सदन का नेता (Leader of the House): लोकसभा के नियमों के अनुसार, ‘सदन के नेता’ से तात्पर्य प्रधान मंत्री (या प्रधान मंत्री द्वारा सदन के नेता के रूप में कार्य करने के लिये नामित कोई अन्य मंत्री जो लोकसभा का सदस्य है) से है।
- राज्य सभा में भी ‘सदन का नेता’ होता है जो एक मंत्री और राज्य सभा का सदस्य होता है और इस तरह कार्य करने के लिये प्रधान मंत्री द्वारा इन्हें नामित किया जाता है।
- वह कार्य संचालन पर सीधा प्रभाव डालता/डालती है।
- सदन के नेता के पद का उल्लेख संविधान में नहीं बल्कि सदन के नियमों में है।
विपक्ष के नेता/नेता प्रतिपक्ष (Leader of the Opposition): विपक्ष के नेता के लिए पात्रता
- इतना महत्वपूर्ण पद होने के बावजूद विपक्ष के नेता को संविधान या यहां तक कि लोकसभा की प्रक्रिया नियमावली में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है ।
- विपक्ष के नेता की मान्यता भारत के प्रथम अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर द्वारा शुरू की गई परंपरा पर आधारित है, जिसे मावलंकर नियम के नाम से भी जाना जाता है ।
- संसद के किसी भी सदन में “आधिकारिक विपक्ष” की स्थिति का दावा करने के लिए, किसी पार्टी को लोकसभा में 55 सीटें (10%) और राज्यसभा में 25 सीटें (10%) हासिल करनी होंगी ।
- वह सरकार की नीतियों की रचनात्मक आलोचना करता है और एक वैकल्पिक सरकार प्रदान करता है।
- दोनों सदनों में विपक्ष के नेता को वर्ष 1977 में वैधानिक मान्यता दी गई थी और वे कैबिनेट मंत्री के बराबर वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाओं के हकदार हैं।
विपक्ष के नेता की शक्तियां
- इस पद पर सांसद लोक लेखा, सार्वजनिक उपक्रम, प्राक्कलन और विभिन्न संयुक्त संसदीय समितियों जैसी महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य भी होंगे।
- वे उन चयन समितियों का भी हिस्सा बनने के हकदार हैं जो केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग, सीबीआई, एनएचआरसी और लोकपाल जैसे प्रमुख वैधानिक निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति करती हैं ।
- विपक्षी नेता का मुख्य कार्य सरकार की नीतियों की रचनात्मक आलोचना करना है ।
सचेतक (Whip): प्रत्येक राजनीतिक दल, चाहे वह सत्ताधारी हो या विपक्ष, का संसद में अपना स्वयं का व्हिप अथवा सचेतक होता है।
- उसे राजनीतिक दल द्वारा एक सहायक पटल नेता के रूप में काम करने के लिये नियुक्त किया जाता है, जिस पर बड़ी संख्या में अपनी पार्टी के सदस्यों की उपस्थिति सुनिश्चित करने और किसी विशेष मुद्दे के पक्ष में या उसके खिलाफ उनका समर्थन हासिल करने की ज़िम्मेदारी होती है।
- वह संसद में उनके व्यवहार को नियंत्रित करता है और उसकी निगरानी करता है तथा सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे व्हिप अथवा सचेतक द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करें।
- ‘व्हिप’ के पद का उल्लेख न तो भारतीय संविधान में और न ही ऊपर वर्णित अन्य दो संविधियों में है। यह संसदीय सरकार की परिपाटियों पर आधारित है।
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