पूर्ववर्ती योजना आयोग को स्थापना मार्च 1950 में भारत सरकार के एक कार्यपालकीय संकल्प द्वारा की गई थी, जो कि 1946 में गठित सलाहकार योजना बोर्ड की सिफारिश के अनुरूप थी। इस बोर्ड के अध्यक्ष के.सी. नियोगी और इस प्रकार योजना आयोग भी न तो संवैधानिक न ही वैधानिक निकाय था। भारत में यह सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए नियोजन का शीर्ष अंग था।
कार्य:-
पूर्ववर्ती योजना आयोग क निम्नलिखित कार्य थेः
- देश के भौतिक, पूँजी एवं मानव संसाधन का आकलन का उनको संवृद्धि को संभावना तलाश करना।
- देश के संसाधनों का सबसे प्रभावी एवं संतुलित उपयोग के लिए योजना का सूत्रण करना।
- . प्राथमिकताओं का निर्धारण और उन चरणों को परिभाषित करना जिनमें योजनाओं को कार्यान्वित करना है।
- आर्थिक विकास को धीमा करने वाले कारकों की पहचान करना।
- योजना के प्रत्येक चरण के सफल कार्यान्वयन के लिए जरूरी मशीनरी की प्रकृति का निर्धारण।
- योजना का लागू करने में हुई प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन करना तथा जरूरी समायोजनाओं को अनुशंसा करना।
- अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए उपयुक्त अनुशंसा करना और ऐसे मामलों पर अनुशंसा देना जो इसकी सलाह के लिए केन्द्र अथवा राज्य सरकारों द्वारा संदर्भित किए गए हैं।
पूर्ववर्ती योजना आयोग को निम्नलिखित मामले (उपरोक्त के अतिरिक्त) सोपे थे:
- राष्ट्रीय विकास में जन-सहयोग .
- समय-समय पर अधिसूचित क्षेत्र विकास के विशेष कार्यक्रम
- परिप्रेक्ष्य नियोजन (Perspective Planning) .
- इंस्टीट्यूट ऑफ अपलॉयड मैनपॉवर रिसर्च (Institute of Applied Manpower Research)
- भारतीय विशिष्ठ पहचान प्राधिकरण Identificaton Authority of India)
- राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (National Rainfed Area Authority, NRAA) से संबंधित सभी मामले।
पूर्ववर्ती योजना आयोग के गठन (सदस्यता) के संदर्भ में निम्न बिन्दुओं का उल्लेख किया जा सकता हैः
1. भारत के प्रधानमंत्री योजना आयोग के अध्यक्ष थे। वही आयोग की बैठकों की अध्यक्षता करते थे।
2. आयोग का एक उपाध्यक्ष होता था, जो कि आयोग का वास्तविक प्रमुख था (अर्थात् पूर्णकालिक कार्यात्मक प्रमुख) पंचवर्षीय योजना को तैयार कर उसका प्रारुप केन्द्रीय मंत्रिमंडल को सौंपने की जिम्मेदा री उसी की थी। उसकी नियुक्ति एक निश्चित कार्यकाल के लिए केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा की जाती थी और उसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त था, हालाँकि वह मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं थ, वह मंत्रिमंडल की बैठकों में आमंत्रित किया जाता था (बिना मत देने के अधिकार के)
3. कुछ केन्द्रीय मंत्री आयोग के अंशकालिक सदस्य के रूप में नियुक्त होते थे। वैसे वित्त मंत्री एवं योजना मंत्री आयोग के पदेन सदस्य होते थे।
4. आयोग के चार से सात पूर्णकालिक विशेषज्ञ सदस्य होते थे। उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त था।
5. आयोग का एक सदस्य सचिव होता था जो कि एक वरिष्ठ आइ.ए,एस. पदाधिकारी होता था। आयोग में राज्यों का किसी भी तरह का प्रतिनिधित्व नहीं था। इसलिए योजना आयोग पूर्णतया केन्द्र द्वारा गठित एक संस्था थी।
आंतरिक गठन:-
योजना आयोग के निम्नलिखित तीन अंग थे:
- तकनीको प्रभाग (Technical Division)
- हाउस-कीपिंग शाखाएँ (House Keeping Branches)
- कार्यक्रम सलाहकार (Programme Advisors)
