परमार वंश: मध्यकालीन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश
उत्पत्ति:
परमार वंश, जिसे पँवार भी कहा जाता है, मध्यकालीन भारत का एक क्षत्रिय राजवंश था। इस राजवंश का अधिकार धार-मालवा-उज्जयिनी-आबू पर्वत और सिन्धु के निकट अमरकोट आदि राज्यों तक था। लगभग सम्पूर्ण पश्चिमी भारत क्षेत्र में परमार वंश का साम्राज्य था। ये ८वीं शताब्दी से १४वीं शताब्दी तक शासन करते रहे।
प्रमुख शासक:
उपेंद्र (8वीं शताब्दी): परमार वंश के संस्थापक
सीयक (9वीं शताब्दी): राष्ट्रकूटों से मुक्ति प्राप्त
वाक्पति मुंज (973-995): विद्वान और कला प्रेमी
भोज (1018-1060): महान सम्राट, विद्वान और कला प्रेमी
जयसिंह (1070-1093): दिल्ली और कन्नौज पर विजय प्राप्त
उदयदित्य (1218-1254): अंतिम शक्तिशाली शासक
उपलब्धियां:
सैन्य शक्ति: परमार वंश के शासक कुशल योद्धा थे। उन्होंने कई शक्तिशाली शत्रुओं को हराया और अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
प्रशासनिक योग्यता: उन्होंने एक मजबूत और कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की।
कला और संस्कृति: परमार वंश के शासनकाल में कला और संस्कृति का विकास हुआ। उन्होंने कई मंदिरों, स्मारकों और कलाकृतियों का निर्माण करवाया।
शिक्षा: उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा दिया और कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की।
विरासत:
परमार वंश मध्यकालीन भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक था। उन्होंने कला, संस्कृति, शिक्षा और प्रशासन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
परमार वंश को ‘अग्निवंशी’ राजपूत माना जाता था।
उनके शासनकाल में कई सिक्के ढाले गए थे, जो उनकी कला और संस्कृति का प्रमाण हैं।
परमार वंश के कई शासक विद्वान और कला प्रेमी थे।
परमार वंश ने कई महत्वपूर्ण मंदिरों का निर्माण करवाया, जिनमें कालिका माता मंदिर (धार), भोजशाला (धार), और विमला वसही (आबू पर्वत) शामिल हैं।
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