मध्य प्रदेश की कोल जनजाति: एक समृद्ध विरासत और संस्कृति
कोल जनजाति, जिन्हें “मुंडा” भी कहा जाता है, मध्य प्रदेश के आदिवासी निवासियों में से एक है।
इनकी जड़ें ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा परिवार से मानी जाती हैं, और वे सदियों से इस क्षेत्र में रहते हैं।
मध्य प्रदेश में, कोल जनजाति मुख्य रूप से छोटा नागपुर क्षेत्र में बिलासपुर, रायगढ़ और सरगुजा जिलों में पाई जाती है।
माना जाता है कि ये लोग 18वीं शताब्दी में छोटा नागपुर से मध्य प्रदेश आए थे।
कोल जनजाति एक सामुदायिक समाज है, जहाँ परिवार और वंशावली महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
गाँव का मुखिया, जिसे “मानिक” कहा जाता है, समुदाय के मामलों का नेतृत्व करता है।
इनकी संस्कृति प्रकृति के साथ गहरे संबंधों पर आधारित है, और वे कई देवी-देवताओं और आत्माओं की पूजा करते हैं।
कृषि इनका मुख्य व्यवसाय है,
वन उपज और शिल्प भी इनकी आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
कोल लोग मुंडारी भाषा बोलते हैं, जो ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा परिवार का हिस्सा है।
इनकी समृद्ध मौखिक परंपरा है, जिसमें लोककथाएँ, गीत और नृत्य शामिल हैं।
मांडा उनका प्रमुख त्योहार है, जो फसल कटाई का उत्सव है।
बिरसा मुंडा कोल समुदाय के एक महान नेता थे, जिन्होंने 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था।
कृषि: कोल जनजाति मुख्य रूप से वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर करती है।
वन उपज: वे जंगलों से लकड़ी, फल, शहद और अन्य वन उपज इकट्ठा करते हैं।
शिल्प: कोल लोग बांस, लकड़ी और धातु से विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प बनाते हैं।
पशुपालन: कुछ परिवार मवेशी, बकरी और मुर्गी भी पालते हैं।
गरीबी और भूमिहीनता
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच
वन क्षेत्रों का ह्रास
सांस्कृतिक पहचान का क्षरण
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