संविधान सभा ने भारत के लिए एक लोकतांत्रिक संविधान का निर्माण किया, जो आज भी लागू है। हालांकि, इसकी प्रक्रिया और परिणामों को लेकर कुछ आलोचनाएँ भी हैं।
- प्रतिनिधि निकाय नहीं – आलोचकों ने तर्क दिया है कि संविधान सभा एक प्रतिनिधि निकाय नहीं थी, क्योंकि इसके सदस्यों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर भारत की जनता द्वारा सीधे तौर पर नहीं चुना गया था बल्कि वे ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुने गए थे। हालांकि, इसमें कुछ कमियां थीं, जिन्हें उस समय की परिस्थितियों और सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर समझा जा सकता है।
- असमान प्रतिनिधित्व: कुछ वर्गों, जैसे कि दलित, आदिवासी और महिलाओं का सभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं था।
- राजनीतिक दलों का अभाव: आधुनिक राजनीतिक दलों का विकास उस समय नहीं हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप सदस्यों के बीच वैचारिक आधार पर कोई स्पष्ट विभाजन नहीं था।
- सभा ने भारत के लिए एक लोकतांत्रिक संविधान का निर्माण किया, जो आज भी लागू है, और यह उनकी दूरदर्शिता(vision) और प्रतिबद्धता Commitment) का प्रमाण है।
- सम्प्रभुता का आभाव – संविधान सभा में संप्रभुता का पूर्ण अभाव था। इसकी स्थापना और कार्य ब्रिटिश सरकार के अधीन थे, लेकिन सभा ने काफी हद तक स्वतंत्र रूप से काम किया और भारत के लिए एक संप्रभु संविधान का निर्माण किया।
- लोगों का कहना था की संविधान सभा एक संप्रभु निकाय नहीं थी क्योंकि इसे ब्रिटिश सरकार के प्रस्तावों के अनुसार 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत बनाया गया था। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि सभा ने ब्रिटिश सरकार की अनुमति से अपने सत्र आयोजित किए।
- कार्य: सभा को ब्रिटिश सरकार द्वारा तैयार किए गए “भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947” के ढांचे के भीतर काम करना था।
- ब्रिटिश अनुमति: सभा को अपनी बैठकें आयोजित करने और निर्णय लेने के लिए ब्रिटिश सरकार की अनुमति की आवश्यकता थी।
- समय की बर्बादी –
- लंबी प्रक्रिया: संविधान को अंतिम रूप देने में 2 साल 11 महीने लगे, जिसे कुछ लोगों ने अनावश्यक रूप से लंबा माना। यह सच है कि संविधान को अंतिम रूप देने में काफी समय लगा, लेकिन सभा को एक जटिल और महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया था – भारत के लिए एक नया संविधान बनाना। इसमें विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों के बीच गहन विचार-विमर्श और बहस की आवश्यकता थी।
- अनावश्यक बहस: यह आरोप लगाया गया कि सभा ने मामूली मुद्दों पर अनावश्यक रूप से बहस में समय बर्बाद किया, जबकि महत्वपूर्ण मुद्दों को नजरअंदाज किया गया। लेकिन, ये मुद्दे उस समय के लोगों के लिए महत्वपूर्ण थे, और उन्हें ध्यान से विचार करना आवश्यक था। बहस ने विभिन्न दृष्टिकोणों को सामने लाने और एक संतुलित और समावेशी संविधान बनाने में मदद की।
- व्यवहारिकता का अभाव: कुछ का मानना है कि सभा ने व्यावहारिकता को ध्यान में रखे बिना आदर्शवादी विचारों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया।
- कांग्रेस का प्रभुत्व – आलोचकों ने आरोप लगाया कि संविधान सभा पर कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व था। ब्रिटिश संविधान विशेषज्ञ ग्रैनविले ऑस्टिन ने टिप्पणी की: ‘संविधान सभा मूलतः एक दलीय देश में एक दलीय निकाय थी।
- वकीलों और राजनीतिज्ञों का प्रभुत्व – संविधान सभा में वकीलों और राजनीतिज्ञों का भारी प्रतिनिधित्व था। 1946 में निर्वाचित सदस्यों में से 89% वकील या राजनीतिक कार्यकर्ता थे।
- किसानों और मजदूरों जैसे आम लोगों का प्रतिनिधित्व कम था: संविधान सभा में किसानों, मजदूरों और अन्य वंचित वर्गों के सदस्यों की संख्या कम थी।
- संविधान कुलीन वर्गों के हितों को दर्शाता है: आलोचकों का मानना है कि वकीलों और राजनीतिज्ञों ने संविधान को इस तरह से गढ़ा जो उनकी अपनी शक्ति और विशेषाधिकारों को बनाए रखेगा। लेकिन कई सदस्य विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते थे: संविधान सभा में केवल वकील और राजनेता ही नहीं थे, बल्कि शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और विभिन्न धार्मिक और जातीय समुदायों के प्रतिनिधि भी शामिल थे। संविधान सभा ने सार्वजनिक टिप्पणियों और सुझावों पर विचार किया: संविधान सभा ने मसौदा तैयार करते समय जनता से टिप्पणियां और सुझाव आमंत्रित किए।
- हिन्दुओं का प्रभुत्व –
कुछ आलोचकों ने तर्क दिया है कि:
- संविधान धर्मनिरपेक्षता की भावना को सही ढंग से प्रतिबिंबित नहीं करता: संविधान में धर्मनिरपेक्षता को शामिल किया गया है, लेकिन आलोचकों का मानना है कि हिन्दू बहुसंख्यकवाद ने इस सिद्धांत को कमजोर कर दिया।
- संविधान अल्पसंख्यकों के अधिकारों की पर्याप्त रक्षा नहीं करता: कुछ लोगों का मानना है कि संविधान मुस्लिमों, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की पर्याप्त रक्षा नहीं करता है।
- संविधान हिन्दू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है: कुछ आलोचकों का यह भी मानना है कि संविधान ने भारत को एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में स्थापित करने में मदद की।
भारतीय संविधान एक जीवित दस्तावेज है जिसे समय के साथ संशोधित किया गया है। स्वतंत्रता के बाद से, संविधान में कई संशोधन किए गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह बदलती सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थितियों को दर्शाता है। संविधान सभा, एक ऐसी सभा थी जिसे भारत के लिए एक नया संविधान बनाने का जिम्मा सौंपा गया था। इसने इस कार्य को सफलतापूर्वक पूरा किया, और इसका परिणाम एक ऐसा संविधान है जो लचीला और समावेशी है, और इसने भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्रों में से एक बनने में मदद की है।
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