मध्य प्रदेश के लोगों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में बड़ी संख्या में भाग लिया और विभिन्न प्रकार से अपना योगदान दिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत 1930 में दांडी मार्च के साथ हुई, जब गांधीजी और उनके अनुयायियों ने गुजरात के तट पर स्थित दांडी गांव तक 240 मील की पैदल यात्रा की। इस दौरान उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए नमक कर कानून का उल्लंघन किया।
नमक सत्याग्रह: 1930 में, जबलपुर के लोगों ने विदेशी नमक की बिक्री का विरोध किया और सरकारी नमक गोदामों पर धरना दिया।
बारदोली सत्याग्रह: 1928 में, गुजरात के बारदोली में किसानों ने अत्यधिक लगान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। मध्य प्रदेश के कई लोगों ने इस आंदोलन का समर्थन किया और धन जुटाने में मदद की।
चंपारण सत्याग्रह: 1917 में, बिहार के चंपारण में किसानों ने नील की खेती के लिए बाध्य किए जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। मध्य प्रदेश के कई लोगों ने इस आंदोलन का समर्थन किया और गांधीजी के कार्यों को प्रचारित करने में मदद की।
खादी को बढ़ावा: लोगों ने विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया और खादी (भारतीय हस्तनिर्मित कपड़े) को अपनाया।
सरकारी शिक्षा का बहिष्कार: छात्रों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया और राष्ट्रीय विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त की।
अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन: गांधीजी ने अस्पृश्यता को मिटाने के लिए भी काम किया। मध्य प्रदेश के लोगों ने इस अभियान में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।
सेठ गोविंददास: जबलपुर के रहने वाले, उन्होंने नमक सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जेल गए।
शंकरलाल भट्ट: इंदौर के रहने वाले, उन्होंने बारदोली सत्याग्रह में भाग लिया और खादी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
नारायण राव खापरे: खंडवा के रहने वाले, उन्होंने चंपारण सत्याग्रह में भाग लिया और गांधीजी के अनुयायी बन गए।
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