वेद: मूल और सबसे पुराने ग्रंथ, वेदों को चार भागों में विभाजित किया गया है – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। प्रत्येक वेद में संहिता (भजन), ब्राह्मण (अनुष्ठान और समारोह), आरण्यक (वन ग्रंथ) और उपनिषद (दार्शनिक शिक्षाएँ) शामिल हैं।
ऋग्वेद:-
- ऋग्वेद, चार वेदों में सबसे प्राचीन और पवित्र ग्रंथ, संस्कृत भाषा में लिखा गया भजनों (सूक्त) का संग्रह है। इसकी रचना 1500 ई०पू० – 1000ई०पू० माना जाता है। महाभाष्य में ऋग्वेद की 21 शाखाओं का उल्लेख है, जिनमें पाँच शाखाएँ शाकल, वाष्कल, शांखायन, आश्वलायन और माण्डूकेय प्रमुख हैं।
- ऋग्वेद का विभाजन मण्डलों में, मण्डल का विभाजन अनुवाकों में, अनुवाक का विभाजन सूक्तों में एवं सूक्त का विभाजन मंत्रों (ऋचाओं) में किया गया है। ऋग्वेद में 10 मण्डल, 85 अनुवाक, 1028 सूक्त (बाल खिल्य के 11 सूक्त को जोड़ने पर) एवं 10,627 (निश्चित ज्ञात नहीं) मंत्र (ऋचाएँ) हैं।
- ऋग्वेद में कुल वर्गों की संख्या 2024 हैं और मन्त्रों की संख्या 10,627 हैं। ऋग्वेद के वैदिक मंत्रों का आख्यान करने वाले और कर्मकांड करवाने वाले पुरोहित को ‘होतृ’ कहा जाता था।
- ऋग्वेद के अधिकांश मंत्रों की रचना ऋषियों ने की है लेकिन कुछ मंत्रों की रचना ऋषिकाओं (स्त्रियों) ने की है जिनके नाम लोपामुद्रा, अपाला, रोमशा, घोषा आदि हैं।
- ऋग्वेद के 10 मंडलो में से 2 से लेकर 8 तक प्राचीनतम मण्डल हैं वहीं प्रथम और 10वां मण्डल सबसे नवीनतम माना जाता है।
- ऋग्वेद में कुल 25 नदियों का उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद के दसवें मंडल के नदी सूक्त में 21 नदियों का उल्लेख है। इनमें सबसे पहले स्थान पर गंगा नदी का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के अनुसार, सिंधु आर्यों की सबसे प्रमुख नदी मानी गई है, जबकि सरस्वती को सबसे पवित्र और दूसरी सबसे महत्वपूर्ण नदी माना गया है। सरस्वती नदी ऋग्वेद में ‘नदीतमा/मातेतमा/देवीतमा ‘ अर्थात ‘नदियों की माता कहा गया है।
- ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में एक विराट पुरुष द्वारा चार वर्णों की उत्पत्ति का उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार, विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण की, भुजाओं से क्षत्रिय की, जांघों से वैश्य की और पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई है।
- गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है। यह सूर्य देवता सावित्री को समर्पित है।
- ऋग्वेद में अनेक वर्तमान नदियों के वैदिक नामों का उल्लेख हैं। ऋग्वेद में नदियों को उनके प्राचीन नामो में वर्णित किया गया है
- ऋग्वैदिक कालीन समाज पितृसत्तात्मक हुआ करता था। इस दौरान पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी सदैव पुत्र ही होता था। इस काल में नारी को माता के रूप में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। ऋग्वैदिक काल में सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियां मौजूद नहीं थी।
- वैदिक काल में इंद्र को सबसे प्रमुख देवता माना गया है। ऋग्वेद के दूसरे मंडल में इंद्र का सबसे अधिक 250 बार उल्लेख किया गया है। इंद्र के बाद अग्नि को दूसरा प्रमुख देवता माना गया है और अग्नि का उल्लेख ऋग्वेद में 200 बार किया गया है। इसके अलावा, ऋग्वेद में वरुण, सोम, मरूत, पर्जन्य, सूर्य पूषन इत्यादि देवताओं का उल्लेख भी मिलता है।
- ऋग्वैदिक कालीन आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन होता था। इस दौरान कृषि का पूर्ण विकास नहीं हो पाया था और ये लोग घुमक्कड़ जीवन जीते थे।
- ऋग्वेद 500 ईस्वी तक नहीं लिखा गया था। 2000 ईसा पूर्व से 1900 ईस्वी तक, ब्राह्मणों ने मौखिक रूप से ऋग्वेद को पीढ़ी से पीढ़ी तक प्रसारित किया।
सामवेद:-
- साम का अर्थ है गायन। यज्ञ के अवसर पर सामवेद में संकलित मंत्रों को देवताओं की स्तुति के समय गाया जाता था। सामवेद में कुल 1875 ऋचायें हैं, प्रायः ऋचाएँ ही गाई जाती थीं। अतः समस्त सामवेद में गायन ऋचाएँ ही हैं। इनमें से केवल 75 ही नई हैं, बाकी सब ऋग्वेद से ली गईं हैं।
- भारतीय संगीत का आदिग्रन्थ सामवेद को कहा जाता है। सामवेद का उच्चारण करने वाले पुरोहित को ‘उदगातृ’ या उदगाता कहा जाता था।
