पहला संशोधन अधिनियम, 1951 राज्य को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के विकास के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार प्रदान किया गया।
- जमींदारी विरोधी कानूनों को न्यायिक समीक्षा से बचाने के लिए संविधान में नौवीं अनुसूची जोड़ी गई।
- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंधों के लिए अतिरिक्त आधार के रूप में सार्वजनिक आदेश, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और अपराध के लिए उकसाना जोड़ा गया साथ ही इसे इसे न्यायोचित (justiciable) भी बनाया।
- प्रथम संविधान संशोधन यह प्रावधान करता है कि राज्य व्यापार और किसी भी व्यवसाय का राष्ट्रीयकरण व्यापार या व्यवसाय के अधिकार के खिलाफ नहीं माना जाएगा।
दूसरा संशोधन अधिनियम, 1952
- लोकसभा में प्रतिनिधित्व के पैमाने को पुनः समायोजित किया गया और कहा गया कि एक सदस्य 7.5 लाख से भी अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व कर सकता है।
7वां संशोधनअधिनियम, 1956
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम के माध्यम से 14 राज्य और 6 केंद्रशासित प्रदेश बनाए गए।
- संविधान की दूसरी और सातवीं अनुसूची में संशोधन किया गया।
- दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक उच्च न्यायालय का प्रावधान किया गया।
- इसी संविधान संशोधन के माध्यम से सर्वप्रथम केंद्रशासित प्रदेशों का उल्लेख किया गया।
नौवां संशोधन अधिनियम, 1960
- पाकिस्तान के साथ समझौते के परिणामस्वरूप भारतीय क्षेत्र में समायोजन (भारत-पाक समझौता 1958):
- बेरुबारी संघ (पश्चिम बंगाल) के भारतीय क्षेत्र का पाकिस्तान को सौंपना
10वां संशोधन अधिनियम, 1961
- इस संविधान संशोधन के माध्यम से पुर्तगाल से केंद्रशासित प्रदेश के रूप में दादरा, नगर और हवेली का अधिग्रहण किया।
- इसके माध्यम से संविधान के Article 240 में संशोधन किया गया।
12वां संशोधन अधिनियम, 1962
- गोवा, दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में भारतीय संघ में शामिल किया गया
13वां संशोधन अधिनियम, 1962
- नागालैंड का गठन Article 371 A के तहत विशेष दर्जा के साथ किया गया था
14वां संशोधन अधिनियम, 1962
- पांडिचेरी को भारतीय संघ में शामिल किया गया
- हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन और दीव तथा पुडुचेरी संघ शासित प्रदेशों को विधानमंडल तथा मंत्रिपरिषद प्रदान की गई।
19वां संशोधन अधिनियम, 1966
- चुनाव न्यायाधिकरणों की प्रणाली समाप्त कर दी गई और उच्च न्यायालयों को चुनाव याचिकाओं की सुनवाई का अधिकार दिया गया
21वां संशोधन अधिनियम, 1967
- सिंधी भाषा को भारतीय संविधान की 8 वीं अनुसूची में शामिल किया गया
24वां संशोधन अधिनियम, 1971
- इस संशोधन के माध्यम से यह स्पष्ट हो गया की संसद अनुच्छेद 368 का उपयोग करके अनुच्छेद 13 सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, अर्थात् संसद को मौलिक अधिकारमें संशोधन करने की शक्ति दी गई।
- इन संवैधानिक संशोधनों पर राष्ट्रपति की सहमती देना अनिवार्य कर दिया गया।
- यह संशोधन अधिनियम गोलकनाथ मामले (1967) के बाद लाया गया था।
25वां संशोधन अधिनियम, 1971
- राज्य के नीति निदेशक तत्वों और मौलिक अधिकारों के बीच संबंध से संबंधित अनुच्छेद 31C संविधान में जोड़ा गया।
- इस संविधान संशोधन ने यह स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 39 (B) या (C) के अंतर्गत आने वाले DPSP के प्रावधानों को पूरा करने के लिए बनाए गए कानून को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है कि यह अनुच्छेद 14, 19 और 31 में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- संपत्ति के मौलिक अधिकार पर अंकुश लगाया गया।
26वां संशोधन अधिनियम, 1971
- रियासतों के शासकों को दिए जाने वाले प्रिवी पर्स और विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
31वां संशोधन अधिनियम, 1972
- लोकसभा सीटें 525 से बढ़ाकर 545 की गईं
34वां संशोधन अधिनियम, 1974
