आपातकालीन प्रावधान की आलोचना भारत में राष्ट्रीय आपातकाल के प्रावधानों की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जा सकती है:-
- दुरुपयोग की संभावना – आलोचकों का तर्क है कि राष्ट्रीय आपातकाल के प्रावधान सरकार को अत्यधिक शक्ति प्रदान करते हैं, जिसका वास्तविक आपातकाल के बजाय राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है। इससे तानाशाही को बढ़ावा मिल सकता है और लोकतांत्रिक मानदंड कमज़ोर हो सकते हैं। राज्य की वित्तीय स्वायत्तता समाप्त हो जाती है।
- लोकतंत्र को कमजोर करना – राष्ट्रीय आपातकाल में सत्ता को केंद्रीकृत करके और सरकार की विभिन्न शाखाओं के बीच नियंत्रण और संतुलन को कमजोर करके लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करने की क्षमता होती है। वे असहमति को दबा सकते हैं और राजनीतिक विरोध को दबा सकते हैं, जिससे राजनीतिक स्वतंत्रता सीमित हो सकती है।
- अधिकारों का उल्लंघन – राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित या कम किया जा सकता है, और वे अर्थहीन हो सकते हैं जो संविधान की लोकतांत्रिक नींव को नष्ट कर देते हैं।
- संघवाद के लिए खतरा – राष्ट्रीय आपातकालीन प्रावधानों के परिणामस्वरूप अक्सर सत्ता का केंद्रीकरण होता है केंद्र सरकार को राज्यों पर अत्यधिक शक्ति प्रदान करते हैं और राज्य की शक्तियां निरर्थक हो जाती हैं, जिससे संघीय ढांचे का असंतुलन पैदा होता है, जो राज्यों की स्वायत्तता (Autonomy) और संप्रभुता का उल्लंघन करता है। यह देश के संघीय ढांचे को कमजोर कर सकता है और केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तनाव पैदा कर सकता है।
- दीर्घकालिक नुकसान – आपातकाल हटाए जाने के बाद भी, आपातकालीन उपायों के प्रभाव बने रह सकते हैं, जिसमें संस्थाओं में विश्वास का क्षरण, लोकतांत्रिक मानदंडों को नुकसान और सरकार में विश्वास की कमी शामिल है। इससे शासन और राजनीतिक स्थिरता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।
- अधिनायकवाद की संभावना – कार्यकारी के हाथों में आपातकालीन शक्तियों का संकेन्द्रण अधिनायकवाद का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जिसमें नेता सत्ता को मजबूत करने और लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने के लिए संकटों का फायदा उठा सकते हैं
- मीडिया और मुफ्त प्रेस पर प्रभाव: आपातकाल के दौरान मीडिया सेंसरशिप लगाई जा सकती है, जिसे आलोचक मुफ्त प्रेस और सूचना के अधिकार पर हमला और जानकारी के अधिकारों के नागरिकों के अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखते हैं।
- आपातकाल की स्थिति में संविधान का संघीय चरित्र नष्ट हो जाता है और संघ सर्वशक्तिमान बन जाएगा ।
- राज्य की शक्तियाँ पूरी तरह से संघ की कार्यपालिका के हाथों में केंद्रित होती हैं
- राष्ट्रपति शासन राष्ट्रपति को सर्वोच्च शक्ति प्रदान करता है, जो उसके तानाशाह होने के बराबर है
संविधान सभा में आपातकालीन प्रावधानों का बचाव करते हुए डॉ. अंबेडकर ने इनके दुरुपयोग की संभावना को स्वीकार किया था। उन्होंने कहा था, ‘मैं इस बात से पूरी तरह इनकार नहीं करता कि इन अनुच्छेदों का दुरुपयोग किया जा सकता है या इनका राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।’
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