1. तकनीको प्रभाग (Technical Division):- तकनीकी प्रभाग तकनीकी प्रभाग योजना आयोग की प्रमुख कार्यात्मक इकाइयाँ थे। उनका संबंध मुख्यतः योजना-सूत्रण, योजना अनुश्रबण तथा योजना मूल्यांकन से था। इनकी दो कोटियाँ थीं सामान्य प्रभाग (जिनका संबंध सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से था) तथा विषय प्रभाग, जिनका संबंध विकास के विशिष्ठ क्षेत्रों से था)।
2. हाउस-कीपिंग शाखाएँ (House Keeping Branches):- हाउसकीपिंग शाखाएँ योजना आयोग में निम्नलिखित आंतरिक व्यवस्था शाखाएँ थीं:-
- सामान्य प्रशासन शाखा (General Administration Branch)
- स्थापना शाखा (Establishment Branch)
- सतर्कता शाखा (Vigilance Branch)
- लेखा शाखा (Accounts Branch)
- व्यक्तिगत प्रशिक्षण शाखा (Personnel Training Branch)
3. कार्यक्रम सलाहकार (Programme Advisors) कार्यक्रम सलाहकार के पद योजना आयोग में 1952 में सृजित किए गए ताकि योजना आयोग तथा भारतीय संघ के राज्यों के बीच वे कड़ी के रूप में कार्य कर सकें।
आलोचनात्मक मूल्यांकन:-
योजना आयोग की प्रभुत्वपूर्ण भूमिका के बारे में निम्नलिखित विचार सामने आएः
1. भारत का प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC): इसके अनुसार, ‘ संविधान के अंतर्गत मंत्री, चाहे वे केन्द्र के हों या राज्य के, अंतिम कार्यपालिका अधिकारी हैं। दुर्भाग्यवश, योजना आयोग कुछ अंशों में पैरेलेल कैबिनेट, यानी समानांतर मंत्रिमंडल, बल्कि कभी-कभी ‘ सुपर कैबिनेट’ के रूप में जाना जा रहा है
2. डी.आर. गाडगिलः योजना आयोग के पूर्ण उपाध्यक्ष डी. आर. गाडगिल ने भी योजना आयोग की आलोचना करते हुए कहा कि यह अपने कार्यो में विफल रहा है। उन्होंने कहा, “विफलता की जड़ उस प्रक्रिया में है जिसमें योजना आयोग जो कि मूलतः एक सलाहकार संस्था है ने सार्वजनिक नीति-निर्माण, की प्रक्रिया से स्वयं को युक्त कर लिया है, उन मामलों में भी जो विकास से जुड़े नहीं हैं | इस कु-निदेशन को प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के योजना आयोग के सदस्य होने के कारण भी बल मिला है जिसके कारण योजना आयोग और इसके निर्णयों को एक अस्वाभाविक प्रतिष्ठा और महत्व प्राप्त हो गया हैं।
3. अशोक चंदा: अशोक चंदा जो कि एक प्रमुख प्रशासनिक विश्लेषक हैं, कहते हैं, ” आयोग की अपरिभाषित पदस्थिति और इसके विचारार्थ विषय का वृहद क्षेत्र के कारण आर्थिक कैबिनेट के रूप में इसका विकास होता गया, न केवल संघ बल्कि राज्यों के लिए भी।” उन्होंने आगे कहा, “आयोग इस पदस्थिति पर कायम रहकर अपनी गतिविधियों का क्षेत्र ऐसे कार्यों व दायित्वों तक विस्तारित किया जो कि वास्तव में सरकार के कार्य क्षेत्र में आते हैं।” श्री चंदा ने कहा, ‘ योजना आयोग की पदस्थिति की प्रमुखता मंत्रिमंडलीय स्वरूप के सरकार की अवधारणा की संगति में नहीं है।
4. के. संथानम्: इन संविधानवेत्ता ने कहा, “योजना ने संघ का स्थान ले लिया है और हमारा देश अनेक अर्था में एकल प्रणाली की तरह कार्य कर रहा हे।’6
5. पी.बी. राजामन्नार: चतुर्थ वित्त आयोग के अध्यक्ष राजामन्नार ने संघीय राजकोषीय अंतरणों में योजना आयोग और वित्त आयोग के परस्पर व्यापी प्रकार्या एवं उत्तरदायित्वों को उजागर किया।”
6. पी.पी. अग्रवालः इनके अनुसार, ” यद्यपि योजना आयोग सरकार का एक सलाहकारी या परामर्शदाता निकाय है, यह सार्वजनिक नीति-निर्माण में महत्वपूर्ण रूप से प्रभाव डालने लगा है, उन मामलों में भी जो विकास से संबंधित नहीं हैं, और इसकी सलाहकार की भूमिका समूचे प्रशासन तक विस्तारित है।
7 . प्राक्कलन समितिः प्राककलन समिति ने विचार व्यक्त किया, समय आ गया है जब कि केन्द्र सरकार के कैबिनेट मंत्रियों के साथ योजना आयोग की सम्बद्धता की पूरी स्थिति की समीक्षा की जाए।
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