गोंड जनजाति भारत की सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक है। इनका निवास स्थान मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों में फैला हुआ है। मध्य प्रदेश में गोंड जनजाति की आबादी करीब 5 मिलियन है, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 7% है।
गोंड जनजाति अपनी समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और कला के लिए जानी जाती है। इनकी कला में चित्रकला, मूर्तिकला, नृत्य, संगीत और हस्तशिल्प शामिल हैं। गोंड चित्रकला अपनी जीवंत रंगों और अनूठी शैली के लिए प्रसिद्ध है।
गोंड जनजाति प्रकृति के साथ गहरे संबंध रखती है। ये लोग जंगलों और वनस्पतियों और जीवों के प्रति सम्मान रखते हैं। इनकी कई देवी-देवता प्रकृति से जुड़े हुए हैं।
गोंड जनजाति के लोग मेहनती और कुशल होते हैं। ये लोग खेती, पशुपालन, शिकार और मछली पकड़ने का काम करते हैं।
भाषा: गोंडी भाषा बोलते हैं, जो द्रविड़ भाषा परिवार का हिस्सा है।
धर्म: प्रकृति पूजा, देवी-देवताओं की पूजा, पूर्वजों की पूजा।
त्यौहार: गोंड जनजाति कई त्यौहार मनाती है, जिनमें गोंडवाना महोत्सव, माड़िया फूल महोत्सव, भैंस महोत्सव, और दशहरा प्रमुख हैं।
पोशाक: पुरुष धोती और लंगोटी पहनते हैं, जबकि महिलाएं साड़ी या लहंगा पहनती हैं।
आभूषण: गोंड जनजाति के लोग चांदी, पीतल और तांबे के आभूषण पहनते हैं।
कला: गोंड चित्रकला, मूर्तिकला, नृत्य, संगीत और हस्तशिल्प।
भोजन: गोंड जनजाति के लोग कई तरह के व्यंजन बनाते हैं, जिनमें बाजरा, ज्वार, मक्का, रागी, चावल, दाल, सब्जियां और मांस शामिल हैं।
चिकित्सा: गोंड जनजाति के लोग जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उपचारों का उपयोग करके कई बीमारियों का इलाज करते हैं।
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