- इस संविधान संशोधन द्वारा विभिन्न राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए 20 और काश्तकारी व भूमि सुधार क़ानूनों को संविधान की नौंवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
35वां संशोधन अधिनियम, 1974
- सिक्किम का संरक्षित राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया गया और सिक्किम को भारत के ‘सहयोगी राज्य’ का दर्जा दिया गया
36वां संशोधन अधिनियम, 1975
- सिक्किम को भारत का पूर्ण राज्य बनाया गया
38वां संशोधन अधिनियम, 1975
- राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
- राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के उप-राज्यपाल, राज्यपालों और प्रशासकों द्वारा अध्यादेशों की घोषणा को कानून की अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती
- राष्ट्रपति को एक साथ विभिन्न आधारों पर राष्ट्रीय आपातकाल की विभिन्न उद्घोषणाओं की घोषणा करने का अधिकार था।
40वां संशोधन अधिनियम, 1976
- इस अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महासागरीय सीमा अथवा पूरी तरह भारत के आर्थिक क्षेत्र में आने वाली सभी खानों, खनिज पदार्थों और अन्य मूल्यवान वस्तुओं को संघ के अधिकार में निहित करने का उपबंध किया गया।
42वांसंशोधनअधिनियम, 1976 (लघु संविधान)
- इस संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके ‘समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता’ शब्द जोड़ा गया।
- संसदऔर राज्य विधानमंडल : लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दिया गया।
- इसने ट्रेड यूनियन गतिविधि को कम करने की शक्ति वाले प्रावधान पर रोक लगाया।
- इस संविधान संशोधन द्वारा संवैधानिक संशोधन पर न्यायिक समीक्षा को प्रतिबंधित किया गया।
- मंत्रिपरिषद की सलाह को इस संशोधन के तहत राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी बनाया गया।
- शिक्षा, वन, वजन और माप, वन्य जीवों और पक्षियों का संरक्षण, न्याय का प्रशासन जैसे पांच विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया।
- राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करेगा। (अनुच्छेद 74)
- अनुच्छेद 329क के तहत लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री को कुछ विशेष विवेकाधीन शक्तियां दी गयीं।
- न्यायपालिका: न्यायपालिका की न्यायिक समीक्षा और रिट क्षेत्राधिकार की शक्ति को सीमित किया गया।
- अनुच्छेद 226क और 228क के अनुसार, इस संशोधन ने केवल उच्च न्यायालयों को राज्य विधान की वैधता पर शासन करने की अनुमति दी।
- इसी प्रकार अनुच्छेद 131क के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अधिकार प्रदान किया गया की वह इस तथ्य पर विचार कर सकता है कि कोई केंद्रीय कानून कानूनी है या नहीं।
- संघवाद : अनुच्छेद 257क- केंद्र को किसी भी राज्य में कानून और व्यवस्था की किसी भी गंभीर स्थिति से निपटने के लिए संघ के किसी भी सशस्त्र बल को तैनात करने में सक्षम बनाने का प्रावधान किया गया।
- मौलिक अधिकार और निर्देशक सिद्धांत : अनुच्छेद 14, 19 या 31 में निहित मौलिक अधिकारों पर सभी निदेशक सिद्धांतों को प्रधानता दी गई थी
- मौलिक कर्तव्य : स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर भाग IV-A के तहत नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51-क) निर्धारित किया गए
- आपातकाल : राष्ट्रपति को देश के किसी भी हिस्से में आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार था। भाग XIV क को जोड़कर, यह अन्य मामलों के लिए प्रशासनिक न्यायाधिकरणों और न्यायाधिकरणों के लिए प्रावधान करता है।
44वांसंशोधनअधिनियम, 1978
- लोकसभाऔर राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पूर्व की तरह पुनः 5 साल कर दिया गया।
- यह भी प्रावधान किया गया की राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह को पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है।
