संसद का पहला घंटा प्रश्नकाल का होता है। इस दौरान सदस्य प्रश्न पूछते हैं एवं मंत्री उत्तर देते हैं। प्रश्नकाल का उल्लेख प्रक्रिया नियमों में नहीं है। प्रश्न तीन प्रकार के होते हैं :- 1.तारांकित प्रश्न, 2.अतारांकित प्रश्न तथा 3.अल्प सूचना के प्रश्न ।
- तारांकित प्रश्न – तारांकित प्रश्न लोकसभा और राज्यसभा में पूछे जाने वाले मौखिक प्रश्न होते हैं। इन प्रश्नों का उत्तर संबंधित मंत्री सदन में मौखिक रूप से देते हैं।तथा इसके बाद पूरक प्रश्न पूछे जाते हैं।
विशेषताएं:
- सूचना: तारांकित प्रश्नों के लिए 10 दिन की पूर्व सूचना आवश्यक है।
- चयन: सभी तारांकित प्रश्नों का चयन स्पीकर (लोकसभा) या सभापति (राज्यसभा) द्वारा लॉटरी प्रणाली के माध्यम से किया जाता है।
- उत्तर: संबंधित मंत्री सदन में प्रश्न का मौखिक उत्तर देते हैं।
- अनुपूरक प्रश्न: प्रश्नकर्ता और अन्य सदस्य मंत्री से अनुपूरक प्रश्न पूछ सकते हैं।
- समय सीमा: मंत्री को प्रश्न का उत्तर देने के लिए 5 मिनट का समय दिया जाता है।
2.अतारांकित प्रश्न – अतारांकित प्रश्न लोकसभा और राज्यसभा में पूछे जाने वाले लिखित प्रश्न होते हैं। इन प्रश्नों का उत्तर संबंधित मंत्री सदन में लिखित रूप से देते हैं।और इसके बाद पूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते।
विशेषताएं:
- सूचना: अतारांकित प्रश्नों के लिए 15 दिन की पूर्व सूचना आवश्यक है।
- उत्तर: संबंधित मंत्री सदन में प्रश्न का लिखित उत्तर देते हैं।
- प्रकाशन: उत्तर सदन की कार्यवाही में प्रकाशित होते हैं।
- अनुपूरक प्रश्न: अतारांकित प्रश्नों के लिए अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं।
3.अल्प सूचना के प्रश्न – अल्प सूचना प्रश्न वह होता है जिसे दस दिन से कम समय पहले पूछा जाता है। इसका उत्तर मौखिक रूप से दिया जाता है।
शून्यकाल :- शून्यकाल लोकसभा और राज्यसभा में सदस्यों को तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामलों को उठाने का अवसर प्रदान करने के लिए आरक्षित समय होता है। शून्यकाल का समय प्रश्नकाल के तुरंत बाद अर्थात दोपहर 12 बजे से 1 बजे तक होता है। इसमें संसद सदस्य बिना पूर्व सूचना के प्रश्न उठा सकते हैं। संसदीय प्रक्रिया में शून्यकाल भारत की दें है और यह 1962 से जारी है।
विशेषताएं:
- समय: शून्यकाल सदन की कार्यवाही की शुरुआत में 15 मिनट के लिए होता है।
- सूचना: पूर्व सूचना की आवश्यकता नहीं होती है।
- विषय: किसी भी विषय पर बात की जा सकती है।
- नियम: शून्यकाल में नियमों का कड़ाई से पालन नहीं किया जाता है।
- भाषण: सदस्यों को संक्षिप्त और स्पष्ट भाषण देना होता है।
- अध्यक्ष: स्पीकर (लोकसभा) या सभापति (राज्यसभा) शून्यकाल की कार्यवाही का निर्देशन करते हैं।
प्रस्ताव (Motions)
- सामान्य शब्दों में कहा जाए तो प्रस्ताव सदन के समक्ष लाया गया एक सुझाव होता है जिसके माध्यम से सदन के निर्णय एवं राय को व्यक्त किया जाता है।
- प्रस्ताव मंत्री या कोई भी निजी सदस्य रख सकता है।
- पीठासीन अधिकारी की सहमति के बिना, किसी भी विषय पर चर्चा नहीं की जा सकती है। सदन ऐसे प्रस्तावों को स्वीकार या अस्वीकार करके उन मुद्दों पर अपने निर्णय या राय व्यक्त करता है।
- सदस्यों द्वारा रखे गए प्रस्तावों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1.मूल प्रस्ताव (Substantive Motion):- यह एक स्वतंत्र प्रस्ताव होता है जिसके तहत बहुत महत्वपूर्ण मामले आते हैं जैसे – राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग, मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाना आदि शामिल हैं।
2.स्थानापन्न प्रस्ताव (Substitute Motion):- यह मूल प्रस्ताव के स्थान पर रखा गया प्रस्ताव होता है और यह मूल प्रस्ताव का विकल्प प्रस्तुत करता है।यदि सदन द्वारा स्थानापन्न प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है, तब मूल प्रस्ताव स्थगित हो जाता है।
