भारत के संविधान, 1950 (Constitution of India) के अनुच्छेद 165 में राज्यों के महाधिवक्ता के कार्यालय के लिये प्रावधान हैं।
- वह राज्य का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है और भारत के महान्यायवादी के अनुरूप होता है।
भारत के संविधान का अनुच्छेद 165 :-
- प्रत्येक राज्य का राज्यपाल एक ऐसे व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करेगा जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य है।
- महाधिवक्ता का यह कर्त्तव्य होगा कि वह ऐसे कानूनी मामलों पर राज्य सरकार को सलाह दे और विधिक स्वरुप के ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करें, जो समय-समय पर राज्यपाल द्वारा उसे निर्दिष्ट किये या सौंपे जाएँ, और इस संविधान या उस समय लागू किसी अन्य विधि द्वारा या उसके तहत उसे प्रदत्त कार्यों का निर्वहन करे।
- महाधिवक्ता राज्यपाल की विवेकाधिकार तक पद धारण करेगा और राज्यपाल द्वारा निर्धारित पारिश्रमिक प्राप्त करेगा।
राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति:-
राज्यपाल राज्य के मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है। भारत में महाधिवक्ता का पद धारण करने के लिए पात्र व्यक्ति को निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना होगा:
- वह भारतीय नागरिक होना चाहिए
- उसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए पात्र होना चाहिए; अर्थात उसे निम्नलिखित पात्रता मानदंडों में से एक को पूरा करना होगा:
- 5 वर्ष से अधिक का अनुभव रखने वाला बैरिस्टर।
- एक सिविल सेवक जिसके पास 10 वर्ष से अधिक का अनुभव हो तथा साथ ही जिला न्यायालय में कम से कम 3 वर्ष तक सेवक के रूप में कार्य करने का अनुभव हो।
- किसी भी उच्च न्यायालय में 10 वर्ष से अधिक समय तक वकालत करने वाला व्यक्ति
- उनकी आयु 62 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए, जैसा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिए आयु योग्यता है।
राज्य के महाधिवक्ता का कार्यकाल और हटाया जाना :-
- संविधान भारत में महाधिवक्ता का कार्यकाल तय नहीं करता है। वह राज्यपाल की इच्छा पर्यन्त पद पर बने रहते हैं।
- संविधान में राज्य के महाधिवक्ता को हटाने की प्रक्रिया और आधार नहीं बताए गए हैं। राज्यपाल किसी भी समय उन्हें हटा सकते हैं।
- महाधिवक्ता का त्यागपत्र – वह राज्य के राज्यपाल को त्यागपत्र प्रस्तुत करके सार्वजनिक पद से त्यागपत्र दे सकता है।
- परम्परागत रूप से, जब किसी राज्य सरकार की मंत्रिपरिषद इस्तीफा देती है, तो राज्य का महाधिवक्ता भी अपना इस्तीफा दे देता है।
राज्य के महाधिवक्ता का पारिश्रमिक-
- महाधिवक्ता का पारिश्रमिक COI द्वारा तय नहीं किया जाता है।
- उसे उतना पारिश्रमिक मिलता है जितना राज्यपाल निर्धारित कर सकता है।
राज्य के महाधिवक्ता के कर्त्तव्य :-
- महाधिवक्ता के कर्त्तव्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- राज्य सरकार को ऐसे विधि मामलों पर सलाह देना जो राज्यपाल द्वारा उसे संदर्भित किये जाते हैं।
- विधिक स्वरुप के ऐसे अन्य कर्त्तव्यों का पालन करना जो राज्यपाल द्वारा उसे सौंपे जाते हैं।
- COI या किसी अन्य विधि द्वारा उसे प्रदत्त कार्यों का निर्वहन करना।
भारत में राज्य के महाधिवक्ता के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:-
- वरीयता क्रम में , अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल, राज्य के महाधिवक्ता से ऊपर होता है।
- राज्य के महाधिवक्ता के पद के लिए पात्र होने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्रदान किया जाता है, तथा विदेशी इस सार्वजनिक पद को धारण करने के पात्र नहीं हैं।
- उसे राज्य की किसी भी अदालत में उपस्थित होने का पूरा अधिकार है।
- वह राज्य विधानमंडल के सदनों की कार्यवाही या राज्य विधानमंडल द्वारा शुरू की गई किसी समिति में मतदान नहीं कर सकता। हालाँकि उसे बोलने और ऐसी कार्यवाही का हिस्सा बनने का अधिकार है।
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