NHRC की कार्यप्रणाली की कमियाँ :-
- सिफारिशों की गैर-बाध्यकारी प्रकृति
- हालाँकि NHRC मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करता है और सिफारिशें प्रदान करता है, किंतु यह अधिकारियों को विशिष्ट कार्रवाई करने के लिये बाध्य नहीं कर सकता है। इसका प्रभाव विधिक के बजाय काफी हद तक नैतिक होता है।
- उल्लंघनकर्त्ताओं को दंडित करने में असमर्थता:
- NHRC के पास उल्लंघनकर्त्ताओं को दंडित करने का अधिकार नहीं है। मानवाधिकारों के हनन के अपराधियों की पहचान किये जाने के बावजूद NHRC अभियुक्त पर सीधे ज़ुर्माना नहीं लगा सकता या फिर पीड़ितों को राहत नहीं प्रदान कर सकता है। यह सीमा इस आयोग की प्रभावशीलता को कम कर देती है।
- सशस्त्र बल संबंधी मामलों में सीमित भूमिका:
- सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में NHRC का हस्तक्षेप प्रतिबंधित है। सैन्य कर्मियों से जुड़े मामले अक्सर इस आयोग के दायरे से बाहर होते हैं।
- मानवाधिकार उल्लंघन संबंधी पुराने मामले में समय सीमाएँ:
- NHRC एक वर्ष के बाद रिपोर्ट किये गए मानवाधिकार उल्लंघनों के मामलों पर विचार नहीं कर सकता। यह सीमा NHRC को पुरानी अथवा विलंबित मानवाधिकार शिकायतों का प्रभावी निपटान करने से रोकती है।
- संसाधनों की कमी:
- संसाधनों की कमी NHRC के समक्ष एक अन्य समस्या है। मामलों की अत्यधिक संख्या और संसाधनों की सीमितता के कारण आयोग को जाँच, पूछताछ और जन जागरूकता अभियानों को कुशलतापूर्वक संभालने के लिये संघर्ष करना पड़ता है।
- कई राज्य मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष के पद रिक्त हैं, वे इनके बिना ही कार्य कर रहे हैं और NHRC के ही सामान राज्य मानवाधिकार आयोग में भी कर्मचारियों की कमी की समस्या बनी हुई है।
- स्वायतत्ता का अभाव:
- NHRC की संरचना सरकारी नियुक्तियों पर निर्भर करती है। राजनीतिक प्रभाव से पूर्ण स्वतंत्रता सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है, यह इस आयोग की विश्वसनीयता को प्रभावित करती है।
- सक्रिय हस्तक्षेप की आवश्यकता:
- NHRC अक्सर शिकायतों पर सक्रियता से प्रतिक्रिया देता है। निवारक उपायों और शीघ्र हस्तक्षेप सहित अधिक सक्रिय दृष्टिकोण इसकी प्रभावशीलता में वृद्धि कर सकते हैं।
- सिफारिशों की गैर-बाध्यकारी प्रकृति
NHRC के काम को सुदृढ़ करने हेतु उठाए जाने वाले कदम :-
- व्यापकता और प्रभावशीलता में सुधार:
- उभरती मानवाधिकार चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये NHRC के अधिदेश का विस्तार करना। उदाहरणतः कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डीप फेक, क्लाइमेट चेंज आदि।
- प्रवर्तन शक्तियाँ प्रदान करना:
- अपनी सिफारिशों को लागू करने के लिये NHRC को दंडात्मक शक्तियों से सशक्त बनाना। इससे जवाबदेही और अनुपालन में वृद्धि होगी।
- संरचना में सुधार:
- वर्तमान संरचना में विविधता का अभाव है। समग्र परिप्रेक्ष्य सुनिश्चित करने के लिये नागरिक समाज, कार्यकर्त्ताओं और विशेषज्ञों से सदस्यों की नियुक्ति करना।
- एक स्वतंत्र कैडर का विकास करना:
- NHRC को संसाधन संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। NHRC को मानवाधिकारों में प्रासंगिक विशेषज्ञता और अनुभव वाले कर्मचारियों का एक स्वतंत्र कैडर स्थापित करने की आवश्यकता है।
- राज्य मानवाधिकार आयोग का सशक्तीकरण:
- राज्य मानवाधिकार आयोगों के बीच सहयोग, क्षमता निर्माण और ज्ञान साझा करने की सुविधा प्रदान की जानी चाहिये।
- प्रोत्साहन और जन जागरूकता:
- प्रतिक्रियाशील प्रक्रियाओं का प्रभाव सीमित हो सकता है, अतएव नागरिकों को उनके अधिकारों को लेकर सशक्त बनाने के लिये सक्रिय रूप से जागरूकता अभियान और शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग:
- भारत अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों से सीख सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार निकायों के साथ सहयोग कर सकता है, उनकी प्रथाओं से सीखते हुए प्रासंगिक रणनीतियाँ तैयार कर सकता है।
- व्यापकता और प्रभावशीलता में सुधार:
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