- आपातकाल की स्थिति में “आंतरिक अशांति” के शब्द को “सशस्त्र विद्रोह” से प्रतिस्थापित कर दिया गया।
- राष्ट्रीय आपातकाल की अवधि एक बार में 6 माह से अधिक नहीं बढ़ाई जानी चाहिए और मंत्रिपरिषद की लिखित सिफारिश पर ही राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल लगया जाना चाहिए।
- संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद की सूची से हटाकर विधिक अधिकार की श्रेणी में शामिल करते हुए संविधान में अनुच्छेद 300 (क) जोड़ा गया।
- राष्ट्रपति, राज्यपाल और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की न्यायिक समीक्षा का प्रावधान किया गया।
- राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 20 (पराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) को निलम्बित नहीं किया जा सकता है।
51वां संशोधन अधिनियम, 1984
- मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम में अनुसूचित जनजातियों के लिए लोकसभा में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 330 और नागालैंड की विधानसभाओं में समान आरक्षण प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 332 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया।
52वां संशोधन अधिनियम, 1985
- दल बदल के खिलाफ कानून बनाकर संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गयी।
61वां संशोधन अधिनियम, 1989
- लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की उम्र 21 साल से घटाकर 18 साल की गई।
65वां संशोधन अधिनियम, 1990
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए एक राष्ट्रीय आयोग को शामिल करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 338 में संशोधन किया गया।
69वां संशोधन अधिनियम, 1991
- 70 सदस्यीय विधानसभा और दिल्ली के लिए 7 सदस्यीय मंत्रिपरिषद के प्रावधान के साथ दिल्ली को ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली’ बनाया।
71वां संशोधन अधिनियम, 1992
- कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
- आधिकारिक भाषाओं की कुल संख्या बढ़कर 18 हो गई
73वां संशोधन अधिनियम, 1992
- पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
- संविधान में भाग- IX और 11वीं अनुसूची जोड़ी गयी।
- पंचायती राज के त्रिस्तरीय मॉडल के प्रावधान, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी आबादी के अनुपात में सीटों का आरक्षण और महिलाओं के लिए सीटों का एक तिहाई आरक्षण प्रदान किया गया।
74वां संशोधन अधिनियम, 1992
- इस संवैधानिक संशोधन के माध्यम से शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और संविधान में भाग IX-क और 12वीं अनुसूची जोड़ी गई।
76वां संशोधन अधिनियम, 1994
- पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए शैक्षिक संस्थानों में सीटों के आरक्षण और एक राज्य के तहत सेवाओं में नियुक्तियों या पदों से संबंधित प्रावधान इस संशोधन के माध्यम से किये गए हैं। (नोट: सुप्रीम कोर्ट ने 1992 को फैसला सुनाया था कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।)
77वां संशोधन अधिनियम, 1995
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पक्ष में सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण की तत्कालीन नीति को जारी रखने का प्रावधान।
80वां संशोधन अधिनियम, 2000
- संघ और राज्य के बीच करों के बंटवारे के लिए एक वैकल्पिक योजना बनाई गई।
85वां संशोधन अधिनियम, 2001
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के शासकीय सेवकों की पदोन्नति के मामले में वरिष्ठता का प्रावधान किया गया।
86वां संशोधन अधिनियम, 2002
- प्रारंभिक शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया – 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा
- Article 51 A के अंतर्गत एक नया मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया – “भारत के प्रत्येक नागरिक का, जो माता-पिता या संरक्षक है, यह कर्तव्य होगा कि वह अपने बच्चे या प्रतिपाल्य को छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच शिक्षा के अवसर प्रदान करे”
