मध्य प्रदेश का लोक संगीत क्षेत्र की विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं से प्रभावित रहा है। इसमें भजन, लावणी और कई अन्य शैलियों की विविधता शामिल है। प्रत्येक शैली की अपनी अनूठी शैली और ध्वनि होती है जो क्षेत्र की संस्कृति को दर्शाती है।
मध्य प्रदेश के प्रमुख लोक संगीत शैलियाँ निम्नलिखित हैं:
गरबा गीत को मध्यप्रदेश में गरबा उत्सव के दौरान विशेष रूप से गाया जाता है। यह गीत झाबुआ के आदिवासी समुदाय का प्रमुख गीत भी माना जाता है। यह नवरात्रि पर्व पर गाया जाने वाला एक विशेष प्रकार का गीत होता है जिसमें गरबा की विषय वस्तु भक्ति, हास्य परक एवं श्रृंगार का प्रदर्शन किया जाता है। इसके अलावा इस गीत को निमाड़ अंचल में पुरुष परक के लोक गायन के रूप में भी जाना जाता है।
आल्हा गीत वीरता और साहस की गाथाएं सुनाने वाले ये गीत, बुंदेलखंड क्षेत्र में लोकप्रिय हैं।
निर्गुण गायन शैली वह लोकगीत है जो मध्य प्रदेश के मालवा अंचल नामक क्षेत्र में प्रसिद्ध है। यह लोकगीत आमतौर पर साधु एवं भिक्षुकों के द्वारा गाया जाने वाला एक प्रमुख गीत माना जाता है। यह एक प्रकार का भक्ति गीत है जिसकी रचना कबीर, मीरा, सिंगाजी एवं दादू जैसे संतों के द्वारा की गयी है। निर्गुण गायन शैली में एक विशेष प्रकार का वाद्य यंत्र बजाया जाता है। इस गीत को संत सिंगाजी भजन के नाम से भी जाना जाता है।
कलगी-तुर्रा, मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र की एक लोकप्रिय लोक कला और गायन शैली है. यह एक लोकनाट्य शैली भी है, जिसमें कहानी को काव्यात्मक और संगीतमय संवादों के ज़रिए दिखाया जाता है. इस कला में दो गायन दल होते हैं, एक को कलगी और दूसरे को तुर्रा दल कहा जाता है. दोनों दलों में गायक, गीतकार, और साथी कलाकार होते हैं, जिनके साथ साज़-बाज़ भी होते हैं. श्रीगणेश और मां सरस्वती की वंदना के बाद, दोनों दल अपने ईष्ट देव की पूजा करते हैं. इसके बाद, दोनों दलों के बीच लगातार बेहतरीन गीत पेश करने की होड़ होती है
नागपंथी गायक मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के निमाड़ अंचल में गाया जाने वाला पुरुषों का प्रमुख गीत होता है। यह गीत आमतौर पर किसी विशेष अवसर या त्योहारों पर गाया जाता है जिसमें भगवान श्री कृष्ण की रासलीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यह गीत मुख्य रूप से नागपंथी लोगों के द्वारा गाया जाता है। नागपंथी गायन का आयोजन मृदंग एवं ढोल के साथ एकल या सामूहिक तौर पर किया जाता है।
फाग गायन को मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड, निमाड़ एवं बघेलखंड नामक क्षेत्र में होली के अवसर पर गाया जाता है। माना जाता है कि यह गीत मूल रूप से उत्तर प्रदेश का लोकगीत है जिसे मध्य प्रदेश में भी व्यापक रूप से गाया जाता है। इसमें होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता एवं राधा कृष्ण के प्रेम का वर्णन विभिन्न प्रकार के गीतों के माध्यम से किया जाता है। फाग गायन को शास्त्रीय संगीत एवं उप शास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जा सकता है। इसमें सामूहिक गायन शैली का प्रभाव देखने को मिलता है।
हीड गायन मध्य प्रदेश के लोक संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक सामूहिक गायन परंपरा है जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा की जाती है। हीड गीतों में सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों को छुआ जाता है।
इतिहास:
हीड गायन की उत्पत्ति मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में हुई है। यह माना जाता है कि यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसका संबंध कृषि समुदायों से है।
प्रस्तुति:
हीड गायन में महिलाएं एकत्रित होकर वृत्ताकार आकार में बैठती हैं और लोक गीत गाती हैं। गायन के साथ, वे ताली, मंजीरा और झांझ जैसे वाद्ययंत्रों का भी उपयोग करती हैं।
विषय:
हीड गीतों में विभिन्न विषयों को शामिल किया गया है, जिनमें शामिल हैं:
- सामाजिक जीवन: शादी, जन्म, त्योहार, और सामाजिक रीति-रिवाजों से संबंधित गीत।
- धार्मिक भक्ति: भगवानों और देवी-देवताओं की स्तुति में गाये जाने वाले गीत।
- आध्यात्मिकता: आत्मा, जीवन और मृत्यु जैसे विषयों पर आधारित गीत।
महत्व:
हीड गायन मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह महिलाओं को एकजुट करने और सामाजिक बंधन मजबूत करने में मदद करता है। यह मनोरंजन का एक लोकप्रिय साधन भी है और विभिन्न अवसरों पर इसका आयोजन किया जाता है।
संजा गीत मध्य प्रदेश का प्रमुख गीत माना जाता है। इस गीत को पित्र पक्ष में संध्या के समय में गाया जाता है जिसके कारण इसे संध्या गीत भी कहा जाता है। यह गीत मध्य प्रदेश के मालवा नामक क्षेत्र में आदिवासियों द्वारा गाया जाने वाला प्रमुख गीत होता है। इस दिन आदिवासी घरों की अविवाहित लड़कियां गोबर एवं फूल-पत्तियों से एक दीवार पर संजा की आकृति बनाकर मधुर गीत गाती हैं। इसके अलावा यह लड़कियां संजा पर्व के दिन घर-घर जाकर संझादेवी को मनाते हुए प्रसाद वितरण भी करती हैं।
यह गीत किशोरियों द्वारा पितृ पक्ष पर 16 दिनों तक गाया जाता है।
“बरसाती बरता” मध्य प्रदेश के लोक गीतों का एक प्रसिद्ध रूप है, जो विशेष रूप से निमाड़ और मालवा क्षेत्रों में लोकप्रिय है। यह महिलाओं द्वारा समूह में गाया जाने वाला एक वार्तालाप-आधारित गीत है।
बरसाती बरता की विशेषताएं:
- मौसम: बरसाती बरता मानसून ऋतु से जुड़ा गीत है।
- विषय: इन गीतों में बारिश, प्रकृति, प्रेम, सामाजिक मुद्दे, और महिलाओं के जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण होता है।
- शैली: बरसाती बरता लोक गीतों की शैली मधुर और लयबद्ध होती है।
- प्रस्तुति: महिलाएं इन गीतों को समूह में गाती हैं, और साथ में ताली और मंजीरा जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग भी करती हैं।
बरसाती बरता का महत्व:
- सांस्कृतिक महत्व: बरसाती बरता मध्य प्रदेश की समृद्ध लोक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- मनोरंजन: ये गीत ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन का साधन रहे हैं।
- सामाजिक संदेश: बरसाती बरता के माध्यम से सामाजिक मुद्दों और महिलाओं के जीवन से जुड़े संदेशों को भी व्यक्त किया जाता है।
बरसाती बरता:
बरसाती बरता न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि ये मध्य प्रदेश की लोक संस्कृति और परंपराओं को भी दर्शाते हैं।
- यह अहीर, गवली, बरेदी और ढोसी जनजातियों द्वारा किया जाता है।
- दीवाली के त्योहार के दौरान, लड़कियां मोर पंख पहनती हैं और घर-घर जाकर गीत गाती हैं।
- यह गीत ढोलक, नागरिया और बांसुरी की मदद से किया जाता है।
- यह भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी बताती है।
यह एक धार्मिक लोकगीत है।
यह महाकाव्य महाभारत के पात्रों की कहानी कहता है।
यह चैत्र मास के दौरान भजन शैली में किया जाता है।
ये धार्मिक प्रकृति के भजन हैं।
13.बसदेवा गायन (Basadeva Gaayan)
बसदेवा गायन को मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड नामक क्षेत्र में कई दशकों से गाया जाता है जिसका उद्देश्य समाज को मानवीय गुणों का संदेश देना होता है। बसदेवा गायन को हरबोले, जय गंगान एवं भटरी बाभन के नाम से भी जाना जाता है। इसमें मुख्य रूप से भजन शैली का उपयोग किया जाता है। इस गीत को हरबोले जनजाति के द्वारा अपने यजमान के समक्ष दिन में गाया जाता है। बसदेवा गायन में मुख्य रूप से रामायण की कथा, श्रवण कुमार की कथा, कर्ण की कथा, महाभारत की कथा आदि का उपयोग किया जाता है।
बिदेसिया गीत मध्य प्रदेश के बघेलखंड नामक क्षेत्र में गाया जाता है। इस गीत को नव विवाहित महिलाएं अपने घर से दूर रहने वाले पति की याद में गाती है। कहा जाता है कि एक महिला बटोही (राहगीर) के माध्यम से इस गीत को अपने पति तक सुपुर्द करती हैं। माना जाता है कि इस गीत की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश एवं बिहार के राज्यों से हुई है। इस गीत में लोकनायक एवं नायिका के मिलन की अभिलाषा प्रदर्शित की जाती है। यह एक लंबा गीत होता है जिसमें एकल एवं सामूहिक गायन शैली का प्रभाव देखने को मिलता है।
घोटुल पाता गीत को मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के मुड़िया आदिवासी क्षेत्रों में गाया जाता है। इस गीत को गांव के बच्चे या किशोर सामूहिक रूप से गाते हैं। घोटुल पाता गीत को ‘शोक गीत’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह गीत विशेष रूप से मृत्यु के समय पर गाया जाता है। मध्य प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में गोंड़ एवं मुड़िया जनजातियों द्वारा इस गीत को गाने की एक विशेष परंपरा है।
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