संविधान सभा के गठन का विचार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद देश के निर्माण में एक महत्वपूर्ण कदम था।पहली बार संविधान सभा की माँग सन-1895 में बाल गंगाधर तिलक ने उठाई थी। 1938 में नेहरू जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से घोषणा की कि स्वतंत्र भारत के संविधान का निर्माण वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनी गयी संविधान सभा द्वारा किया जाएगा और इसमें कोई बहरी हस्तक्षेप नहीं होगा। बनाने का निर्णय लिया था। संविधान सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित हुए थे। जिनका चुनाव जुलाई 1946 में सम्पन्न हुआ था।
संविधान सभा की मांग
- भारत की संविधान सभा मूल रूप से भारत का संविधान बनाने के लिए बनाई गई थी। प्रांतीय विधानसभाओं ने ही इस समिति का चुनाव किया था।
- भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के अग्रणी MN Roy पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1934 में संविधान सभा का विचार प्रस्तावित किया था।
- इस विचार को बाद में 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- अप्रैल 1935 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में लखनऊ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन के दौरान कांग्रेस के सदस्यों ने संविधान सभा की आधिकारिक मांग उठाई। हालांकि इस मांग को खारिज कर दिया गया।
- 1938 में पं. जवाहर लाल नेहरू ने संविधान और सभा के संबंध में एक प्रभावशाली वक्तव्य दिया था, ‘स्वतंत्र भारत का संविधान, बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के, वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा द्वारा तैयार किया जाना चाहिए।’
- बाद में, सी. राजगोपालाचारी, जो एक स्वतंत्रता कार्यकर्ता और साथ ही एक भारतीय राजनेता, लेखक और वकील थे, ने 15 नवंबर 1939 को भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए आवाज उठाई।
- अंग्रेजों ने 1940 के अपने ‘अगस्त प्रस्ताव’ के माध्यम से संविधान सभा की मांग स्वीकार कर ली। 1946 की कैबिनेट मिशन योजना के तहत पहली बार सभा के लिए चुनाव हुए।
संविधान सभा का गठन
भारतीय संविधान सभा का गठन 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, भारत में स्वतंत्रता आंदोलन तीव्र हो गया था। ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्रता देने का फैसला किया, लेकिन इस शर्त पर कि भारतीयों द्वारा अपनी संविधान सभा का गठन किया जाए और उसमें शामिल सभी समुदायों का प्रतिनिधित्व हो। भारतीय संविधान सभा का उद्देश्य स्वतंत्र भारत के लिए एक संविधान का निर्माण करना था। योजना की विशेषताएं थीं –
- संविधान सभा के सदस्यों की संख्या 389 होनी थीं । इनमें 296 ब्रिटिश भारत और 93 सीटें देशी रियासतों को दी जानी थीं । ब्रिटिश भारत को दी गयी 296 सीटों में 292 का चयन 11 गवर्नरों के प्रांतों और 4 का चयन आयुक्तों के प्रांतों से किया जाना था
- हर प्रान्त व देशी रियासतों को उसकी आबादी के आधार पर सीटें आवंटित की गई थीं। प्रत्येक 10 लाख लोगों पर एक सीट दी जानी थीं।
- प्रत्येक ब्रिटिश प्रान्त को दी गयी सीटों का निर्धारण 3 प्रमुख समुदायों के बीच उनकी संख्या के अनुपात में किया जाना था यह समुदाय थे -मुस्लिम सिख और अन्य ।
- प्रत्येक समुदाय के प्रतिनिधि का चुनाव प्रांतीय असेंबली में उस समुदाय के सदस्यों द्वारा किया जाना था और एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से समानुपातिक प्रतिनिधित्व तरीके से मतदान किया जाना था।
- देशी रियासतों के प्रतिनिधियों का चयन रियासतों के प्रमुख द्वारा किया जाना था
- संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव जुलाई 1946 में हुआ ।
- प्रांतीय विधानसभा द्वारा भारतीय संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव किया। विधानसभा के कुल सदस्यों की संख्या 389 थी। इन सदस्यों में से 292, प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते थे, 93 रियासतों के प्रतिनिधि थे और 4 मुख्य आयुक्त प्रांतों से थे- दिल्ली, ब्रिटिश बलूचिस्तान, कुर्ग और अजमेर-मेरवाड़ा।
- ब्रिटिश भारतीय प्रांतों में 296 सीटों के लिए चुनाव अगस्त 1946 तक पूरे हो गए थे। इस चुनाव में कांग्रेस ने सबसे ज़्यादा 208 सीटें जीतीं। दूसरी तरफ़, मुस्लिम लीग को सिर्फ़ 73 सीटें मिलीं। अन्य स्वतंत्र सदस्य को 15 सीटें मिलीं, देशी रियासतों को दी गयी 93 सीटें भर नहीं पायी क्योंकि उन्होंने खुद को संविधान सभा से अलग रखने का निर्णय लिया ।
- इस चुनाव में हारने के बाद मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के साथ काम करने से इनकार कर दिया और राजनीतिक स्थिति और खराब हो गई।
- हिंदू-मुस्लिम दंगे शुरू हो गए और मुसलमानों ने मुसलमानों के लिए अपनी संविधान सभा की मांग की।
- सदस्यों को उनकी जाति, धर्म, लिंग और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के आधार पर चुना गया था।
- कुछ सदस्यों को मनोनीत भी किया गया था, जिनमें विशेषज्ञ और कुछ रियासतों के प्रतिनिधि शामिल थे।
महत्वपूर्ण सदस्य:
- संविधान सभा में कई महत्वपूर्ण सदस्य थे जिन्होंने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- इनमें डॉ. बी.आर. अंबेडकर-मौलिक अधिकारों के जनक, जवाहरलाल नेहरू- भारत के पहले प्रधानमंत्री, सरदार वल्लभभाई पटेल-“स्टील मैन ऑफ इंडिया”, राजराजेश्वरी देवी- महिला अधिकारों की पैरोकार, और हंसमुखी बेन- आदिवासी अधिकारों की रक्षक शामिल हैं।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया था। उन्होंने इस पद पर 1946 से 1950 तक कार्य किया।
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