विधानसभा का गठन
भारत में विधानसभा सदस्यों की संख्या
- भारत में, प्रत्येक राज्य की विधानसभा में सदस्यों की संख्या राज्य की जनसंख्या के आधार पर निर्धारित की जाती है।
- संविधान के अनुच्छेद 172 के अनुसार, प्रत्येक राज्य की विधानसभा में सदस्यों की संख्या 60 से कम और 500 से अधिक नहीं हो सकती है।
- भारतीय निर्वाचन आयोग प्रत्येक दस साल में जनगणना के आंकड़ों के आधार पर विधानसभा क्षेत्रों का पुनः परिसीमन करता है।
नामित सदस्यः-
- राज्यपाल, आंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य को नामित कर सकता है ।
- यदि इस समुदाय का प्रतिनिधि विधानसभा में पर्याप्त नहीं हो ।
- मूलतः यह उपबंध दस वर्षो (1960 तक) के लिए था, लेकिन इसे हर बार 10 वर्षो के लिए बढ़ा दिया गया।
- 95वें संविधान संशोधन 2009 में इसे 2020 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्र:-
- विधानसभा के लिए होने वाले प्रत्यक्ष निर्वाचन पर नियंत्रण के लिए हर राज्य को क्षेत्रीय विभाजन के आधार पर बांट दिया गया है ।
- इन चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण, राज्य को आवंटित सीटों को संख्या को जनसंख्या के अनुपात से तय किया जाता है।
- दूसरे शब्दों में, संविधान में यह सुनिश्चित किया गया कि राज्य के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को समान प्रतिनिधित्व मिले ।
- ‘ जनसंख्या ‘ का अभिप्राय बह पिछली जनगणना है, जिसकी सूची प्रकाशित को गई हो।
अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए स्थानों का आरक्षण:
संविधान में राज्य को जनसंख्या के अनुपात के आधार पर प्रत्येक राज्य को विधानसभा के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति को सीटों की व्यवस्था की गई है मूल रूप से यह आरक्षण 10 वर्ष (1960 तक) के लिए था लेकिन इस व्यवस्था को हर बार दस वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया।
विधानपरिषद का गठन
संख्या :
- विधानसभा सदस्यों के विपरीत विधानपरिषद के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं ।
- परिषद में अधिकतम संख्या बिधानसभा की एक-तिहाई और न्यूनतम 40° निश्चित है |
- इसका मतलब संबंधित राज्य में परिषद सदस्य की संख्या, विधानसभा के आकार पर निर्भर है । ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया कि प्रत्यक्ष निर्वाचित सदन (सभा) का प्रभुत्व राज्य के मामलों में बना रहे ।
- यद्यपि संविधान ने परिषद को अधिकतम एवं न्यूनतम संख्या तय कर दी है । इसकी वास्तविक संस्था का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है ।
विधानपरिषद के सदस्य
- संविधान के अनुच्छेद 171 के अनुसार, विधानपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं होगी, किंतु यह सदस्य संख्या 40 से कम नहीं चाहिये।
- मध्य प्रदेश में जहाँ विधानसभा सदस्यों की संख्या 230 है, प्रस्तावित विधानपरिषद में अधिकतम 76 सदस्य हो सकते हैं।
- राज्यसभा सांसद की ही तरह विधानपरिषद सदस्य (MLC) का कार्यकाल भी 6 वर्ष का होता है, जहाँ प्रत्येक दो वर्ष की अवधि पर इसके एक-तिहाई सदस्य कार्यनिवृत्त हो जाते हैं।
विधानपरिषद का चुनाव
- विधानपरिषद के एक-तिहाई सदस्य राज्य के विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं;
- अन्य एक-तिहाई सदस्य एक विशेष निर्वाचक-मंडल द्वारा निर्वाचित होते हैं जिसमें नगरपालिकाओं, ज़िला बोर्डों और अन्य स्थानीय प्राधिकारों के सदस्य शामिल होते हैं;
- इसके अतिरिक्त, सदस्यों के बारहवें भाग का निर्वाचन शिक्षकों के निर्वाचक-मंडल द्वारा और
- एक अन्य बारहवें भाग का निर्वाचन पंजीकृत स्नातकों के निर्वाचक-मंडल द्वारा किया जाता है।
- शेष सदस्यों को विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट सेवाओं के लिये राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है।
सदस्य, एकल संक्रमणीय मत के द्वारा समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के माध्यम से चुने जाते हैं । राज्यपाल द्वारा नामित सदस्यों को किसी भी स्थिति में अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। विधानपरिषद के गठन को यह प्रक्रिया संविधान में अस्थायी है, न कि अंतिम। संसद इसको बदलने और सुधारने के लिए अधिकृत है, हालांकि अभी तक संसद ने ऐसी कोई विधि नहीं बनाई है।
दोनों सदनों का कार्यकाल:-
विधानसभा का कार्यकाल
- संविधान के अनुच्छेद 172 के अनुसार, राज्य विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष निश्चित किया गया है।
- इस निश्चित समय से पहले भी राज्यपाल विधानसभा को भंग कर सकता है।
- आपातकालीन स्थिति में, संघीय संसद कानून बनाकर किसी राज्य विधानसभा की अवधि अधिक-से-अधिक एक समय में एक वर्ष बढ़ा सकता है।
- आपात स्थिति की समाप्ति के पश्चात यह बढ़ायी हुई अवधि केवल 6 मास तक लागू रह सकती है ।
विधानपरिषद का कार्यकाल
- विधान परिषद एक स्थायी सदन होता है, और राज्यपाल इसको भंग नहीं कर सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 172 के अनुसार, विधान परिषद का चुनाव एक ही समय नहीं होता, बल्कि हर दो वर्ष पश्चात इसके एक तिहाई सदस्य अवकाश ग्रहण करते है ।
- और उनके स्थान पर नये सदस्य चुन लिये जाते है ।
- अतः विधान परिषद का हर सदस्य छः साल तक अपने पद पर आसीन रहता है।
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