संसदीय शासन प्रणाली के दोष
- शक्तियों का खराब पृथक्करण:
- क्योंकि इस प्रणाली में शक्तियों का पूर्ण विभाजन नहीं है, इसलिए विधायिका हमेशा नीतिगत विफलताओं के लिए प्रशासन को दोषी नहीं ठहरा सकती।विशेषकर तब जब सरकार के पास विधायी बहुमत हो।
- इसके अलावा, दलबदल विरोधी नियमों के कारण विधायक अपनी इच्छाशक्ति का प्रयोग करने तथा अपनी समझ और विचारों के अनुसार मतदान करने में असमर्थ हैं।
2. अयोग्य विधानमंडल:
- कई बार, जो लोग केवल कार्यकारी भूमिकाएं निभाने की इच्छा रखते हैं, वे विधायिका में भी पहुंच जाते हैं।
- वे अपने पदों के लिए योग्य भी नहीं हैं या उनसे परिचित भी नहीं हैं।
- उनमें से अधिकांश अपने देश के कानूनों से अपरिचित हैं।
3. अस्थिरता:
- राष्ट्रपति प्रणाली की तुलना में संसदीय प्रणाली कम स्थिर है
- सरकार का कोई निश्चित कार्यकाल नहीं है। हाउस ऑफ कॉमन्स में अविश्वास प्रस्ताव पारित होते ही प्रशासन को बदल दिया जाएगा।
- सरकार अपने पद पर बने रहने और बने रहने के लिए बहुमत वाले विधायकों की दया पर निर्भर रहती है। राजनीतिक दलबदल या बहुदलीय गठबंधन की बुराइयाँ सरकार को अस्थिर बना सकती हैं।
- चूंकि सरकारें केवल तब तक ही चल सकती हैं जब तक वे संसद में बहुमत साबित कर सकें, इसलिए अगर चुनावों के बाद कोई स्पष्ट विजेता नहीं होता है तो अनिश्चितता बनी रहती है। गठबंधन सरकारें अक्सर अल्पकालिक और बहुत अस्थिर होती हैं, क्योंकि सरकार कभी भी गिर सकती है। इसलिए प्रशासन को जनता के कल्याण या सामान्य स्थिति के बारे में चिंता करने के बजाय पद पर बने रहने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
4. शीघ्र निर्णय लेने में असमर्थता:
- सिस्टम की अस्थिरता के कारण सरकार संकट के समय में तुरंत निर्णय नहीं ले पाती। सरकार बड़े और दीर्घकालिक निर्णय लेने से डरती है।
- इसका देश और लोगों की भलाई पर प्रभाव पड़ सकता है।
5. पार्टियों की राजनीति और नीतियों का जारी न रहना:
- संसदीय प्रणाली में राजनीति विशेष रूप से तब दिखाई देती है जब विधायक राष्ट्रीय हित के बजाय स्वहित से प्रेरित होते हैं।
- जब विभिन्न राजनीतिक दल सत्ता में आते हैं तो वे पिछली सरकार की नीतियों को नजरअंदाज करने का प्रयास करते हैं।
6. संसदीय अनुशासन (Parliamentary Discipline):
- संसदीय अनुशासन की कमी से यह संसद में व्यवस्थित और सकारात्मक वातावरण प्रभावित हो सकता है।
- कुछ बार सदस्यों के बीच हंगामा होता है, जिससे संसद की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है और वहाँ कानूनी विधानों का अवांछनीय बहिष्कार किया जाता है।
7. विधायिका स्थिरता (Legislative Stalemate):
- संसदीय व्यवस्था में विधायिका स्थिरता उस स्थिति को दर्शाती है जब किसी प्रस्ताव को पारित करने के लिए अवश्यक बहुमत नहीं होता है, और इसलिए कोई नया कानून या संशोधन नहीं हो पाता है।
- यह तब होता है जब विभिन्न दलों के बीच असमंजस होता है या नैतिक रूप से विपरीत मुद्दों पर सहमति नहीं होती है।
- विधायिका स्थिरता कानून निर्माण में विलंब ला सकती है और लोकतंत्र के संचालन को प्रभावित कर सकती है।
8. कैबिनेट का प्रभुत्व:-
- सत्तारूढ़ दल का बहुमत कैबिनेट को संसदीय प्रणाली में असीमित शक्तियों का प्रयोग कराता है।
- ऐसे मामलों में मंत्रिमंडल निरंकुश रूप में कार्य करता है।
9. असंतत नीतियां:-
- सरकार के कार्यकाल की अनिश्चितता लंबी अवधि की नीतियों को जारी रखने की अनुमति नहीं देती है।
- इसके अलावा मौजूदा नीतियों को अगले सत्तारूढ़ दल द्वारा बदला जा सकता है।
निष्कर्ष
हर प्रणाली, चाहे वह राष्ट्रपति हो या संसदीय, के अपने फायदे और नुकसान होते हैं। किसी भी देश की सरकार पर निर्भर करता है कि वह अपनी ज़रूरतों के हिसाब से सबसे उपयुक्त प्रणाली का चयन करे। चूँकि हर देश अपनी संरचना, लोगों और संस्कृति के मामले में अद्वितीय होता है, इसलिए देश की ज़रूरतों को समझना महत्वपूर्ण है।
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