- सामवेद की तीन शाखाएँ कौथम, राणायनीय और जैमिनीय शाखाएँ मिलती है। पतंजलि के महाभाष्य और पुराणों में सामवेद की एक हजार शाखाओं का उल्लेख मिलता है।
- बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में सामवेद की 1080 शाखाओं का उल्लेख प्राप्त हैं, किन्तु इन भाषाओं में अधिकांश के नाम तक नहीं प्राप्त होते हैं।
- वेद के उद्गाता, गायन करने वाले जो कि सामग (साम गान करने वाले) कहलाते थे। उन्होंने वेदगान में केवल तीन स्वरों के प्रयोग का उल्लेख किया है जो उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित कहलाते हैं।
- सामवेद के गान चार प्रकार के हैं- 1. ग्राम गान (ग्राम या सार्वजनिक स्थलों पर गाये जाने वाले गान), 2. आरण्य गान (अरण्य या वनों में गाये जाने वाले गाना), 3. उह गान (ग्राम गान का परिवर्तित एवं परिवर्द्धित रूप) एवं 4. उह्य गान (आरण्य गान का परिवर्तित एवं परिवर्द्धित रूप)। इस प्रकार सामवेद का संगीत की दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। साम गायन संगीत शास्त्र की आधारशिला मानी जाती है। सामवेद को भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
यजुर्वेद :-
- यजुर्वेद में यज्ञ-विषयक मन्त्रों का संग्रह है। इनका प्रयोग यज्ञ के समय अध्वर्यु नामक पुरोहित किया करता था। यजुर्वेद में 40 अध्याय हैं। तथा 1975 मन्त्र निहित है। पाश्चात्य विद्वान इसे ऋग्वेद से काफी समय बाद का मानते हैं।
- जटिल कर्मकाण्ड में उपयोगी होने के कारण यजुर्वेद अन्य सभी वेदों की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘यजुस’ कहा जाता है।। यज्ञ के अवसर पर जिन मन्त्रों के द्वारा देवताओं का यजन किया जाता था उसे यजुर्वेद के अन्तर्गत संकलित किया गया है।
- यजुर्वेद के दो प्रमुख रूप/शाखा मिलते हैं। शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद।
- `शुक्ल यजुर्वेद पद्यात्मक है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में गद्य और पद्य दोनों का मिश्रण है। कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ साथ उनकी व्याख्या भी मिलती है।
- यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ऋग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।
- इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं।
- यजुर्वेद में यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं।
- यह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है।
- यदि ऋग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी तो यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई थी।
- इस ग्रन्थ से आर्यों के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है।
- वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रम की झाँकी भी इसमें है।
अथर्ववेद :-
- अथर्ववेद अन्य तीनों वेदों से भिन्न है। इसमें आयुर्वेद सम्बन्धी सामग्री अधिक है। इसका प्रतिपाद्य विषय विभिन्न प्रकार की ओषधियाँ, ज्वर, पीलिया, सर्पदंश, विष-प्रभाव को दूर करने के मन्त्र सूर्य की स्वास्थ्य-शक्ति, रोगोत्पादक कीटाणुओ के शमन अदि का वर्णन है।
- इस वेद में यज्ञ करने के लाभ को तथा यज्ञ से पर्यावरण की रक्षा का भी वर्णन है। इसमें 20 काण्ड, 34 प्रपाठक, 111 अनुवाक, 731 सूक्त तथा 5,977 मन्त्र हैं, इनमें 1200 के लगभग मन्त्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। अथर्ववेद का उच्चारण करने वाले पुरोहित को ‘ब्रह्म’ कहा जाता था
- पतञ्जलि ने महाभाष्य में अथर्ववेद की नौ शाखाओं का उल्लेख किया है, जिनमें पिप्पलाट, शौनक मौद जाजल, देवदर्श, चारण विद्या. स्त्रीद, जलद और ब्रह्मवद संहिताएँ है। इन संहिताओं में शौनक और पिप्पलाद संहिता ही उपलब्ध हैं। अथर्ववेद की शौनक संहिता अधिक प्रामाणिक मानी जाती है, इसमें 20 काण्ड, 731 सूक्त और 5987 मंत्र संग्रहीत हैं।
- इन मन्त्रों में कुछ मन्त्र ऋग्वेद से ग्रहण किये गये हैं। इनमें से 1200 मंत्र (लगभग 20%) ऋग्वेद (के 1ले, 8वें एवं 10वें मण्डल) से लिये गये हैं। अथर्ववेद को उसके रचयिताओं के नाम पर अथर्वांगीरस वेद कहा जाता है।
- इसे अक्सर जादुई सूत्रों के वेद के रूप में संदर्भित किया जाता है। इसमें ऐसे भजन, मंत्र और जादू शामिल हैं जो यज्ञ (बलिदान) के दायरे से बाहर हैं।
Leave a Reply