भारिया जनजाति, मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदायों में से एक है, जो मुख्य रूप से छिंदवाड़ा, सिवनी, मंडला और सरगुजा जिलों में निवास करती है। 1981 की जनगणना में, इन्हें “जंगलियों के भी जंगली” कहा गया था, जो उनके दुर्गम निवास स्थान और अद्वितीय संस्कृति को दर्शाता है।
भारिया जनजाति, गोंड जनजाति की एक उप-शाखा मानी जाती है। इनकी भाषा, भारिया भाषा, गोंडी भाषा से संबंधित है।
भारिया जनजाति, प्रकृति पूजक है और इनकी संस्कृति, वन और वन्यजीवों के प्रति गहरे सम्मान से जुड़ी हुई है। इनके जीवन में नृत्य, संगीत और कहानियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारिया जनजाति में, सामुदायिक भावना बहुत मजबूत होती है। ये लोग संयुक्त परिवारों में रहते हैं और बुजुर्गों का सम्मान करते हैं।
इनकी पारंपरिक पोशाक, सूती कपड़ों से बनी होती है, जिसमें पुरुष धोती और लंगोटी पहनते हैं, जबकि महिलाएं साड़ी या लहंगा पहनती हैं।
भारिया जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि है। वे वन उपज भी इकट्ठा करते हैं और शिकार करते हैं।
भारिया जनजाति, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव से जूझ रही है। इनके विकास के लिए, सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं।
छिंदवाड़ा जिले का पातालकोट क्षेत्र, भारिया जनजाति का प्रमुख निवास स्थान है।
यह क्षेत्र, अपनी दुर्गमता और अद्वितीय संस्कृति के लिए जाना जाता है। 2022 में, वन अधिकार अधिनियम के तहत, भारिया जनजाति को पातालकोट पर अधिकार दिया गया, जिससे वे अपनी जमीन और संसाधनों का प्रबंधन कर सकें।
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