भारतीय संविधान के मुख्य गुणों में विशेष ध्यान दिया गया है ताकि यह एक समृद्ध, संघीय, लोकतांत्रिक, सामाजिक और समावेशी राष्ट्र की आधारशिला के रूप में काम कर सके। इसमें कुछ मुख्य गुण शामिल हैं:
1. लिखित और सर्वोच्च: –भारतीय संविधान लिखित रूप में है, और यह देश का सर्वोच्च कानून है। इसका मतलब है कि संसद द्वारा बनाए गए सभी कानूनों को संविधान के अनुरूप होना चाहिए। यदि कोई कानून संविधान का उल्लंघन करता है, तो उसे अदालत द्वारा रद्द किया जा सकता है।
भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें 448 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियां हैं। इसे 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था।
- यह सरकार की शक्तियों को सीमित करता है और मनमानी कार्रवाई से बचाता है।
- यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।
- यह कानून के शासन को सुनिश्चित करता है और सभी के लिए समानता की गारंटी देता है।
- यह सरकार को जवाबदेह बनाता है और नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।
- यह देश में स्थिरता और निश्चितता को बढ़ावा देता है।
लिखित संविधान अधिक स्पष्ट और निश्चित होते हैं, और वे सरकार की शक्तियों को सीमित करने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में अधिक प्रभावी होते हैं।
2. लचीला और कठोर: –भारतीय संविधान लचीला और कठोर दोनों है। इसका मतलब है कि संविधान में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन ऐसा करना आसान नहीं है। संविधान में संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। कुछ मामलों में, सभी राज्यों के विधानसभाओं के अनुमोदन की भी आवश्यकता होती है।
- लचीलेपन का अर्थ है कि संविधान की विभिन्न धाराओं और अनुच्छेदों में बदलाव किए जा सकते हैं ताकि बदलते समय और परिस्थितियों के अनुरूप हो सके।
- कठोरता का अर्थ है कि संविधान के मूल ढांचे और बुनियादी सिद्धांतों को आसानी से नहीं बदला जा सकता।
संविधान में संशोधन करने के लिए दो प्रक्रियाएं हैं:
साधारण संशोधन प्रक्रिया:
- इस प्रक्रिया के तहत, संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में साधारण बहुमत से संविधान में संशोधन किया जा सकता है। इसका मतलब है कि प्रत्येक सदन में कुल सदस्यों की संख्या के आधे से अधिक सदस्यों को संशोधन के पक्ष में मतदान करना होगा।
- इस प्रक्रिया का उपयोग आमतौर पर उन मामलों में किया जाता है जहाँ संविधान में छोटे बदलाव करने होते हैं, जैसे कि सरकारी संरचनाओं में बदलाव करना या नई प्रक्रियाओं को जोड़ना।
विशेष संशोधन प्रक्रिया:
- इस प्रक्रिया के तहत, संविधान के कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों को संशोधित करने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि प्रत्येक सदन में कुल सदस्यों की संख्या के दो-तिहाई से अधिक सदस्यों को संशोधन के पक्ष में मतदान करना होगा।
- इस प्रक्रिया का उपयोग आमतौर पर उन मामलों में किया जाता है जहाँ संविधान में बड़े बदलाव करने होते हैं, जैसे कि मौलिक अधिकारों में बदलाव करना या सरकार की संरचना में बदलाव करना।
भारतीय न्यायालयों ने न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) की शक्ति का प्रयोग करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि संविधान के संशोधन, संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करते हैं।
3. संघात्मक: – भारत एक संघीय गणराज्य है, जिसका अर्थ है कि शक्तियां केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच वितरित की जाती हैं। संविधान केंद्र सरकार और राज्य सरकारों दोनों के लिए शक्तियों और कार्यों की एक सूची निर्दिष्ट करता है।
(i) शक्तियों का विभाजन: संविधान तीन सूचियों में शक्तियों का विभाजन करता है:
- संघ सूची: इस सूची में वे विषय शामिल हैं जिन पर केवल केंद्र सरकार कानून बना सकती है और उनका प्रशासन कर सकती है। इसमें रक्षा, विदेश मामले, मुद्रा, और कर जैसे विषय शामिल हैं।
