संवैधानिक उपबंध :-अनुच्छेद 308 – 314 इसमें अखिल भारतीय सेवाओं , केंद्रीय सेवाओं और राज्य सेवाओं के संबंध में प्रावधान हैं । अनुच्छेद 308 यह स्पष्ट करता है कि ये प्रावधान जम्मू और कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होते हैं ।
- अनुच्छेद- 315. संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
- अनुच्छेद- 316. सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि
- अनुच्छेद- 317. लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलंबित किया जाना
- अनुच्छेद- 318. आयोग के सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति
- अनुच्छेद- 319. आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के संबंध में प्रतिषेध
- अनुच्छेद- 320 लोक सेवा आयोगों के कृत्य
- अनुच्छेद- 321. लोक सेवा आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्ति
- अनुच्छेद- 322. लोक सेवा आयोगों के व्यय
- अनुच्छेद-323. लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन
1.भर्ती तथा सेवा शर्ते :-
- संविधान का अनुच्छेद 309 संघ या राज्यों की सार्वजनिक सेवाओं में सेवारत व्यक्तियों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यकाल से संबंधित है। अनुच्छेद 309, संघ और राज्यों के अधीन सेवाओं पर अध्याय के भाग के रूप में, योग्यता-आधारित, कुशल और निष्पक्ष सिविल सेवा प्रणाली स्थापित करने के निर्माताओं के इरादे को दर्शाता है।
- महत्वपूर्ण तत्व: अनुच्छेद 309 लोक सेवकों के लिये भर्ती और सेवा की शर्तों को विनियमित करने वाले कानून बनाने के लिये उपयुक्त विधायिका (संसद या राज्य विधानमंडल) को अधिकार प्रदान करता है। इसमें नियुक्ति के तरीके, कार्यालय के कार्यकाल और सरकारी कर्मचारियों से संबंधित अनुशासनात्मक मामलों को निर्धारित करने की शक्ति शामिल है।
- मौजूदा कानून और नियम: यह अनुच्छेद सार्वजनिक सेवाओं को विनियमित करने वाले मौजूदा कानूनों और नियमों की वैधता को मान्यता देता है। इसका अर्थ यह है कि संविधान के प्रारंभ के समय लागू कानून या नियम सक्षम विधायिका द्वारा परिवर्तित, संशोधित या निरस्त होने तक वैध बने रहेंगे।
- नियम बनाने वाला प्राधिकरण: राष्ट्रपति या राज्यपाल (यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह संघ या राज्य का मामला है) के पास सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तों को विनियमित (regulate) करने के लिये संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नियम बनाने की शक्ति है।
2. कार्यकाल:- Article 310. संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों का पदावधि
- प्रत्येक व्यक्ति जो रक्षा सेवा का या संघ की सिविल सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा रक्षा से संबंधित कोई पद या संघ के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है और प्रत्येक व्यक्ति जो किसी राज्य की सिविल सेवा का सदस्य है अथवा किसी राज्य के अधीन कोई सिविल पद धारण करता है, उस राज्य के राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करता है।
- संघ या राज्य के अधीन सिविल पद धारण करने वाला व्यक्ति, यथास्थिति, राष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करता है, कोई संविदा, जिसके अधीन कोई व्यक्ति, जो रक्षा सेवा या अखिल भारतीय सेवा या संघ या राज्य की सिविल सेवा का सदस्य नहीं है, इस संविधान के अधीन ऐसा पद धारण करने के लिए नियुक्त किया जाता है, उस दशा में, जब राष्ट्रपति या राज्यपाल, विशेष अर्हताओं वाले किसी व्यक्ति की सेवाएं प्राप्त करने के लिए आवश्यक समझे, यह उपबंध कर सकेगी कि यदि करार की गई अवधि की समाप्ति के पूर्व वह पद समाप्त कर दिया जाता है या उससे, ऐसे कारणों से जो उसकी ओर से किसी कदाचार से संबंधित नहीं हैं, उस पद को रिक्त करने की अपेक्षा की जाती है, तो उसे प्रतिकर दिया जाएगा।
3. लोक सेवकों के लिए संरक्षण उपाय :-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 311 केंद्रीय और राज्य सिविल सेवकों को प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों से संबंधित है और उनकी बर्खास्तगी की प्रक्रिया निर्धारित करता है। अनुच्छेद 311 का मुख्य उद्देश्य (Main objective of Article 311) यह सुनिश्चित करना है कि सिविल सेवकों को मनमाने ढंग से सेवा से बर्खास्त नहीं किया जा सके। यह नौकरशाही की स्वतंत्रता और सेवा की सुरक्षा सुनिश्चित करने में काफी मदद करता है।
4. अखिल भारतीय सेवाओं के संबंध में अनुच्छेद 312 में निम्नलिखित उपबंध किए गए हैं:
(अ) यदि राज्यसभा एक प्रस्ताव पारित करे कि ऐसा करना राष्ट्रहित में आवश्यक अथवा उचित है तो संसद एक नवीन अखिल भारतीय सेवा ( अखिल भारतीय न्यायिक सेवा सहित) का सृजन कर सकती है । ऐसे किसी संकल्प का राज्यसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है। राज्यसभा को यह शक्ति भारत संघ की में राज्यों के हितों की सुरक्षा के लिए दी गई है।
(ब) संसद, अखिल भारतीय सेवाओं में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती व सेवा शर्तों का नियमन कर सकती है । तदनुसार इस उद्देश्य के लिए संसद ने अखिल भारतीय सेवा अधिनियम 1951 अधिनियमित किया।
(स) ये सेवाएं संविधान प्रारंभ होने के समय (26 जनवरी, 1950), भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा भारतीय पुलिस सेवा इस उपबंध के अंतर्गत संसद द्वारा स्थापित सेवाएं मानी जाएंगी।
(द) अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के अंतर्गत कोई भी पद जिला न्यायाधीश” से कमतर नहीं होने चाहिए। इस सेवा का सृजन करने वाली विधि को अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन नहीं माना जाएगा।
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