- यह बुद्ध काल तथा परवर्ती काल में उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली और समृद्ध जनपद था।
- मगध प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था।
- इसकी स्थिति मूलतः दक्षिण बिहार के क्षेत्र में थी। इसके अन्तर्गत आधुनिक पटना एवं गया जिला शामिल थे। इसकी राजधानी गिरिब्रज थी। बाद में राजगृह बनी, जो पांच पहाड़ियों से घिरी थी।
- भगवान बुद्ध के पूर्व ब्रहद्रथ तथा जरासंध यहां के प्रतिष्ठित राजा थे।
भौगोलिक स्थिति
- मगध की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विंध्य पर्वत तक, पूर्व में चंपा से पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत थी।
- विस्तृत उपजाऊ मैदान, कृषि में लोहे तथा नवीन तकनीक का प्रयोग, वन क्षेत्र एवं हाथियों की उपलब्धता, खनिज संसाधनों की उपलब्धता, व्यापार की अनुकूल दशा तथा प्राकृतिक सुरक्षा ने मगध के उत्कर्ष में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- मगध राज्य ने तत्कालीन शक्तिशाली राज्य कोशल, वत्स व अवंति को मिला लिया। इस प्रकार मगध का विस्तार अखंड भारत के रूप में हो गया। मगध साम्राज्य के इतिहास से भारत के इतिहास का एक नया युग शुरू होता है जिसे ‘मगध के उत्कर्ष’ के नाम से जाना जाता है।
मगध राज्य के प्रमुख वंश:- मगध में निम्नलिखित पांच राजवंशों का वर्णन प्रमुख रूप से आता है।
- वृहद्रथ वंश
- हर्यक वंश
- शिशुनाग वंश
- नंद वंश
- मौर्य वंश
1.वृहद्रथ वंश
- मगध साम्राज्य के उत्थान में सर्वप्रथम बृहद्रथ वंश का नाम आता है।
- चेदि के राजा वसु के पुत्र बृहद्रथ ने प्रागैतिहासिक काल में सर्वप्रथम मगध में अपना साम्राज्य स्थापित किया और बृहद्रथ वंश की नींव डाली।
- बृहद्रथ महाभारतकालीन कृष्ण का घोर शत्रु था। मगध का उत्थान इसी के शासनकाल से माना जाता है।
- बृहद्रथ का पुत्र जरासंध भी मगध का प्रतापी राजा था जो मल्लयुद्ध में भीम द्वारा मारा गया।
- इस वंश का अंतिम शासक रिपुंजय अथवा निपुंजय था, इसकी हत्या उसके मंत्री पुलिक ने कर दी।
2.हर्यक वंश (544 ई0पू0-412 ई0पू0)
i.बिम्बिसार (544 ई.पू. से 492 ई.पू.)
- बिम्बिसार इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था। उसे मगध साम्राज्य की सत्ता का वास्तविक संस्थापक भी माना जाता है।
- भट्टिय नामक एक सामंत ने पुलिक के पुत्र की हत्या करवाकर अपने पुत्र बिंबिसार को मगध का शासक बनाया।
- हर्यक वंश के शासक बिंबिसार ने गिरिब्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी बना कर मगध साम्राज्य की स्थापना की।
- बिम्बिसार हर्यक वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था।
- बिंबिसार गौतम बुद्ध का समकालीन था। इसे ‘श्रेणिक’ नाम से भी जाना जाता है।
- 15 वर्ष की आयु में मगध साम्राज्य की बागडोर संभालने वाले बिम्बिसार ने लगभग 52 वर्षों तक शासन किया। इसके शासनकाल में मगध ने विशिष्ट स्थान प्राप्त किया।
- इसका अन्य नाम ‘श्रेणिक‘ था। (जैन साहित्य में)
- बिम्बिसार ने अपने राज्य की नींव विभिन्न वैवाहिक संबंधों के फलस्वरूप रखी और उसका विस्तार किया। उसने तीन विवाह किये-
- प्रथम पत्नी महाकोशला देवी थी, जो कोशलराज की पुत्री और प्रसेनजित की बहन थी। इनके साथ दहेज में काशी प्रान्त मिला, जिससे एक लाख की वार्षिक आय होती थी।
- दूसरी पत्नी वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी चेलना (छलना) थी, जिससे अजातशत्रु का जन्म हुआ।
- तीसरी पत्नी क्षेमा पंजाब के मद्र कुल की राजकुमारी थी।
- बिम्बिसार को वैवाहिक संबंधों से बड़ी राजनीतिक प्रतिष्ठा मिली और मगध को पश्चिम एवं उत्तर की ओर विस्तारित करने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- बिम्बिसार ने अंग राज्य को जीतकर उसे मगध में मिला लिया तथा अपने पुत्र अजातशत्रु को वहां का शासक नियुक्त किया।
- बिम्बिसार ने अवंति के शासक चंडप्रद्योत से मित्रता कर ली तथा अपने राज्यवैद्य जीवक को उसके इलाज के लिए भेजा।
- बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने कर दी और वह 492 ई.पू. में मगध की राजगद्दी पर बैठा।
ii. अजातशत्रु (492 ई.पू. से 460 ई.पू.)
