भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजों के शोषण और अन्याय के खिलाफ कई बार आदिवासियों ने विद्रोह किया। इनमें से दो प्रमुख विद्रोह थे: भीमा नायक का विद्रोह और टंटिया भील का विद्रोह।
समय: 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
नेता: भीमा नायक
स्थान: मध्य प्रदेश के खंडवा जिले का निमाड़ क्षेत्र
कारण: अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों पर अत्याचार, जमीन हड़पना, और भारी कर
भीमा नायक ने आदिवासियों को एकजुट किया और अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया।
उन्होंने कई सरकारी कार्यालयों पर हमला किया और अंग्रेजी सेना से लोहा लिया।
भीमा नायक को “निमाड़ का राँबिनहुड़” भी कहा जाता था।
अंग्रेजों ने भीमा नायक को धोखे से पकड़कर पोर्ट ब्लेयर में निर्वासित कर दिया।
29 दिसंबर 1876 को पोर्ट ब्लेयर में उनकी मृत्यु हो गई।
भीमा नायक का विद्रोह भले ही असफल रहा, लेकिन इसने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया और आदिवासियों में स्वतंत्रता की भावना जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
टंट्या भील का विद्रोह:
समय: 1878-1889
नेता: टंट्या भील
स्थान: मध्य प्रदेश, राजस्थान, और गुजरात के कुछ आदिवासी क्षेत्र
कारण: अंग्रेजों द्वारा जमीन हड़पना, वन नीति, और भारी कर
टंट्या भील ने आदिवासियों को एकजुट किया और अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध का नेतृत्व किया।
उन्होंने अंग्रेजों के खजाने लूटे और गरीबों में बांटे।
टंट्या भील को “भारत का रॉबिन हुड” भी कहा जाता था।
अंग्रेजों ने टंट्या भील को धोखे से पकड़कर 4 दिसंबर 1889 को फांसी दे दी।
टंट्या भील का विद्रोह भले ही असफल रहा, लेकिन इसने आदिवासियों में स्वतंत्रता की भावना जगाने और अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिरोध को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दोनों विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी समुदायों द्वारा किए गए थे।
दोनों विद्रोहों का कारण भूमि छीनना, भारी कर लगाना और शोषण था।
दोनों विद्रोह नेता वीर और कुशल योद्धा थे जिन्होंने ब्रिटिश सेना को कड़ी चुनौती दी थी।
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