वित्त आयोग द्वारा निभाई गई सलाहकार भूमिका :-
- वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशें केवल सलाहकारी प्रकृति की हैं और इसलिए सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं हैं।
- दूसरे शब्दों में कहें तो, ‘संविधान में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि आयोग की सिफारिशें भारत सरकार के लिए बाध्यकारी होंगी या यह प्राप्तकर्ता राज्यों के पक्ष में आयोग द्वारा उन्हें प्रदान की जाने वाली अनुशंसित धनराशि प्राप्त करने का कानूनी अधिकार होगा।
- भारत के वित्त आयोग को एक अनुशंसात्मक निकाय(Recommendatory Body) कहा जा सकता है जो देश के राष्ट्रपति को सलाह देता है, जो उस पर विचार करने के बाद वित्तीय मामलों पर निर्णय लेने के लिए इसे लागू करता है।
- वित्त आयोग की यह सलाहकारी भूमिका एक तरह से भारत के राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी है।
- राष्ट्रपति या तो की गई सिफारिशों को स्वीकार कर सकते हैं या उन्हें अस्वीकार कर सकते हैं।
- इसके अलावा, राज्यों को धन देने के मामले में आयोग द्वारा जारी की गई सिफारिशों को लागू करना है या नहीं, यह केंद्र सरकार पर निर्भर करता है।
- सलाहकारी भूमिका न तो बाध्यकारी प्रकृति की है और न ही आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर संघ से धन प्राप्त करने के लिए राज्य के पक्ष में किसी कानूनी लाभार्थी को जन्म दे सकती है। यह बात भारतीय संविधान द्वारा ही स्पष्ट की गई है।
- चौथे वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. पीवी राजमन्नार ने अपने कार्यकाल के दौरान वित्त आयोग द्वारा निभाई गई सलाहकारी भूमिका की ओर सही इशारा किया है।
- उन्होंने कहा कि “चूंकि वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है, जिससे अर्ध-न्यायिक होने की अपेक्षा की जाती है, इसलिए भारत सरकार को इसकी सिफारिशों को तब तक नहीं ठुकराना चाहिए जब तक कि इसके लिए कोई बहुत ही बाध्यकारी कारण न हों”।
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