अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन:-
- प्रशासन एवं नियंत्रण से संबंधित प्रावधान संविधान की 5वीं अनुसूची में उल्लिखित है।
- यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के अलावा अन्य राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों तथा अनुसूचित जनजातियों से संबंधित है।
- भारत के राष्ट्रपति को किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का अधिकार है।
- राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल के परामर्श से इसकी सीमा रेखाओं को बदल सकते हैं, बढ़ा सकते हैं या घटा सकते हैं।
- ‘अनुसूचित क्षेत्र’ वाले राज्य का राज्यपाल क्षेत्र के प्रशासन के संबंध में प्रतिवर्ष या जब भी राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षित हो, राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
- किसी राज्य के राज्यपाल को यह निर्देश देने का अधिकार है कि संसद या राज्य विधानमंडल का कोई विशेष कानून अनुसूचित क्षेत्र पर लागू नहीं होगा या कुछ संशोधनों या अपवादों के साथ लागू होगा।
- राज्यपाल को भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाने या प्रतिबंध लगाने के लिए नियम बनाने का अधिकार है।
- राज्यपाल अनुसूचित क्षेत्रों से संबंधित भूमि के आवंटन और धन उधार व्यवसाय को विनियमित कर सकते हैं।
- राज्यपाल द्वारा बनाए गए नियमों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही लागू किया जाना चाहिए।
- अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियों के प्रशासन से संबंधित प्रावधानों को संसद द्वारा साधारण कानून के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि इसके लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं है।
- संविधान में अनुसूचित क्षेत्र और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और कल्याण के मामले पर रिपोर्ट देने के लिए एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान है [अनुच्छेद 339(1)]।
- ऐसे आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- अनुसूचित जनजाति के कल्याण से संबंधित मामलों पर सलाह देने के लिए अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य में जनजातीय सलाहकार परिषदों का संविधान में प्रावधान है ।
- वर्तमान में 10 राज्य 5वीं अनुसूची के अंतर्गत आते हैं, अर्थात अनुसूचित क्षेत्र वाले हैं-
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- झारखंड
- गुजरात
- छत्तीसगढ
- हिमाचल प्रदेश
- महाराष्ट्र
- मध्य प्रदेश
- राजस्थान
- ओडिशा
पांचवीं अनुसूची के तहत “अनुसूचित क्षेत्र” की घोषणा के लिए मानदंड
- जनजातीय आबादी की अधिकता,
- क्षेत्र की सघनता और उचित आकार,
- एक व्यवहार्य प्रशासनिक इकाई जैसे कि जिला, ब्लॉक या तालुका, और.
- पड़ोसी क्षेत्रों की तुलना में क्षेत्र का आर्थिक पिछड़ापन।
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