- बिंबिसार की हत्या करने के उपरांत का पुत्र अजातशत्रु मगध का शासक बना। इसे ‘कुणिक’ कहा जाता है। अजातशत्रु जैन मतानुयायी था।
- अजातशत्रु ने साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई। उसने काशी तथा वाशि संघ को एक लंबे संघर्ष के बाद मगध साम्राज्य मेँ मिला लिया।
- बिच्छदियों के आक्रमण के भय से अजातशत्रु ने युद्ध में ‘इव्यमूसल’ तथा ‘महाशिलाकंटक’ शासक नए हथियारोँ का प्रयोग किया।
- प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन राजगीर के सप्तपर्णी गुफा मेँ आजादशत्रु के शासन काल मेँ हुआ।
- अजातशत्रु ने पुराणोँ के अनुसार 20 वर्ष तथा बौद्ध साहित्य के अनुसार 32 वर्ष तक शासन किया।
- अजातशत्रु का कोशल नरेश प्रसेनजित से युद्ध हुआ। प्रसेनजित की पराजय हुई, परन्तु बाद में दोनों में समझौता हो गया।
- प्रसेनजित ने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से किया।
- अजातशत्रु का लिच्छवियों से युद्ध हुआ। अपने कूटनीतिक मित्र वस्सकार की सहायता से उसने लिच्छवियों पर विजय प्राप्त की। इस युद्ध में अजातशत्रु ने रथमूसल तथा महाशिलाकंटक नामक हथियारों का प्रयोग किया। बाद में काशी व वैशाली दोनों मगध के अंग बन गए।
- अजातशत्रु के समय में ही राजगृह की सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।
- 32 वर्षों तक शासन करने के बाद अजातशत्रु अपने पुत्र उदायिन द्वारा मार डाला गया।
iii. उदयिन (460 ई.पू. से 444 ई.पू.)
- अजातशत्रु की हत्या करके उसका पुत्र उदयिन मगध साम्राज्य की गद्दी पर आसीन हुआ।
- पुराणों एवं जैन ग्रंथों के अननुसार उदयिन ने गंगा तथा सोन नदियों के संगम तट पर पाटलिपुत्र (कुसुमपुरा) नामक नगर की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।
- उदयिन या उदय भद्र जैन धर्मावलंबी था।
- हर्यक वंश का अंतिम राजा उदयिन का पुत्र नागदशक था। जिसे ‘दर्शक’ भी कहा जाता है।
- इसको उसके अमात्य शिशुनाग ने पदच्युत कर मगध की गद्दी पर अधिकार कर लिया और ‘शिशुनाग’ नामक एक नए वंश की नींव रखी।
3. शिशुनाग वंश (412 ई.पू. से 344 ई.पू.)
- संस्थापक-शिशुनाग
- इसी के नाम पर वंश का नाम ‘शिशुनाग वंश’ पड़ा।
प्रमुख शासक
i.शिशुनाग (412 ई.पू. से 394ई.पू.)
