निर्देशक सिद्धांतों की कुछ विशेषताएं हैं जो इसे मौलिक अधिकारों से अलग करती हैं। दोनों के बीच सबसे महत्वपूर्ण संघर्ष यह है कि मौलिक अधिकार न्यायोचित हैं, जबकि निर्देशक सिद्धांत न्यायोचित नहीं हैं।
नीति निर्देशक सिद्धांतों की कई विशेषताएं हैं:
- वे मौलिक अधिकारों के साथ संघर्ष करते हैं।
- वे न्यायालय में न्यायोचित नहीं हैं।
- इन्हें किसी कानूनी प्रक्रिया द्वारा लागू नहीं किया जा सकता।
- वे समय-समय पर परिवर्तन के अधीन हैं।
- वे स्थिर नहीं हैं और लोगों की जरूरतों के अनुसार बदले जा सकते हैं।
- इन्हें संसद द्वारा संशोधित या निरस्त किया जा सकता है।
- वे स्थायी नहीं हैं और समाज की बदलती जरूरतों के अनुसार उन्हें बदला जा सकता है।
- वे किसी भी कानूनी प्रक्रिया द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं।
- वे लोगों के दीर्घकालिक कल्याण के लिए हैं न कि तत्काल लाभ के लिए।
- वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
- वे कल्याणकारी राज्य की स्थापना की ओर निर्देशित हैं।
- वे सिद्धांत निर्धारित करते हैं जो सरकार को कानून और नीतियां बनाने में मार्गदर्शन करेंगे।
- उनका उद्देश्य लोगों की सामान्य भलाई को बढ़ावा देना है।
- वे समाजवाद के दर्शन पर आधारित हैं।
- वे भावी पीढ़ियों के मार्गदर्शन के लिए हैं।
मौलिक अधिकार बनाम DPSP:
- मौलिक अधिकारों (FRs) के विपरीत DPSP का दायरा असीम है और यह एक नागरिक के अधिकारों की रक्षा करता है और वृहद स्तर पर कार्य करता है।
- DPSP में वे सभी आदर्श शामिल हैं जिनका पालन राज्य को देश के लिये नीतियाँ और कानून बनाते समय ध्यान में रखना चाहिये।
- मौलिक अधिकारों का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक न्याय, व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्थिति और अवसर की समानता सुनिश्चित करना है, जबकि नीति
- निर्देशक सिद्धांत उन सिद्धांतों को निर्धारित करते हैं जो इन अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए कानून बनाने में राज्य का मार्गदर्शन करते हैं।
- मौलिक अधिकार प्रकृति में नकारात्मक या निषेधात्मक हैं क्योंकि वे राज्य पर सीमाएँ आरोपित करते हैं।
- दूसरी ओर निदेशक सिद्धांत सकारात्मक निर्देश हैं, DPSP कानून द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं।
- यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि DPSP और मौलिक अधिकार साथ-साथ चलते हैं।
- DPSP मौलिक अधिकार के अधीनस्थ नहीं है।
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