- राज्य सूची: इस सूची में वे विषय शामिल हैं जिन पर केवल राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं और उनका प्रशासन कर सकती हैं। इसमें कानून और व्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि और शिक्षा जैसे विषय शामिल हैं।
- समवर्ती सूची: इस सूची में वे विषय शामिल हैं जिन पर केंद्र और राज्य सरकारें दोनों कानून बना सकती हैं। इसमें वन, पर्यावरण संरक्षण और कंपनियों जैसे विषय शामिल हैं।
(ii) दोहरी शासन प्रणाली: संघीय ढांचा दोहरी शासन प्रणाली का निर्माण करता है, जिसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य सरकारें दोनों का अपना प्रशासनिक तंत्र होता है।
(iii) स्वतंत्र विधायिकाएं: केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की अपनी-अपनी विधायिकाएं होती हैं, जो उनके संबंधित क्षेत्रों के लिए कानून बनाती हैं।
(iv) स्वतंत्र कार्यपालिकाएं: केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की अपनी-अपनी कार्यपालिकाएं होती हैं, जो कानूनों को लागू करती हैं और प्रशासन का काम करती हैं।
(v) स्वतंत्र न्यायपालिका: भारत में एक एकीकृत न्यायपालिका है, लेकिन संघीय ढांचे को ध्यान में रखते हुए कुछ खास बातें हैं। सर्वोच्च न्यायालय संघीय विवादों का सर्वोच्च न्यायालय है और यह सुनिश्चित करता है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने अधिकारों का उल्लंघन न करें।
संघीय ढांचे के लाभ:
- विविधता में एकता: यह विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृति और आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करता है।
- स्थानीय स्वायत्तता: राज्यों को अपने क्षेत्रों के लिए उपयुक्त कानून बनाने की स्वायत्तता प्रदान करता है।
- जवाबदेही: सरकारें नागरिकों के करीब होती हैं, जिससे उन्हें अधिक जवाबदेह बनाया जा सकता है।
- संघर्ष का समाधान: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए एक संस्थागत ढांचा प्रदान करता है।
4. संसदीय: – भारत में संसदीय प्रणाली है, जिसका अर्थ है कि सरकार का मुखिया प्रधान मंत्री होता है, जो लोकसभा के प्रति जवाबदेह होता है। यदि लोकसभा में प्रधान मंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सरकार गिर जाती है।
संसदीय प्रणाली की मुख्य विशेषताएं:
- निर्वाचित कार्यपालिका: प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल लोकसभा चुनावों में बहुमत प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल या गठबंधन से चुने जाते हैं।
- कार्यकारी और विधायिका के बीच संबंध: प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल लोकसभा के प्रति जवाबदेह होते हैं। यदि लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो सरकार गिर जाती है।
- मंत्रिमंडल: प्रधान मंत्री मंत्रिमंडल का मुखिया होता है, जो मंत्रियों का एक समूह होता है जो विभिन्न विभागों के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- राष्ट्रपति: राष्ट्रपति देश का नाममात्र का मुखिया होता है और इसकी कार्यकारी शक्तियां सीमित होती हैं।
- विपक्ष: विपक्षी दल सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं और सरकार को जवाबदेह रखते हैं।
संसदीय प्रणाली के लाभ:
- जवाबदेही: सरकार लोकसभा के प्रति जवाबदेह होती है, जिसका अर्थ है कि इसे नागरिकों की इच्छाओं के अनुरूप काम करना होता है।
- स्थिरता: सरकार आमतौर पर अधिक स्थिर होती है क्योंकि इसे अविश्वास प्रस्ताव से ही हटाया जा सकता है।
- प्रतिनिधित्व: यह विभिन्न राजनीतिक विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाले दलों के लिए सत्ता में आने का अवसर प्रदान करता है।
- समन्वय: सरकार और विधायिका के बीच बेहतर समन्वय होता है क्योंकि वे एक ही राजनीतिक दल या गठबंधन से संबंधित होते हैं।
संसदीय प्रणाली की चुनौतियां:
- बहुमत की तानाशाही: यदि किसी एक दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त होता है, तो यह तानाशाही में बदल सकता है।
