां यह संतुष्टि राज्यपाल की व्यक्तिगत संतुष्टि नहीं है, बल्कि यह राज्य मंत्रिपरिषद की संतुष्टि है।
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