भारतीय संविधान को संसद द्वारा संशोधन के माध्यम से बदला जा सकता है। संशोधन प्रक्रिया के बारे में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में दी गयी है। है। 1951 में पहली बार अधिनियमित होने के बाद से भारत के संविधान में 127 संशोधन हुए हैं।
संविधान के संशोधन के प्रकार:
- संवैधानिक संशोधन: ये संविधान की मूल संरचना को प्रभावित करते हैं।
- संवैधानिक संशोधन पारित करने के लिए, संसद के दोनों सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि प्रस्ताव को दोनों सदनों में दो-तिहाई सदस्यों द्वारा समर्थित होना चाहिए।
- संवैधानिक संशोधन के कुछ उदाहरण:73वां संशोधन (1992):
- इस संशोधन ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया।
- इसका मतलब है कि ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों और जिला परिषदों को संविधान द्वारा सुरक्षा प्रदान की गई है।
- यह स्थानीय स्वराज को मजबूत करने और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
99वां संशोधन (2012):
- इस संशोधन ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना की।
- यह आयोग न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार था।
- इसका उद्देश्य न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाना था।
102वां संशोधन (2019):
- इस संशोधन ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को 10% आरक्षण प्रदान किया।
- यह आरक्षण शिक्षा और सरकारी नौकरियों में उपलब्ध है।
- इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना था।
2. गैर-संवैधानिक संशोधन: ये संविधान की मूल संरचना को प्रभावित नहीं करते हैं।
- गैर-संवैधानिक संशोधन पारित करने के लिए, संसद के दोनों सदनों में सरल बहुमत की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि प्रस्ताव को दोनों सदनों में आधे से अधिक सदस्यों द्वारा समर्थित होना चाहिए।
गैर- संवैधानिक संशोधन के कुछ उदाहरण:
- 44वां संशोधन (1978): इस संशोधन ने आपातकालीन प्रावधानों (अनुच्छेद 352 से 360) को संविधान में स्थायी रूप से शामिल कर लिया।
- 59वां संशोधन (1989): इस संशोधन ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना की।
- 92वां संशोधन (2003): इस संशोधन ने महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं में 33% आरक्षण प्रदान किया।
- संवैधानिक समीक्षा की भूमिका: संविधान के किसी भी संशोधन को उच्चतम न्यायालय द्वारा चुनौती दी जा सकती है. न्यायालय यह निर्णय ले सकता है कि कोई संशोधन संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है या नहीं.
- संवैधानिक समीक्षा भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
- यह न्यायपालिका को यह शक्ति प्रदान करती है कि वह यह तय कर सके कि क्या कोई कानून या कार्यकारी कार्रवाई संविधान के अनुरूप है या नहीं।
- यदि न्यायालय यह निर्णय लेता है कि कोई कानून या कार्रवाई असंवैधानिक है, तो उसे रद्द कर दिया जाएगा।
संवैधानिक समीक्षा की कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाएं इस प्रकार हैं:
- संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखना: –यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून और कार्रवाई संविधान के अनुरूप हों। यदि कोई कानून या कार्रवाई संविधान का उल्लंघन करती है, तो न्यायालय उसे रद्द कर सकता है।
- मौलिक अधिकारों की रक्षा करना: – यह नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करता है। यदि कोई कानून या कार्रवाई किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है, तो न्यायालय उसे रद्द कर सकता है।
- सरकार को मनमानी से रोकना: – यह सरकार को अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने से रोकता है। यदि कोई कार्यकारी कार्रवाई मनमानी या अनुचित है, तो न्यायालय उसे रद्द कर सकता है।
- न्यायिक सक्रियता को बढ़ावा देना: – यह न्यायालय को सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए कार्रवाई करने में सक्षम बनाता है। न्यायालय ने अनेक मामलों में संवैधानिक समीक्षा की शक्ति का उपयोग महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए किया है।
संवैधानिक समीक्षा एक शक्तिशाली उपकरण है जिसका उपयोग भारतीय न्यायालयों ने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने और संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखने के लिए किया है।
यह भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि भारत सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता वाला देश बना रहे।
संवैधानिक समीक्षा के कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण:
- केस : ए.के. कृपाल बनाम भारत सरकार (1987) में, न्यायालय ने अनुच्छेद 32 के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण का अधिकार विस्तारित किया।
- केस : टी.एम.ए. पई बनाम केरल राज्य (1957) में, न्यायालय ने नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार दिया।
- केस : खेशवत बनाम बिहार राज्य (2011) में, न्यायालय ने शिक्षा का अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया।
- संशोधन की आवश्यकता: संविधान को समय की बदलती परिस्थितियों के अनुकूल बनाने के लिए संशोधन की आवश्यकता होती है. उदाहरण के लिए, 73वां संशोधन (1992) ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया.
- संशोधन का दुरुपयोग: यह महत्वपूर्ण है कि संशोधन की प्रक्रिया का दुरुपयोग न किया जाए और संविधान की मूल संरचना को नुकसान न पहुंचे.
संविधान के संशोधन की प्रक्रिया लचीली है, जिसका अर्थ है कि संविधान को समय की आवश्यकताओं के अनुसार बदला जा सकता है।
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