- संविधानवाद की कमी: यदि विपक्ष कमजोर है, तो सरकार जवाबदेह नहीं हो सकती है।
- नीतिगत पक्षाघात: यदि सरकार और विपक्ष के बीच मतभेद हैं, तो महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेने में देरी हो सकती है।
- क्षुद्र राजनीति: राजनीतिक दल अक्सर सत्ता के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
5. धर्मनिरपेक्ष: – भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जिसका अर्थ है कि सभी धर्मों को समान राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कोई भी धर्म राज्य का धर्म नहीं है। धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान के मुख्य स्तंभों में से एक है।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता की कुछ प्रमुख विशेषताएं:
- राज्य का कोई धर्म नहीं: भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। सरकार किसी भी धार्मिक गतिविधि में शामिल नहीं हो सकती है या किसी विशेष धर्म को बढ़ावा नहीं दे सकती है।
- धार्मिक स्वतंत्रता: सभी नागरिकों को अपनी पसंद का धर्म मानने, उसका अभ्यास करने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता है।
- समानता: सभी धर्मों के अनुयायियों को कानून के समक्ष समान माना जाता है।
धर्मनिरपेक्षता सकारात्मक और नकारात्मक दोनों है:
- नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता: इसका अर्थ है कि राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है।
- सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता: इसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों की समान रूप से रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी धर्म को दूसरों पर हावी न होने दिया जाए।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता के महत्व:
- यह एकता और अखंडता को बढ़ावा देता है: यह विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सक्षम बनाता है।
- यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है: यह लोगों को अपनी पसंद का धर्म चुनने और उसका पालन करने की स्वतंत्रता देता है।
- यह समानता और न्याय को बढ़ावा देता है: यह सुनिश्चित करता है कि सभी धर्मों के अनुयायियों के साथ समान व्यवहार किया जाए।
- यह लोकतंत्र को मजबूत करता है: यह एक ऐसा माहौल बनाता है जहां विभिन्न विचारों और विश्वासों को स्वीकार किया जाता है।
6. गणतंत्र: –भारत एक गणतंत्र है, जिसका अर्थ है कि देश का मुखिया राष्ट्रपति होता है, जिसे नागरिकों द्वारा चुना जाता है। राष्ट्रपति का पद नाममात्र का होता है, और वास्तविक कार्यकारी शक्तियां प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल के पास होती हैं।
भारतीय गणतंत्र की कुछ प्रमुख विशेषताएं:
- नागरिकों द्वारा चुना गया राष्ट्रपति: राष्ट्रपति को एक निर्वाचक मंडल द्वारा चुना जाता है जिसमें संसद के दोनों सदन (लोकसभा और राज्यसभा) और राज्य विधानसभाओं के सदस्य शामिल होते हैं।
- निर्धारित कार्यकाल: राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है।
- सीमित शक्तियां: राष्ट्रपति की शक्तियां मुख्य रूप से औपचारिक और सलाहकार होती हैं।
- कार्यकारी शक्तियां मंत्रिमंडल के पास: प्रधान मंत्री और मंत्रिमंडल सरकार के वास्तविक कार्यकारी प्रमुख होते हैं। वे लोकसभा के प्रति जवाबदेह होते हैं।
- स्वतंत्र न्यायपालिका: भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है जो कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र है।
भारतीय गणतंत्र के लाभ:
- लोकतंत्र: गणतंत्र शासन का एक लोकतांत्रिक रूप है जिसमें नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार होता है।
- जवाबदेही: सरकार नागरिकों के प्रति जवाबदेह होती है क्योंकि उन्हें नियमित चुनावों में उनके द्वारा चुना जाता है।
- समानता: सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समान माना जाता है, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
