संविधान सभा भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण संस्था थी संविधान सभा कि पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को हुए। मुस्लिम लीग ने बैठक का बहिस्कार किया और अलग पाकिस्तान कि मांग कि इसलिए बैठक में केवल 211 सदस्य ने हिस्सा लिया। सभा के सबसे बड़े सदस्य सचिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। बाद में डॉ राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष निर्वाचित हुए। संविधान सभा की विशेषताएं-
- संप्रभु सभा: यह एक स्वतंत्र और संप्रभु सभा थी जिसे भारत के लिए संविधान बनाने का पूर्ण अधिकार था।
- विभिन्न विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व: इसमें विभिन्न राजनीतिक दलों, विचारधाराओं और समुदायों के प्रतिनिधि शामिल थे।
- विभिन्न विचारधाराओं के प्रतिनिधित्व ने यह सुनिश्चित करने में मदद की कि संविधान सभी नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करता है, चाहे उनकी जाति, धर्म, लिंग या सामाजिक-आर्थिक स्थिति कुछ भी हो।
- विभिन्न प्रतिनिधियों ने महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनाने के लिए मिलकर काम किया। इसने एक ऐसा संविधान बनाने में मदद की जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बढ़ावा देता है।
- विभिन्न प्रावधानों पर गहन और सार्थक बहस को जन्म दिया। इसने एक मजबूत और टिकाऊ संविधान बनाने में मदद की जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है।
- विद्वानों और विशेषज्ञों का समावेश: इसमें डॉ. बी.आर. अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, और अन्य जैसे कई विद्वान और विशेषज्ञ शामिल थे।
- विषय-वस्तु की गहन समझ: विद्वानों और विशेषज्ञों ने अपनी विशेषज्ञता का उपयोग संविधान के विभिन्न पहलुओं पर गहन जानकारी और समझ प्रदान करने के लिए किया। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि संविधान कानूनी रूप से व्यावहारिक और न्यायसंगत हो।
- तुलनात्मक अध्ययन: विद्वानों और विशेषज्ञों ने दुनिया भर के विभिन्न संविधानों का अध्ययन किया और उनसे तुलना की, जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि भारत का संविधान सर्वोत्तम अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं को अपनाता है।
- मसौदे की समीक्षा(Review of the draft): विद्वानों और विशेषज्ञों ने संविधान के मसौदे की सावधानीपूर्वक समीक्षा की और सुझाव दिए, जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि यह त्रुटियों और विसंगतियों से मुक्त हो।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया: इसके सदस्यों को जनता द्वारा चुने गए विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुना गया था।
- खुली बहस और चर्चा: इसकी बैठकें खुली थीं और सदस्यों ने संविधान के विभिन्न प्रावधानों पर स्वतंत्र रूप से बहस और चर्चा की।
- समृद्ध और समावेशी संविधान: खुली बहस और चर्चा ने यह सुनिश्चित करने में मदद की कि संविधान विभिन्न समुदायों और समूहों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को दर्शाता है।
- टिकाऊ संविधान: खुली बहस और चर्चा ने यह सुनिश्चित करने में मदद की कि संविधान अच्छी तरह से विचार किया गया था और समय की कसौटी पर खरा उतरेगा।
- जनता का विश्वास: खुली बहस और चर्चा ने जनता में संविधान के प्रति विश्वास और स्वीकृति पैदा करने में मदद की।
संविधान सभा के कार्य –
- भारत के लिए एक लिखित संविधान का निर्माण: यह इसका मुख्य कार्य था। संविधान ने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया।
- मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों का निर्धारण: इसने भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान किए, जैसे कि समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, और सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार। इसने नागरिकों के कुछ मौलिक कर्तव्यों को भी निर्धारित किया।
- शासन की संसदीय प्रणाली स्थापित करना: इसने भारत में संसदीय प्रणाली की स्थापना की, जिसमें राष्ट्रपति राष्ट्र प्रमुख होते हैं और प्रधानमंत्री सरकार के प्रमुख होते हैं।
- स्वतंत्र न्यायपालिका का निर्माण: इसने भारत में एक स्वतंत्र और मजबूत न्यायपालिका की स्थापना की, जो कानून का शासन बनाए रखेगी और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेगी।
- निर्वाचन प्रणाली की स्थापना: इसने भारत में एक लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली की स्थापना की, जिसमें सभी नागरिकों को समान वोट देने का अधिकार है।
- राष्ट्रपति, मंत्रिमंडल और संसद की शक्तियों और कार्यों को परिभाषित करना: इसने राष्ट्रपति, मंत्रिमंडल और संसद की शक्तियों और कार्यों को परिभाषित किया
अन्य कार्य
- 22 जुलाई 1947 को सभा ने राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया।
- कानून बनाना
- मई 1949 में सभा ने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता को मंजूरी दी।
- 24 जनवरी 1950 को इस समिति के माध्यम से डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए।
- 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत दोनों को अपनाया गया।
- 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिनों में 11 बैठकें हुई। इसके बाद सभा ने 26 जनवरी 1950 से 1951-52 में हुई आम चुनावों के बाद बनने वाली नयी संसद के निर्माण तक भारत की अंतरिम संसद के रूप में काम किया।
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