- हर्यक वंश के शासकोँ के बाद मगध पर पर शिशुनाग वंश का शासन स्थापित हुआ।
- शिशुनाग नमक एक अमात्य हर्यक वंश के अंतिम शासक नागदशक को पदच्युत करके मगध की गद्दी पर बैठा और शिशुनाग नामक नए वंश की नींव डाली।
- इसने अवंति तथा वत्स राज्य पर अधिकार कर उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया। इसने वैशाली को राजधानी बनाया।
- इसके शासन के समय मगध के अन्तर्गत बंगाल से लेकर मालवा तक का भू-भाग सम्मिलित था।
- शिशुनाग ने वज्जियों को नियंत्रित करने के लिए वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
- महावंश के अनुसार, शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र कालाशोक गद्दी पर बैठा।
ii. कालाशोक (394 ई.पू. से 366 ई.पू.)
- इसका नाम ‘पुराण‘ तथा ‘दिव्यावदान‘ में काकवर्ण मिलता है।
- इसने वैशाली के स्थान पर पुनः पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया। इसने 28 वर्षों तक शासन किया।
- गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के के लगभग 100 वर्ष बाद कालाशोक के शासन काल के 10वें वर्ष मे वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।
- आयोजन वैशाली में हुआ। इसी समय बौद्ध संघ दो भागों (स्थविर तथा महासांघिक) में बंट गया।
- बाणभट्ट रचित ‘हर्षचरित’ के अनुसार काकवर्ण को राजधानी पाटलिपुत्र में घूमते समय महापद्मनंद नामक व्यक्ति ने चाकू मारकर हत्या कर दी।
- महाबोधिवंश के अनुसार कालाशोक के दस पुत्र थे, जिन्होंने कालाशोक की मृत्यु (366 ई0पू0) के बाद मगध पर 22 वर्षों तक (लगभग 344 ई0पू0) शासन किया।
4. नंद वंश (344 ई.पू.से 324-23 ई.पू.)
- संस्थापक – महापद्मनंद
- प्रमुख शासक
i.महापद्मनंद
- पुराणों के अनुसार, इस वंश का संस्थापक महापद्मनंद एक शूद्र था। इसमें महापद्मनंद को ‘सर्वक्षत्रांतक‘ (क्षत्रियों का नाश करने वाला) तथा ‘भार्गव‘ (दूसरे परशुराम का अवतार) कहा गया है।
- महापद्मनंद कलिंग के कुछ लोगो पर अधिकार कर लिया था। वहाँ उसने एक नहर का निर्माण कराया।
- इसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की तथा ‘एकराट‘ एवं ‘एकक्षत्र‘ की उपाधि धारण की।
- महापद्मनंद के आठ पुत्र थे। घनानंद भी इसका पुत्र था, जो नंद वंश का अंतिम शासक था।
ii. घनानंद
- यह सिकंदर का समकालीन था। इसके समय में 326 ई0पू0 में सिकंदर ने पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण किया था। ग्रीक (यूनानी) लेखकों ने इसे ‘अग्रमीज‘ कहा है।
- घनानंद ने जनता पर बहुत से कर आरोपित किये थे, जिससे जनता असंतुष्ट थी।
- घनानंद के दरबार में चाणक्य (तक्षशिला के आचार्य) आये। वह घनानंद के द्वारा अपमानित किये गये।
- नंद वंश का अंतिम शासक घनानंद था।
- 322 ई.पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरू चाणक्य की सहायता से घनानंद की हत्या कर मौर्य वंश की नींव रखी।
- मौर्यों के शासन में मगध साम्राज्य चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया।
मगध के उत्कर्ष के लिए उत्तरदायी कारक
- सुविधाजनक भौगोलिक स्थिति जिससे निम्न गंगा के मैदानों पर नियंत्रण संभव हो सका।
- तांबे और लोहे की खानों से निकटता जो बेहतर उपकरण और हथियारों के लिए आवश्यक थे।
- जलोढ़ मिट्टी का जमाव, जो कृषि के लिए मजबूत आधार प्रदान करता था।
- मगध की दोनों राजधानियां-राजगृह और पाटलिपुत्र सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी। राजगृह पहाड़ियों से घिरी थी और शत्रुओं से पूरी तरह सुरक्षित थी। पाटलिपुत्र गंगा, सोन और गंडक नदी के संगम पर स्थित थी, अतः वह जलदुर्ग से सुरक्षित थी।
- दक्षिण बिहार में गया के घने जंगलों से इमारती लकड़ी और सेना के लिए हाथी प्राप्त होते थे। यही कारण था कि मगध ने पहली बार युद्ध में हाथियों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया।
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