मांडू, मध्य प्रदेश में स्थित, 14वीं और 16वीं शताब्दी के दौरान मालवा सल्तनत की राजधानी थी। इस दौरान, तीन मुख्य राजवंशों ने मांडू पर शासन किया:
स्थापक: मालवा के पहले स्वतंत्र सुल्तान, अलाउद्दीन खिलजी के पराजित गवर्नर, Dilawar khan Ghori
अबू बकर (1305-1351): दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्रता घोषित करने वाले पहले शासक।
महुद खान (1351-1359): शानदार इमारतों के लिए प्रसिद्ध, जैसे कि जामा मस्जिद।
दौलत खान (1359-1390): बहादुर योद्धा, जिन्होंने दिल्ली सल्तनत से कई लड़ाई जीती।
मांडू को एक महत्वपूर्ण शहर के रूप में विकसित किया।
कला, स्थापत्य और साहित्य को बढ़ावा दिया।
मजबूत सेना का निर्माण किया।
स्थापक: महाराजा रूपसिंह पर विजय प्राप्त करने वाले Hoshang Shah
हुशंग शाह (1390-1443): मांडू को “शादाबाद” नाम दिया और कई भव्य स्मारकों का निर्माण करवाया, जैसे कि हुशंग शाह का मकबरा और जहाज महल।
महमुद खिलजी (1443-1469): कला और साहित्य का संरक्षक।
गियास-उद-दीन खिलजी (1527-1531): शेर शाह सूरी द्वारा पराजित अंतिम खिलजी शासक।
मांडू को कला और संस्कृति का केंद्र बनाया।
शानदार स्मारकों का निर्माण करवाया।
व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया।
स्थापक: शेर शाह सूरी, जिन्होंने गियास-उद-दीन खिलजी को हराकर मालवा पर विजय प्राप्त की।
शेर शाह सूरी (1531-1545): मजबूत प्रशासक और दूरदर्शी नेता।
सिकंदर शाह सूरी (1545-1556): निर्माण कार्यो के लिए प्रसिद्ध।
बाज बहादुर (1556-1561): अकबर द्वारा पराजित अंतिम सूरी शासक।
मांडू में शासन व्यवस्था में सुधार किया।
सड़कों और अवसंरचना का निर्माण करवाया।
कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया।
इन तीन राजवंशों ने मांडू को एक समृद्ध और शक्तिशाली शहर के रूप में विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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