डॉ. बी.एल. वधेरा के अनुसार न्यायिक सक्रियता के कारण निम्नलिखित है:-
- उत्तरदायी सरकार उस समय लगभग ध्वस्त हो जाती है जब सरकार की शाखाएँ विधायिका एवं कार्यपालिका अपने-अपने कार्यों का निष्पादन नहीं कर पातीं। परिणामतः तो संविधान तथा लोकतंत्र में नागरिकों का भरोसा टूटता है।
- नागरिक अपने अधिकारों एवं आजादी के लिए न्यायपालिका की ओर देखते हैं। परिणामतः न्यायपालिका पर पीडित जनता को आगे बढ़कर मदद पहुँचाने का भारी दबाव बनता है।
- न्यायिक उत्साह अर्थात् न्यायाधीश भी बदलते समय के समाज सुधार में भागीदार बनना चाहते हें। इससे जनहित याचिकाओं को हस्तक्षेप के अधिकार (Locus Stand) के तहत प्रोत्साहन मिलता है।
- विधायी निर्वात, अर्थात ऐसे कई क्षेत्र हो सकते हें जहाँ विधानों का अभाव है। इसीलिए न्याययलय पर ही जिम्मेदारी आ जाती है कि वह परिवर्तित सामाजिक जरुरतों के हिसाब से न्यायालयीय विधायन का कार्य करे।
- भारत के संविधान में स्वयं ऐसे कुछ प्रावधान हैं जिनमें न्यायपालिका को विधायन यानी कानून बनाने को गुंजाइश है, या एक सक्रिय भूमिका अपनाने का मौका मिलता है।
इसी प्रकार सुभाष कश्यप ने ऐसी कुछ आकस्मिकताओं की चर्चा की है जब न्यायपालिका अपने सामान्य क्षेत्राधिकार को लाँघकर ऐसे क्षेत्र में दखल दे जो कि विधायिका या कार्यपालिका को हो सकता है।
- जब विधायिका अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने में विफल हो गई हो, की स्थिति में जब सरकार कमजोर व असुरक्षित हो और ऐसे निर्णय लेने में अक्षम हो जिससे कोई जाति या समुदाय या अन्य समूह अप्रसन्न हो सकता है।
- सत्तासीन दल सत्ता खोने के भय से ईमानदार और कड़ा निर्णय लेने से डर सकता है और इसी कारण से समय लगने और निर्णय लेने में देरी करने अथवा न्यायालयों पर कठोर निर्णय लेने संबंधी दुर्भावना डालने के लिए जन मुद्दों को संदर्भित कर दिया जाता है।
- जहाँ कि विधायिका और कार्यपालिका नागरिकों के मूल अधिकारों जैसे – गरिमापूर्ण जीवन, स्वास्थ्यकर परिवेश का संरक्षण करने में विफल हो, अथवा कानून एवं प्रशासन को एक ईमानदार, कार्यकुशल एवं न्यायपूर्ण व्यवस्था देने में विफल हों।
- जहाँ कि विधि के न्यायालय का मजबूत, सर्वसत्तावादी संसदीय दलवाली सरकार द्वारा गलत नीयत या उद्देश्यों से दुरुपयोग हो रहा हो जैसा कि आपातकाल के दौरान हुआ था।
- कभी-कभी न्यायालय जाने-अनजाने स्वयं मानवीय प्रवृत्तियों, लोकलुभावनवाद, प्रचार, मीडिया की सुर्खियाँ बटोरने आदि का शिकार हो जाता है।
डॉ. वंदना के अनुसार न्यायिक सक्रियता की अवधारणा में निम्नलिखित प्रवृतियां देखी जा सकती हैः-
- प्रशासनिक प्रक्रिया में सुनवाई के अधिकार का विस्तार।
- बिना किसी सीमा के अत्यधिक प्रतिनिधिमंडल।
- विवेकाधीन शाक्तियों को नियंत्रित करने के लिए न्यायिक नियंत्रण का विस्तार।
- प्रशासन को नियंत्रित करने क लिए न्यायिक समीक्षा का विस्तार।
- पारदर्शी सरकार (Open Government) के बढ़ावा देना।
- अवमानना शक्ति का अंधाधुध प्रयोग।
- अवास्तविकता के विरूद्ध न्यायिकता का प्रयोग।
- आर्थिक, सामाजिक एवं शैतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्याख्या के मानक नियमों का विस्तार।
- आदेश पास करना जो कि वास्तव में असाध्य हैं
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