- भागीदारी: नागरिकों को सरकार की नीति निर्माण और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिलता है।
7. मौलिक अधिकार: –भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी दी गई है, जिनमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, और संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल हैं।मौलिक अधिकारों का संविधान के अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक में प्रावधान किया गया है। कुछ मुख्य मौलिक अधिकार निम्नलिखित हैं:
- मौलिक स्वतंत्रताएं: वे नागरिकों को बुनियादी स्वतंत्रताएं और अधिकार प्रदान करते हैं जो उनके जीवन और विकास के लिए आवश्यक हैं।
- शक्ति का दुरुपयोग रोकना: वे सरकार को शक्ति के दुरुपयोग: से रोकते हैं और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।
- सामाजिक न्याय: वे सभी नागरिकों के लिए समानता और न्याय सुनिश्चित करने में मदद करते हैं।
ये मौलिक अधिकार भारतीय नागरिकों को उनके नागरिक अधिकारों की प्रमुख सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करते हैं।
8. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत:-राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत नैतिक सिद्धांत हैं जो राज्य सरकारों को सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
DPSP की विशेषताएं:
- सामाजिक-आर्थिक न्याय: DPSP सामाजिक-आर्थिक न्याय को बढ़ावा देने पर जोर देते हैं, जिसमें गरीबी उन्मूलन, समान आय वितरण और सभी के लिए समान अवसर शामिल हैं।
- समानता और बंधुत्व: DPSP सभी नागरिकों के लिए समानता और बंधुत्व को बढ़ावा देते हैं, चाहे उनकी जाति, धर्म, लिंग या जन्म स्थान कुछ भी हो।
- मानवीय गरिमा: DPSP मानवीय गरिमा और सभी व्यक्तियों के मूल्यों का सम्मान करते हैं।
- राज्य का सक्रिय हस्तक्षेप: DPSP राज्य को सामाजिक-आर्थिक विकास और नागरिकों के कल्याण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण DPSP:
- समान काम के लिए समान वेतन (अनुच्छेद 39): यह पुरुषों और महिलाओं के लिए समान काम के लिए समान वेतन सुनिश्चित करता है।
- शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 41): यह 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य (अनुच्छेद 42): यह सभी नागरिकों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं और चिकित्सा सहायता तक पहुंच प्रदान करने का निर्देश देता है।
- एक जीवित वेतन (अनुच्छेद 43): यह सभी श्रमिकों को एक जीवित वेतन सुनिश्चित करता है जो उन्हें और उनके परिवारों को गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए पर्याप्त हो।
- काम करने की उचित और मानवीय स्थिति (अनुच्छेद 43): यह श्रमिकों के लिए उचित और मानवीय काम करने की स्थिति सुनिश्चित करता है।
9. स्वतंत्र न्यायपालिका: – भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है, जिसका अर्थ है कि न्यायपालिका कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र है। इसमें न्यायाधीशों को कार्यकाल की सुरक्षा दी जाती है और वे सरकार से हस्तक्षेप के बिना अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं।
स्वतंत्र न्यायपालिका का महत्व:
- कानून का शासन: यह सुनिश्चित करता है कि कानून का शासन सर्वोपरि है और कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है।
- मौलिक अधिकारों की रक्षा: यह मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सरकार इनका उल्लंघन न कर सके।
- न्याय तक पहुंच: यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को न्याय तक समान पहुंच प्राप्त हो।
- जवाबदेही: यह सरकार को नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाता है।
- लोकतंत्र को मजबूत करना: यह लोकतंत्र को मजबूत करता है और सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में मदद करता है।
भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता की कुछ प्रमुख विशेषताएं:
- न्यायाधीशों की नियुक्ति: उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, परामर्श के बाद:
- उच्च न्यायालयों के लिए: मुख्यमंत्री, संबंधित उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और उस राज्य के बार काउंसिल के अध्यक्ष या किसी अन्य वरिष्ठ वकील।
- सर्वोच्च न्यायालय के लिए: भारत के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों
- न्यायाधीशों का कार्यकाल: उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक सेवा करते हैं।
- न्यायाधीशों की सेवा निवृत्ति: न्यायाधीशों को केवल दुर्व्यवहार के लिए ही हटाया जा सकता है, एक जटिल प्रक्रिया के माध्यम से जिसमें महाभियोग शामिल है।
- न्यायिक समीक्षा की शक्ति: न्यायपालिका के पास यह शक्ति है कि वह यह समीक्षा करे कि क्या कानून संविधान के अनुरूप हैं, और यदि वे नहीं हैं तो उन्हें रद्द कर सकते हैं।
- न्यायिक स्वतंत्रता: न्यायाधीशों को अपनी राय व्यक्त करने और डर या पक्षपात के बिना अपने कर्तव्यों का पालन करने की स्वतंत्रता है।
10. आपातकालीन प्रावधान:- संविधान में आपातकालीन प्रावधान हैं जिनका उपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के खतरे के मामले में किया जा सकता है। आपातकाल की स्थिति में, केंद्र सरकार को अतिरिक्त शक्तियां प्राप्त होती हैं।
भारतीय संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधानों का उल्लेख है। ये प्रावधान सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या वित्तीय स्थिरता के लिए खतरे की स्थिति में असाधारण शक्तियां प्रदान करते हैं।
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352): राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं यदि उन्हें यह विश्वास हो जाता है कि भारत युद्ध या बाहरी आक्रमण की स्थिति में है या देश के किसी हिस्से में सशस्त्र विद्रोह हो रहा है।
- राज्य आपातकाल (अनुच्छेद 356): यदि राज्यपाल को यह विश्वास हो जाता है कि राज्य में संविधान के अनुसार शासन नहीं किया जा सकता है, तो वह राष्ट्रपति को रिपोर्ट कर सकता है। राष्ट्रपति राज्य में आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं और राज्य सरकार को निलंबित कर सकते हैं।
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360): यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाता है कि भारत की वित्तीय स्थिति गंभीर है, तो वह वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।
आपातकाल के दौरान सरकार की शक्तियां:
- मौलिक अधिकारों का निलंबन: सरकार कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित कर सकती है, जैसे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सभा की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता।
- कानून बनाना: सरकार संसद की मंजूरी के बिना कानून बना सकती है।
- गिरफ्तारी: सरकार बिना किसी मुकदमे या सुनवाई के लोगों को गिरफ्तार कर सकती है।
- संपत्ति का अधिग्रहण: सरकार सार्वजनिक हित के लिए संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है।
आपातकालीन प्रावधानों की आलोचना:
- दुरुपयोग की संभावना: आलोचकों का तर्क है कि इन प्रावधानों का दुरुपयोग किया जा सकता है और सरकार द्वारा असंतोष को दबाने और शक्ति को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
- मौलिक अधिकारों का हनन: मौलिक अधिकारों का निलंबन नागरिक स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
- तकनीकी प्रक्रिया का अभाव: आपातकाल की घोषणा और मौलिक अधिकारों के निलंबन के लिए कोई स्पष्ट तकनीकी प्रक्रिया नहीं है।
भारत में आपातकाल:
भारत में तीन बार आपातकाल लागू किया गया है:
- 1962: चीन-भारत युद्ध के दौरान।
- 1971: भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान
- 1975-77: इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया था।
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