विधानसभा और विधान परिषद में अपनाई जाने वाली संसदीय प्रक्रिया संसद के समान ही है।
- राज्य विधानमंडल की बैठक वर्ष में कम से कम दो बार होनी चाहिए तथा किसी भी दो सत्रों के बीच का अंतराल छह महीने से अधिक नहीं होना चाहिए।
- राज्यपाल नये सत्र के आरंभ में उद्घाटन भाषण देते हैं जिसमें वे राज्य सरकार की नीति का विवरण प्रस्तुत करते हैं।
- किसी भी विधेयक को विधानमंडल के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है, सिवाय धन विधेयक के , जिसे केवल विधानसभा में ही पेश किया जा सकता है। इसे तीन बार पढ़ना पड़ता है, जिसके बाद यह राज्यपाल के पास उनकी स्वीकृति के लिए जाता है। राज्यपाल इसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं, लेकिन एक बार जब यह विधानमंडल द्वारा फिर से पारित हो जाता है, तो वह अपनी स्वीकृति रोक नहीं सकते।
- वह कुछ विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है , जो उसे पुनर्विचार के लिए विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए कह सकता है। जब इसे संशोधन के साथ या बिना संशोधन के पुनः पारित किया जाता है तो यह राष्ट्रपति के विचारार्थ जाता है।
- राष्ट्रपति उस विधेयक पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य नहीं है, भले ही विधेयक पर राज्य विधानमंडल द्वारा दूसरी बार विचार किया गया हो और उसे पारित किया गया हो। यदि विधेयक पारित होने से पहले विधानसभा भंग हो जाती है, या विधानसभा द्वारा पारित कर दिया जाता है, लेकिन विधान परिषद के समक्ष लंबित रहता है, तो वह विधेयक समाप्त हो जाएगा।
- किन्तु ऐसे विधेयकों के मामले में जो राज्य में केवल एक सदन होने पर विधानसभा द्वारा तथा जहां दो सदन हैं वहां विधानसभा और विधान परिषद द्वारा विधिवत् पारित कर दिए गए हैं तथा राज्यपाल या राष्ट्रपति की स्वीकृति की प्रतीक्षा में हैं, वे व्यपगत नहीं होते।
- राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटाए गए विधेयक पर नवगठित विधानसभा द्वारा विचार किया जा सकता है तथा उसे पारित किया जा सकता है, भले ही वह विधेयक मूलतः विघटित सदन द्वारा पारित किया गया हो।
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