3.सहायक प्रस्ताव (Subsidiary Motion):- यह एक ऐसा प्रस्ताव होता है जिसका स्वयं में कोई अर्थ नहीं होता है अर्थात् यह प्रस्ताव अन्य प्रस्तावों पर निर्भर होता है। सहायक प्रस्तावों की तीन उप-श्रेणियाँ हैं:-
(i)सहयोगी प्रस्ताव (Ancillary Motion):- इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने की नियमित प्रक्रिया के रूप में किया जाता है।
(ii)अतिस्थापन प्रस्ताव (Superseding Motion):- यह किसी अन्य मुद्दे पर बहस के दौरान रखा जाता है और उस मुद्दे को समाप्त करने का प्रयास करता है।
(iii)संशोधन प्रस्ताव (Amendment Motion):- इसका उद्देश्य मूल प्रस्ताव के केवल एक हिस्से को संशोधित करना या प्रतिस्थापित करना होता है।
कटौती प्रस्ताव :- यह प्रस्ताव किसी सदस्य द्वारा वाद-विवाद को समाप्त करने के लिए लाया जाता है। यदि प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है तब वाद-विवाद रोककर मतदान के लिए रखा जाता है। चार प्रकार के कटौती प्रस्ताव होते हैं –
- साधारण कटौती – यह वह प्रस्ताव है जिसे किसी सदस्य की और से रखा जाता है कि इस मामले में पर्याप्त चर्चा हो चुकी है, अब इसे मतदान के लिए रखा जाए।
- घटकों में कटौती – ऐसे प्रस्ताव में चर्चा से पूर्व विधेयकों का एक समूह बना लिया जाता है एवं वाद-विवाद में इस भाग पर पूर्ण रूप से चर्चा कि जाती है और सम्पूर्ण भाग को मतदान के लिए रखा जाता है।
- कंगारू कटौती – इस प्रस्ताव में केवल महत्वपूर्ण खण्डों पर ही बहस और मतदान होता है और शेष खण्डों को छोड़ दिया जाता है एवं उनको पारित मान लिया जाता है।
- गिलोटिन प्रस्ताव – जब किसी विधेयक या संकल्प के किसी भाग पर चर्चा नहीं हो पाती तो उस पर मतदान से पूर्व चर्चा कराने के लिए इस प्रकार का प्रस्ताव रखा जाता है।
विशेषाधिकार प्रस्ताव :-
- यह प्रस्ताव किसी मंत्री द्वारा संसदीय विशेषाधिकारों के उल्लंघन से सम्बंधित है। यह किसी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है, जब सदस्य को लगता हो कि सही तथ्यों को प्रकट नहीं कर या गलत सूचना देकर किसी मंत्री ने सदन या सदन के एक या अधिक सदस्यों के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया गया है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य संबंधित मंत्री कि निंदा करना है।
ध्यानाकर्षण प्रस्ताव :-
- इस प्रस्ताव के माध्यम से सदन का कोई सदस्य सदन के पीठासीन अधिकारी(Presiding Officer) कि अग्रिम अनुमति से किसी मंत्री का ध्यान अविलंबनीय लोक महत्व के किसी मामले पर आकृष्ट कर सकता है।
- संसदीय प्रक्रिया में यह भारतीय नवाचार है एवं 1954 से चल रहा है। संसदीय प्रक्रिया नियमों में इसका वर्णन किया गया है।
स्थगन प्रस्ताव :- स्थगन प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा में तत्कालसार्वजनिक महत्व के मामले पर चर्चा कराने और सरकार का ध्यान आकर्षित करने का एक साधन है।
उद्देश्य:
- सदस्यों को महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार से जवाब प्राप्त करने का अवसर प्रदान करना।
- तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता वाले मामलों पर ध्यान केंद्रित करना।
- सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना।
विशेषताएं:
- सूचना: स्थगन प्रस्ताव के लिए 24 घंटे की पूर्व सूचना आवश्यक है।
- स्वीकृति: स्थगन प्रस्ताव को स्पीकर (लोकसभा) या सभापति (राज्यसभा) द्वारा स्वीकृत किए जाने पर ही चर्चा होती है।
- समय: स्थगन प्रस्ताव पर दो घंटे तक चर्चा होती है।
- मतदान: चर्चा के बाद मतदान होता है और सदन निर्णय लेता है।
परिणाम:
- यदि दो-तिहाई सदस्य स्थगन प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करते हैं, तो चर्चा स्थगित हो जाती है और सरकार से तत्काल कार्रवाई की जाती है।
- यदि दो-तिहाई सदस्य स्थगन प्रस्ताव के विपक्ष में मतदान करते हैं, तो चर्चा समाप्त हो जाती है।
अविश्वास प्रस्ताव :- अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में सरकार के विश्वास पर मतदान का एक औपचारिक तरीका है। यदि सदन बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित करता है, तो सरकार गिर जाती है।
