गुजराल सिद्धांत क्या है:-
- 21 अप्रैल, 1997 को, श्री इंद्र कुमार गुजराल भारत के 12वें प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए। उन्होंने 19 मार्च, 1998 तक उस पद पर कार्य किया।
- जब वे एच. डी. देवेगौड़ा प्रशासन में विदेश मंत्री थे, तो उन्होंने 1996 में इस सिद्धांत को किया।
- उन्होंने सिद्धांतों को गहरा किया और इसलिए उन्हें गुजराल सिद्धांत के पिता के रूप में जाना जाता है।
- गुजराल सिद्धांत को भारतीय विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।
- इस सिद्धांत के अनुसार, “भारत” को अपने छोटे पड़ोसियों को एकतरफा रियायतें देनी चाहिए और उनके साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना चाहिए क्योंकि यह दक्षिण एशिया का बड़ा देश है।
- गुजराल सिद्धांत ने भारत के पड़ोसियों के प्रति अपने दृष्टिकोण को व्यक्त किया, जिसे बाद में गुजराल सिद्धांत के रूप में जाना गया। इसमें पाँच बुनियादी सिद्धांत शामिल थे। इसकी रूपरेखा सितंबर 1996 में लंदन के चैथम हाउस में एक भाषण में व्यक्त की गई थी।
- गुजराल सिद्धांत के पाँच बुनियादी सिद्धांत:
- भारत को अपने पड़ोसी देशों नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और श्रीलंका के साथ विश्वसनीय संबंध स्थापित करने होंगे, उनके साथ विवादों को बातचीत से सुलझाना होगा तथा उन्हें दी गई किसी मदद के बदले में तुरंत कुछ हासिल करने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये।
- दक्षिण एशियाई देश क्षेत्र में किसी अन्य देश के हितों को नुकसान पहुँचाने के लिये अपने क्षेत्र का उपयोग बर्दाश्त नहीं करेंगे।
- कोई भी देश किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
- सभी दक्षिण एशियाई देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिये।
- राष्ट्र अपने सभी विवादों को शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाएंगे।
- गुजराल सिद्धांत का मानना था कि भारत का वृहत आकार और जनसंख्या स्वाभाविक रूप से इसे दक्षिण-पूर्व एशिया में एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में स्थापित करती है।
- अपनी स्थिति और प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिये सिद्धांत में छोटे पड़ोसी देशों के प्रति एक गैर-प्रमुख दृष्टिकोण अपनाने का समर्थन किया गया। इस प्रकार यह पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण, सौहार्दपूर्ण संबंधों के सर्वोच्च महत्त्व को प्रदर्शित करता है।
- इसने चल रही वार्ता को बनाए रखने और अन्य देशों के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने जैसे अनावश्यक उकसावे के प्रयास से बचने के महत्त्व पर भी बल दिया।
गुजराल सिद्धांत कितना सफल रहा?
- विदेश नीति के प्रति गुजराल के दृष्टिकोण ने भारत के पड़ोसी देशों के प्रति विश्वास और सहयोग की भावना को मज़बूत करने में मदद की।
- भारत और बांग्लादेश के बीच जल-साझा संधि-1977 वर्ष 1988 में समाप्त हो गई, दोनों पक्षों की अस्पष्टता/अनम्यता के कारण इस पर वार्ता विफल हो गई। बांग्लादेश के साथ जल-साझा विवाद का समाधान वर्ष 1996-97 में केवल तीन महीने में कर लिया गया।
- भारत ने गंगा में जल प्रवाह बढ़ाने के लिये एक नहर परियोजना हेतु भूटान से मंज़ूरी प्राप्त की।
- यह नेपाल के साथ जल विद्युत् उत्पादन के लिये महाकाली नदी को नियंत्रित करने की संधि के साथ मेल खाता है।
- इसके उपरांत विकास सहयोग बढ़ाने के लिये श्रीलंका के साथ समझौते किये गए।
- इसके अतिरिक्त इससे पाकिस्तान के साथ समग्र वार्ता की शुरुआत हुई।
- समग्र वार्ता इस सिद्धांत पर आधारित थी कि संबंधो के संपूर्ण पहलू गंभीर समस्या-समाधान संवाद के अंतर्गत आते हैं।
- सहमत क्षेत्रों (व्यापार, यात्रा, संस्कृति आदि) में सहमत शर्तों पर सहयोग शुरू होना चाहिये, भले ही कुछ विवाद अनसुलझे हों।
गुजराल सिद्धांत की क्या आलोचनाएँ हैं?
- पाकिस्तान के प्रति उदार दृष्टिकोण: पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाने तथा भारत को भविष्य के आतंकी हमलों के खतरों के प्रति असुरक्षित छोड़ने के लिये गुजराल सिद्धांत की आलोचना की गई थी।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: कुछ लोगों का मानना था कि यह अत्यधिक आदर्शवादी है तथा भारत की सुरक्षा चिंताओं की उपेक्षा करता है। आलोचकों ने तर्क दिया कि यह सिद्धांत भारत के कुछ पड़ोसियों द्वारा उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियों, विशेष रूप से ऐतिहासिक संघर्षों एवं चल रहे भू-राजनीतिक मुद्दों के संदर्भ में पर्याप्त समाधान नहीं प्रदान करता है।
- द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान करने में विफलता: गुजराल सिद्धांत ने भारत तथा उसके पड़ोसियों के बीच लंबे समय से चले आ रहे द्विपक्षीय मुद्दों का प्रभावी ढंग से समाधान नहीं किया। उदाहरण के लिये कुछ आलोचकों के अनुसार, क्षेत्रीय विवाद एवं सीमा पार आतंकवाद जैसे मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।
- घरेलू स्तर पर विरोध: कुछ लोगों ने तर्क दिया कि सद्भावना तथा गैर-पारस्परिकता पर ज़ोर देना कमज़ोरी के रूप में माना जा सकता है एवं विरोधियों द्वारा इसका फायदा उठाया जा सकता है।
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