91वांँ सविधान संशोधन:-
मंत्रिपरिषद की संख्या को सीमित करने, दलबदलुओं को सार्वजनिक पद पर आसीन होने से रोकने, तथा दलबदल विरोधी कानून को कड़ा करने के लिए 91वें संशोधन में निम्नलिखित प्रावधान शामिल किए गए:
संविधान (91वांँ संशोधन) अधिनियम, 2003 के अनुच्छेद 164 में खंड 1A सम्मिलित किया गया जिसके अनुसार, “किसी राज्य की मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या राज्य विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- इसमें यह भी प्रावधान था कि किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होगी।
इसी तरह के संशोधन अनुच्छेद 75 के तहत भी किये गए थे।
- इसके अनुसार, प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
- मंत्रिपरिषद् में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- 91वें संशोधन का उद्देश्य बड़ी कैबिनेट और इसके परिणामस्वरूप सरकारी खजाने पर पड़ने वाले आर्थिक भार को रोकना था।
- संसद के किसी भी सदन का कोई भी सदस्य जो दलबदल के कारण मंत्री के रूप में कार्य करने से अयोग्य घोषित किया जाता है, उसे भी मंत्री के रूप में कार्य करने से रोक दिया जाता है।
- किसी राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य यदि दलबदल के कारण मंत्री के रूप में कार्य करने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाता है, तो उसे भी मंत्री के रूप में कार्य करने से प्रतिबंधित कर दिया जाता है।
- किसी भी राजनीतिक दल से संसद के किसी भी सदन या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य, जो किसी भी राजनीतिक दल से दलबदल के कारण अयोग्य घोषित किया जाता है, उसे भी कोई लाभकारी राजनीतिक पद धारण करने से रोक दिया जाता है।
- केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के अधीन कोई कार्यालय जहां ऐसे कार्यालय के लिए वेतन या पारिश्रमिक संबंधित सरकार के सार्वजनिक राजस्व से दिया जाता है;
- दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी अधिनियम) में अयोग्यता खंड से छूट समाप्त कर दी गई है। इसका मतलब यह है कि दलबदलुओं को अब विभाजन से सुरक्षा नहीं मिलेगी।
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