भारत में, केंद्र और राज्य सरकारें दोनों ही अपनी वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऋण लेती हैं। यह ऋण विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किया जाता है, जैसे कि घरेलू बाजार, विदेशी बाजार, और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान।
केंद्र सरकार द्वारा ऋण:
- संविधान केंद्र एवं राज्यों के कर्ज लेने की शक्ति पर निम्नलिखित प्रावधान तय करता है:
- केंद्र सरकार या तो भारत में या इसके बाहर से भारत की संचित निधि की प्रतिभ या गारंटी देकर ऋण ले सकती है। लेकिन दोनों ही मामलों में सीमा निर्धारण संसद द्वारा किया जाएगा।
- संसद द्वारा इस संबंध में कोई कानून नहीं बनाया गया है। इसी तरह, एक राज्य सरकार भारत में (बाहर नहीं) राज्य की सचित निधि की प्रतिभू या गारंटी देकर ऋण ले सकता है, लेकिन सीमा निर्धारण राज्य विधानमंडल द्वारा किया जाएगा।
- केंद्र सरकार किसी राज्य सरकार को ऋण दे सकती है या किसी राज्य द्वारा लेने पर पर गारंटी दे सकती है। ऋण के ऐसे प्रयोजन हेतु आवश्यक धनराशि भारत की संचित निधि पर भारित होगी। राज्य केन्द्र की अनुमति के बिना ऋण नहीं ले सकता, यदि केन्द्र द्वारा दिए गए ऋण का कोई भाग बकाया हो या जिसके संबंध में केन्द्र ने गारंटी दी हो।
अंतर सरकारी कर उन्मुक्ति
- अन्य संघीय संविधानों के समान भारतीय संविधान में भी ‘पारस्परिक कराधान से उन्मुक्तियों’ के नियम हैं। इस संबंध में निम्न प्रावधान किये गये हैं:
केन्द्र की परिसंपत्तियों को राज्य के कर से छूट:-
- केन्द्र की सभी परिसंपत्तियों को राज्य या उसके विभिन्न निकायों, यथा नगरपालिकाओं जिला बोर्डी, पंचायतों इत्यादि को सभी प्रकार के करों से छूट प्राप्त होती है।
- संसद को यह अधिकार है कि वह इस प्रतिबंध को समाप्त कर सकती है।
- संपत्ति’ शब्द से अभिप्राय भूमि, भवन, चल संपत्ति, शेयर, जमा इत्यादि उन सभी चीजों से है, जिनका कोई मूल्य होता है। संपत्ति में चल एवं अचल दोनों प्रकार की संपत्तिया सम्मिलित है। संपत्ति का उपयोग संप्रभु (जैसे सशणब्त्र सेनाये) या वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए किया जा सकता है।
- केन्द्र सरकार द्वारा निर्मित निगमों या कंपनियों को राज्य कराधान या स्थानीय कराधान से उन्मुक्ति प्राप्त नहीं है। इसका कारण यह है कि निगम या कंपनी एक पृथक विधिक अस्तित्व है।
राज्य की परिसंपत्तियों या आय को केन्द्रीय कर से छूट:-
- राज्यों की परिसंपत्तियां एवं आय को भी केन्द्रीय कर से छूट प्राप्त होती है।
- यह आय संप्रभु कार्यों या वाणिज्यिक कार्यों से हो सकती है। किंतु यदि संसद अनुमति दे तो केन्द्र वाणिज्यिक आय पर कर लगा सकता है। यद्यपि केन्द्र चाहे तो वह किसी कार्य या व्यवसाय विशेष को इस कर से छूट भी दे सकता है।
- राज्य में स्थित स्थानीय संस्थायें केन्द्रीय कर से मुक्त नहीं होती है। इसी तरह निगमों एवं राज्य की स्वामित्व वाली कंपनियों की परिसंपत्तिया एवं आय पर केंद्र कर लगा सकती है।
- 1963 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक सलाहकारी निर्णय में यह सलाह दी थी कि केन्द्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली छट ऐसी होनी चाहिये, जिससे सीमा और उत्पाद शुल्क पर कोई प्रभाव न पड़े। दसरे शब्दों में केंद्र, राज्य द्वारा आयातित या निर्यातित वस्तुओं पर कर लगा सकती है या वह राज्य में उत्पादित या विर्निमित सामान पर उत्पाद शुल्क लगा सकती है।
आपातकाल के प्रभाव:-
- केंद्र-राज्य के बीच संबंध आपातकाल के दौरान बदल जाते हैं। निम्नलिखित हैं:
राष्ट्रीय आपातकाल:- जब राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो (अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत) राष्ट्रपति केंद्र व राज्यों के बीच संवैधानिक राजस्व वितरण को परिवर्तित कर सकता है। इसका तात्पर्य है- राष्ट्रपति या तो वित्तीय अंतरण को कम कर सकता है या रोक सकता है। ऐसे परिवर्तन जिस वर्ष आपातकाल की घोषणा की गई हो उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक प्रभावी रहते है
वित्तीय आपातकाल:- जब वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360 के अन्तर्गत) लागू हो केंद्र राज्यों को निर्देश दे सकता है-
- वित्तीय औचित्य संबंधी सिद्धांतों का पालन,
- राज्य की सेवा में लगे सभी वर्गों के लोगों के वेतन एवं भत्ते कम करे, और
- सभी धन विधेयकों या अन्य वित्तीय विधेयकों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखे।
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