88वां संशोधन अधिनियम, 2003
- Article 268-A के तहत सेवा कर का प्रावधान किया गया – संघ द्वारा लगाया जाने वाला सेवा कर तथा संघ और राज्यों द्वारा संग्रहित और विनियोजित किया जाने वाला सेवा कर
91वां संशोधन अधिनियम, 2003
- केंद्र और राज्यों में मंत्रिपरिषद का सीमित किया गया।
- प्रावधान किया गया कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए और किसी राज्य में मंत्रियों की कुल संख्या मुख्यमंत्री सहित उस राज्य की विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- यद्यपि इस शर्त के साथ यह भी प्रावधान किया गया की किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 से कम भी नहीं होनी चाहिए।
92वां संशोधन अधिनियम, 2003
- बोडो, डोगरी (डोंगरी), मैथिली और संथाली को आठवीं अनुसूची में जोड़ा गया
- कुल आधिकारिक भाषाओं की संख्या 18 से बढ़ाकर 22 कर दी गई
93वां संशोधन अधिनियम, 2005
- संविधान के Article-15 (5) के तहत निजी गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण। (नोट: इसमें अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थान शामिल नहीं हैं।)
95वां संशोधन अधिनियम, 2009
- लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण और एंग्लो-इंडियन के लिए विशेष प्रतिनिधित्व को दस साल की अवधि यानी 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया (Article 334)।
97वां संशोधन अधिनियम, 2012
- “सहकारी समितियों” का प्रावधान करने के लिए संविधान में भाग IX-B जोड़ा गया।
- भाग IV के तहत सहकारी समितियों के निर्माण को प्रोत्साहित किया गया।
- सहकारी समितियों के निर्माण को Article 19 के तहत मौलिक अधिकार बनाया गया।
- संविधान में बदलाव करके सहकारी समितियों को संरक्षण देने के लिए Article 19(1)(C) में संशोधन किया गया है और उनसे संबंधित Article 43B (DPSP) जोड़ा गया है।
99वां संशोधन अधिनियम, 2014
- कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नए निकायराष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की स्थापना का प्रावधान किया गया।
- हालाँकि बाद में इसे SC द्वारा असंवैधानिक और शून्य घोषित करके पुनः कॉलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया गया।
100वां संशोधन) अधिनियम, 2015
- भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा समझौते का अनुसमर्थन वाला संशोधन।
- 1974 के द्विपक्षीय भूमि सीमा समझौते के अनुसार, दोनों देशों के कब्जे वाले विवादित क्षेत्रों का आदान-प्रदान करने के लिए भारतीय संविधान की पहली अनुसूची में संशोधन किया गया था।
101वां संशोधन अधिनियम, 2017
- माल और सेवा कर (GST) की शुरुआत की गयी।
102वां संशोधन अधिनियम, 2018
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
- संविधान में Article 338 तथा 338(A) के साथ 388(B) को शामिल किया गया।
103वां संशोधन अधिनियम, 2019
- Article 15 के खंड (4) और (5) में वर्णित वर्गों के अलावा अन्य वर्गों के नागरिकों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण प्रदान किया गया।
104वां संशोधन अधिनियम, 2020
- लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में SC और ST के लिए सीटों की समाप्ति की समय सीमा 70 साल से बढ़ाकर 80 साल कर दी गई है।
- लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए आरक्षित सीटों के प्रावधान को हटा दिया गया है।
105वां संशोधन अधिनियम, 2021
- सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की सूची तैयार करने की राज्य सरकारों की शक्ति बहाल की गई।
106वां संशोधन अधिनियम, 2023
- यह महिला आरक्षण विधेयक था, जो लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है, जिनमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटें भी शामिल हैं।
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