मध्यप्रदेश, भारत का ह्रदय प्रदेश, अपनी समृद्ध कृषि विरासत और विविध फसलों के लिए जाना जाता है। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है और कुल खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 10% योगदान देता है। हालांकि, कृषि के लिए पानी की कमी राज्य में एक प्रमुख चुनौती है।
मध्यप्रदेश में सिंचाई व्यवस्था:
राज्य में सिंचाई के लिए विभिन्न प्रकार के स्रोतों का उपयोग किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:
नदी बेसिन
- नर्मदा नदी बेसिन:
- नर्मदा नदी मध्यप्रदेश के पश्चिमी हिस्से से होकर गुजरत तक बहती है। इसके किनारे सिंचाई परियोजनाएँ जैसे कि सर्गुजा बांध, उमरिया बांध, भेदागहाट बांध, इंदिरा सागर परियोजना आदि विकसित की गई हैं।
- ताप्ती नदी बेसिन:
- ताप्ती नदी मध्यप्रदेश के पूर्वी भाग से होकर महाराष्ट्र में बहती है। इसके किनारे सिंचाई परियोजनाएँ जैसे कि ताप्ती डाम, भीमकुंड डाम आदि हैं।
- छत्रपति शिवाजी नदी बेसिन:
- यह नदी बेसिन मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग से होकर महाराष्ट्र में बहती है। इसके किनारे कई सिंचाई परियोजनाएँ हैं जो कृषि और पानी की सप्लाई के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- सोन नदी बेसिन:
- सोन नदी मध्यप्रदेश के मध्य भाग से होकर उत्तर प्रदेश तक बहती है। इसके किनारे सिंचाई परियोजनाएँ विकसित हैं जो कृषि और जल संसाधन को सुधारने में मदद करती हैं।
सिंचाई परियोजनाएँ
- नर्मदा बहुउद्देशीय परियोजना: यह भारत की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजनाओं में से एक है, जिसमें 31 बांध, 135 पंप हाउस, 200 से अधिक नहरें और 10,000 किलोमीटर से अधिक जल वितरण नहरें शामिल हैं। यह परियोजना 17 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करती है और लाखों लोगों को पीने का पानी और बिजली भी प्रदान करती है।
- इंदिरा सागर परियोजना: यह नर्मदा नदी पर बनी एक बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना है। इसमें 260 मीटर ऊंचा बांध, एक जलविद्युत संयंत्र और 1,200 किलोमीटर से अधिक लंबी नहरें शामिल हैं। यह परियोजना 8 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करती है और लाखों लोगों को पीने का पानी और बिजली भी प्रदान करती है।
- माही-बावनियार परियोजना: यह नर्मदा नदी की सहायक नदी माहि पर बनी एक बहुउद्देशीय परियोजना है। इसमें 75 मीटर ऊंचा बांध, एक जलविद्युत संयंत्र और 800 किलोमीटर से अधिक लंबी नहरें शामिल हैं। यह परियोजना 3 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करती है और लाखों लोगों को पीने का पानी और बिजली भी प्रदान करती है।
- राजघाट परियोजना: यह नर्मदा नदी पर बनी एक बड़ी बहुउद्देशीय परियोजना है। इसमें 135 मीटर ऊंचा बांध, एक जलविद्युत संयंत्र और 600 किलोमीटर से अधिक लंबी नहरें शामिल हैं। यह परियोजना 2 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करती है और लाखों लोगों को पीने का पानी और बिजली भी प्रदान करती है।
- सोनभद्र परियोजना: यह सोन नदी पर बनी एक बहुउद्देशीय परियोजना है। इसमें 64 मीटर ऊंचा बांध, एक जलविद्युत संयंत्र और 400 किलोमीटर से अधिक लंबी नहरें शामिल हैं। यह परियोजना 1 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करती है और लाखों लोगों को पीने का पानी और बिजली भी प्रदान करती है।
इन प्रमुख परियोजनाओं के अलावा, मध्यप्रदेश में कई अन्य छोटी और मध्यम सिंचाई परियोजनाएं भी हैं।
इन परियोजनाओं ने राज्य में सिंचाई क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिससे कृषि उत्पादकता और किसानों की आय में वृद्धि हुई है।
भूमिगत जल:
कुएं और नलकूप राज्य में सिंचाई के लिए एक महत्वपूर्ण जल स्रोत हैं। हालांकि, अत्यधिक दोहन के कारण भूजल स्तर गिर रहा है।
तालाब:
तालाब वर्षा जल का भंडारण करते हैं और सिंचाई के लिए एक पूरक जल स्रोत प्रदान करते हैं।
नहरें:
नहरें बांधों और जलाशयों से पानी को खेतों तक ले जाती हैं।
जल संसाधनों का प्रबंधन:
इनमें शामिल हैं:
- जल उपयोग दक्षता में सुधार: ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर इरिगेशन जैसी जल-कुशल सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देना।
- जल संरक्षण: किसानों को जल संरक्षण विधियों, जैसे कि वर्षा जल संचयन और सूखे प्रतिरोधी फसलों की खेती के बारे में शिक्षित करना।
- नदियों और तालाबों की सफाई: प्रदूषण को कम करना और जल गुणवत्ता में सुधार करना।
- भूजल प्रबंधन: भूजल स्तर को कम होने से रोकने के लिए विनियमन और जागरूकता कार्यक्रम।
- जल संसाधनों पर डेटा संग्रह और निगरानी: बेहतर निर्णय लेने के लिए जल उपलब्धता और उपयोग की जानकारी इकट्ठा करना।
जल संसाधनों की चुनौतियां:
मध्यप्रदेश में जल संसाधनों का प्रबंधन कई चुनौतियों का सामना करता है, जिनमें शामिल हैं:
- कम वर्षा: राज्य में औसत वर्षा कम होती है, जिससे पानी की कमी होती है।
- अनियमित मानसून: मानसून की बारिश अनियमित और अप्रत्याशित होती है, जिससे सूखा और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं हो सकती हैं।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान बढ़ रहा है और वर्षा पैटर्न बदल रहा है, जिससे जल संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है।
- प्रदूषण: औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट जल नदियों और तालाबों को प्रदूषित कर रहा है।
- अतिक्रमण: जल निकायों का अतिक्रमण सिंचाई के लिए उपलब्ध जल की मात्रा को कम कर रहा है|
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