उपनिषद: ज्ञान और आत्म-अन्वेषण का द्वार
उपनिषद, हिंदू धर्म के प्राचीनतम और महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक, वेदों का अंतिम भाग हैं। उपनिषदों की संख्या लगभग 108 है इनकी रचना लगभग 800 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व के बीच हुई थी। संस्कृत भाषा में लिखे गए इन ग्रंथों में, ऋषि-मुनियों और उनके शिष्यों के बीच आध्यात्मिक ज्ञान पर गहन संवादों का वर्णन है।
आत्मा (ब्रह्म): उपनिषदों का मुख्य विषय आत्मा (ब्रह्म) की प्रकृति और उसकी परम वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त करना है।
अद्वैत: इन ग्रंथों में ‘अद्वैत’ दर्शन का प्रतिपादन किया गया है, जिसके अनुसार आत्मा और परमात्मा एक ही हैं।
मोक्ष: उपनिषदों में मोक्ष (जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्ति के मार्गों का भी वर्णन है।
कर्म और कर्मफल: कर्म और कर्मफल के सिद्धांतों पर भी इन ग्रंथों में प्रकाश डाला गया है।
ज्ञान और ध्यान: ज्ञान और ध्यान को मोक्ष प्राप्ति के लिए आवश्यक बताया गया है।
कुल 108 उपनिषदों में से, 13 को मुख्य माना जाता है, जिनमें शामिल हैं:
ईशावास्योपनिषद
केनोपनिषद
कठोपनिषद
प्रश्नोपनिषद
मुण्डकोपनिषद
माण्डूक्योपनिषद
तैत्तिरीयोपनिषद
ऐतरेयोपनिषद
छान्दोग्योपनिषद
बृहदारण्यकोपनिषद
श्वेताश्वतरोपनिषद
कौशीतकी उपनिषद
मैत्रायणी उपनिषद
उपनिषदों ने भारतीय दर्शन, धर्म और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है।
इन ग्रंथों ने आध्यात्मिकता, ज्ञान और आत्म-अन्वेषण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है।
उपनिषदों की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और जीवन जीने की कला सिखाती हैं।
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