उद्देश्य:
- सरकार को जवाबदेह ठहराना।
- गलत नीतियों या अकार्यक्षमता के मामले में सरकार को बर्खास्त करना।
- लोकतंत्र में जनता की शक्ति को प्रतिबिंबित करना।
विशेषताएं:
- प्रस्तावक: विपक्षी दल के नेता या 10% सदस्यों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है।
- सूचना: स्पीकर को 14 दिन की पूर्व सूचना देनी होती है।
- बहस: प्रस्ताव पर दो दिन तक बहस होती है।
- मतदान: मतदान गुप्त होता है।
परिणाम:
- यदि अविश्वास प्रस्ताव बहुमत से पारित होता है, तो सरकार गिर जाती है।
- यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं होता है, तो सरकार बनी रहती है।
उदाहरण:
- 1999 में, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 दिन में ही अविश्वास प्रस्ताव में हार गई थी।
- 2018 में, नरेंद्र मोदी की सरकार अविश्वास प्रस्ताव में जीत गई थी।
निंदा प्रस्ताव :-
- निंदा प्रस्ताव अविश्वास प्रस्ताव से अलग है। यह मंत्रिपरिषद की कुछ नीतियों या कार्य के खिलाफ निंदा के लिए लाया जाता है।
- निंदा प्रस्ताव किसी एक मंत्री या मंत्रियों के समूह या पूरे मंत्रिपरिषद के विरुद्ध लाया जा सकता है।
- यदि निंदा प्रस्ताव लोकसभा में पारित हो जाये तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना आवश्यक नहीं है।
धन्यवाद प्रस्ताव :-
- राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में एक विशेष अभिभाषण (सरकार की नीति का एक वक्तव्य जिसे मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया जाना होता है) देते हैं।
- अभिभाषण के बाद प्रत्येक सदन में सत्तारूढ़ पार्टी के सांसदों द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव पेश किया जाता है, और इसे ‘धन्यवाद प्रस्ताव’ कहा जाता है।
- धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का दायरा बहुत व्यापक है और सदस्यों को राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय महत्व के किसी भी मामले पर बोलने की स्वतंत्रता है।
- तथापि, सामान्य सीमाएं यह हैं कि बोलते समय कोई सदस्य उच्च प्राधिकारी व्यक्तियों या दूसरे सदन के सदस्यों पर टिप्पणी नहीं कर सकता है, राष्ट्रपति का नाम नहीं ले सकता है, या ऐसे मामलों का उल्लेख नहीं कर सकता है जो न्यायालय में विचाराधीन हों या संसदीय समिति के विचाराधीन हों, ये सीमाएं धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा पर भी लागू होती हैं।
- धन्यवाद प्रस्ताव पर संशोधन की सूचनाएं राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद ही दी जा सकती हैं।
धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा
- धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा 3 या 4 दिनों तक चलती है, जो सदन द्वारा या कार्य मंत्रणा समिति की सिफारिशों पर निर्धारित किया जा सकता है।
- चर्चा की शुरुआत प्रस्ताव के प्रस्तावक द्वारा की जाती है, जिसके बाद समर्थक चर्चा करता है।
- प्रस्तावक और समर्थक के नाम प्रधानमंत्री द्वारा चुने जाते हैं और ऐसे प्रस्ताव की सूचना संसदीय कार्य मंत्री के माध्यम से प्राप्त होती है। इसके बाद संशोधन पेश किए जाते हैं।
- इस प्रकार आवंटित समय सदन में उनकी संख्या के अनुपात में विभिन्न दलों और समूहों के बीच वितरित किया जाता है।
- धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा प्रधानमंत्री या किसी अन्य मंत्री के उत्तर से समाप्त होती है।
- अन्य प्रस्तावों के विपरीत, प्रस्तावक या समर्थक को अंत में उत्तर देने का कोई अधिकार नहीं होता।
- इसके तुरंत बाद, संशोधनों का निपटारा कर दिया जाता है और धन्यवाद प्रस्ताव पर मतदान किया जाता है तथा उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
- धन्यवाद प्रस्ताव स्वीकृत होने के बाद, अध्यक्ष द्वारा इसे पत्र के माध्यम से सीधे राष्ट्रपति को भेजा जाता है।
Leave a Reply