- अनुच्छेद 348 (1) (A), जब तक संसद कानून द्वारा अन्यथा प्रदान नहीं करती है, सर्वोच्च न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय के समक्ष सभी कार्यवाही अंग्रेज़ी में आयोजित की जाएगी।
- अनुच्छेद 348 (2) यह भी प्रावधान करता है कि अनुच्छेद 348 (1) के प्रावधानों के बावजूद किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिंदी या किसी भी आधिकारिक उद्देश्य के लिये इस्तेमाल की जाने वाली किसी अन्य भाषा के उपयोग को अधिकृत कर सकता है।
- उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश राज्यों ने पहले ही अपने-अपने उच्च न्यायालयों के समक्ष कार्यवाही में हिंदी के उपयोग को अधिकृत कर दिया है और तमिलनाडु भी अपने उच्च न्यायालय के समक्ष तमिल भाषा के उपयोग को अधिकृत करने के लिये उसी दिशा में काम कर रहा है
- एक अन्य प्रावधान में यह कहा गया है कि इस खंड का कोई भी भाग उच्च न्यायालय द्वारा किये गए किसी भी निर्णय, डिक्री या आदेश पर लागू नहीं होगा।
- इसलिये संविधान इस चेतावनी के साथ अंग्रेज़ी को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की प्राथमिक भाषा के रूप में मान्यता देता है कि भले ही उच्च न्यायालयों की कार्यवाही में किसी अन्य भाषा का उपयोग किया जाए लेकिन उच्च न्यायालयों के निर्णय अंग्रेज़ी में दिये जाने चाहये।
राजभाषा अधिनियम 1963:-
- राजभाषा अधिनियम- 1963 राज्यपाल को यह अधिकार देता है कि वह राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से उच्च न्यायलय द्वारा दिये गए निर्णयों, पारित आदेशों में हिंदी अथवा राज्य की किसी अन्य भाषा के प्रयोग की अनुमति दे सकता है, परंतु इसके साथ ही इसका अंग्रेज़ी अनुवाद भी संलग्न करना होगा।
- यह प्रावधान करता है कि जहाँ कोई निर्णय/आदेश ऐसी किसी भी भाषा में पारित किया जाता है, तो उसके साथ उसका अंग्रेज़ी में अनुवाद होना चाहिये।
- यदि इसे संवैधानिक प्रावधानों के साथ पढ़ें तो यह स्पष्ट है कि इस अधिनियम द्वारा भी अंग्रेज़ी को प्रधानता दी गई है।
- राजभाषा अधिनियम में सर्वोच्च न्यायालय का कोई उल्लेख नहीं है,जहाँ अंग्रेज़ी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें कार्यवाही की जाती है।
नोट:
- वादी को अदालत की कार्यवाही को समझने और उसमें भाग लेने का मौलिक अधिकार है क्योंकि यह यकीनन अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 के तहत अधिकारों का एक बंडल प्रदान करता है।
- वादी को मज़िस्ट्रेट के सामने उस भाषा में बोलने का अधिकार है जिसे वह समझता/समझती है। इसी तरह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “न्याय के अधिकार” को भी मान्यता दी गई है।
- इसलिये संविधान ने वादी को न्याय का अधिकार प्रदान किया है जिसमें आगे यह भी शामिल है कि उसे पूरी कार्यवाही तथा दिये गए निर्णय को समझने का अधिकार होगा।
अधीनस्थ न्यायालयों की भाषा:-
- उच्च न्यायालयों के अधीनस्थ सभी न्यायालयों की भाषा आमतौर पर वही रहती है जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किये जाने तक सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के प्रारंभ पर भाषा के रूप में होती है।
- अधीनस्थ न्यायालयों में भाषा के प्रयोग के संबंध में प्रावधान में यह शामिल है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 137 के तहत ज़िला न्यायालयों की भाषा अधिनियम की भाषा के समान होगी।
- राज्य सरकार के पास न्यायालय की कार्यवाही के विकल्प के रूप में किसी भी क्षेत्रीय भाषा को घोषित करने की शक्ति है।
- हालाँकि मजिस्ट्रेट द्वारा अंग्रेज़ी में निर्णय, आदेश और डिक्री पारित की जा सकती है।
- साक्ष्यों को दर्ज करने का कार्य राज्य की प्रचलित भाषा में किया जाएगा।
- अभिवक्ता के अंग्रेज़ी से अनभिज्ञ होने की स्थिति में उसके अनुरोध पर अदालत की भाषा में अनुवाद उपलब्ध कराया जाएगा और इस तरह की लागत अदालत द्वारा वहन की जाएगी।
- दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 272 में कहा गया है कि राज्य सरकार उच्च न्यायालयों के अलावा अन्य सभी न्यायालयों की भाषा का निर्धारण करेगी। मोटे तौर पर इसका तात्पर्य यह है कि ज़िला अदालतों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा राज्य सरकार के निर्देशानुसार क्षेत्रीय भाषा होगी।
अंग्रेज़ी प्रयोग करने का कारण:-
- जिस तरह पूरे देश से मामले सर्वोच्च न्यायालय में आते हैं, उसी तरह सर्वोच्च न्यायालय के जज और वकील भी भारत के सभी हिस्सों से आते हैं।
- न्यायाधीशों से शायद ही उन भाषाओं में दस्तावेज़ पढ़ने और तर्क सुनने की उम्मीद की जा सकती है जिनसे वे परिचित नहीं हैं।
- अंग्रेज़ी के प्रयोग के बिना अपने कर्तव्य का निर्वहन करना असंभव होगा। सर्वोच्च न्यायालय के सभी निर्णय भी अंग्रेज़ी में दिये जाते हैं।
- हालाँकि वर्ष 2019 में न्यायालय ने अपने निर्णयों को क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिये एक पहल की शुरुआत की, बल्कि यह एक लंबा आदेश है, जो न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णयों की भारी मात्रा को देखते हुए दिया गया है।
अंग्रेज़ी का उपयोग करने का महत्त्व:-
- एकरूपता: वर्तमान में भारत में न्यायिक प्रणाली पूरे देश में अच्छी तरह से विकसित, एकीकृत और एक समान है।
- आसान पहुँच: वकीलों के साथ-साथ न्यायाधीशों को समान कानूनों और कानून व संविधान के अन्य मामलों पर अन्य उच्च न्यायालयों के विचारों तक आसान पहुँच का लाभ मिलता है।
- निर्बाध स्थानांतरण: वर्तमान में एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अन्य उच्च न्यायालयों में निर्बाध रूप से स्थानांतरित किया जाता है।
- एकीकृत संरचना: इसने भारतीय न्यायिक प्रणाली को एक एकीकृत संरचना प्रदान की है। किसी भी मज़बूत कानूनी प्रणाली की पहचान यह है कि कानून निश्चित, सटीक और अनुमानित होना चाहिये तथा हमने भारत में इसे लगभग हासिल कर लिया है।
- संपर्क भाषा: बहुत हद तक हम अंग्रेज़ी भाषा के लिये ऋणी हैं, जिसने भारत के लिये एक संपर्क भाषा के रूप में कार्य किया है जहाँ हमारे पास लगभग दो दर्जन आधिकारिक राज्य भाषाएँ हैं।
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