उच्चतम न्यायालय का स्थान :-
- भारत का उच्चतम न्यायालय भारत के संविधान के तहत एक सर्वोच्च न्यायिक निकाय है।
- संविधान के अनुच्छेद 124 में कहा गया है कि “भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा।
- 26 जनवरी 1950 को संविधान के लागू होने के साथ ही उच्चतम न्यायालय अस्तित्व में आया।
- भारत का उच्चतम न्यायालय 1958 में तिलक मार्ग, नई दिल्ली में स्थित वर्तमान भवन में स्थानांतरित होने से पहले पुराने संसद भवन में था।
- 28 जनवरी 1950 को, भारत के एक प्रभुतासंपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के दो दिन बाद, उच्चतम न्यायालय का उद्घाटन किया गया था।
- इसका उद्घाटन पुराने संसद भवन के नरेंद्र मंडल में हुआ, जहाँ 1937 से 1950 तक, भारत संघ न्यायालय 12 वर्षों के लिए कार्यरत था।
- 28 जनवरी 1950 को उद्घाटन के बाद, उच्चतम न्यायालय ने पुराने संसद भवन के एक हिस्से में अपनी बैठकें शुरू कीं।
- 1958 में यह न्यायालय एक नए भवन में चला गया।
- भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 4 अगस्त 1958 को भारत के उच्चतम न्यायालय के वर्तमान भवन का उद्घाटन किया।
- उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही अंग्रेज़ी में संचालित होती हैं।
- संविधान दिल्ली को सर्वोच्च न्यायालय का स्थान घोषित करता है।
- यह मुख्य न्यायाधीश को अन्य किसी स्थान अथवा एक से अधिक स्थानों को सर्वोच्च न्यायालय के स्थान के रूप में नियुक्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
- वह राष्ट्रपति के अनुमोदन से ही इस संबंध में निर्णय ले सकता है। यह प्रावधान केवल वैकल्पिक है, अनिवार्य नहीं है।
- इसका अर्थ यह है कि कोई भी अदालत राष्ट्रपति या मुख्य न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय को किसी अन्य स्थान पर नियुक्त करने के लिये कोई निर्देश नहीं दे सकती है।
न्यायालय की प्रक्रिया :-
- सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद न्यायालय की प्रक्रिया और संचालन हेतु नियम बना सकती है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को कानूनी मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेने की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 143 के अनुसार देश का राष्ट्रपति संविधान के अनुसार सार्वजनिक महत्व के मामलों या कुछ कानूनों पर सर्वोच्च न्यायालय की राय और सलाह मांग सकता है।
- न्यायालय की राय या सलाह देश के राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं है।
- राष्ट्रपति सलाह पर अमल कर सकते हैं या नहीं भी कर सकते हैं।
- हालाँकि, संविधान में सलाह या राय का एक निश्चित महत्व होता है, जिसका सम्मान राष्ट्रपति द्वारा भी किया जाना चाहिए।
यह अनुच्छेद केवल उन मामलों में लागू होता है जहां:
- कानूनी मुद्दा महत्वपूर्ण और जटिल होता है।
- सार्वजनिक हित का प्रश्न शामिल होता है।
- राष्ट्रपति को लगता है कि न्यायालय की राय लेना आवश्यक है।
अनुच्छेद 143 के तहत प्रक्रिया:
- राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश को एक संदर्भ प्रश्न भेजता है।
- मुख्य न्यायाधीश प्रश्न को न्यायाधीशों की एक पूर्ण पीठ को सौंपता है।
- पूर्ण पीठ प्रश्न पर विचार-विमर्श करती है और अपनी राय लिखित रूप में राष्ट्रपति को भेजती है।
- राष्ट्रपति न्यायालय की राय पर विचार करता है और अपना निर्णय लेता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:
- न्यायालय की राय बाध्यकारी नहीं होती है।
- राष्ट्रपति न्यायालय की राय को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है।
- अनुच्छेद 143 का उपयोग केवल उन मामलों में किया जाता है जहां अन्य उपाय उपलब्ध नहीं हैं।
अनुच्छेद 143 के महत्व:
- यह राष्ट्रपति को कानूनी मामलों पर विशेषज्ञ सलाह प्राप्त करने में मदद करता है।
- यह न्यायालय को सरकार को सलाह देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अनुमति देता है।
- यह कानून के शासन को मजबूत करने में मदद करता है।
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