- राष्ट्रकूट साम्राज्य ने 10वीं शताब्दी के अंत तक लगभग 200 वर्षों तक दक्कन पर प्रभुत्व जमाया और विभिन्न समयों पर उत्तर और दक्षिण भारत के क्षेत्रों पर भी नियंत्रण किया।
- यह न केवल उस समय की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक सत्ता थी बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक मामलों में उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक सेतु के रूप में भी कार्य करती थी।
- राष्ट्रकूट वंश ने दक्षिण भारत में उत्तर भारतीय परंपराओं और नीतियों को लागू किया और उनका विस्तार दिया।
- इस वंश ने भारत में राजनीति, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में स्थिरता और उपलब्धियों की नई ऊंचाइयों को छुआ।
राष्ट्रकूट वंश के महत्वपूर्ण शासक राष्ट्रकूट वंश ने 755 ई. से 975 ई. तक शासन किया। वंश की वंशावली नीचे दी गई है। राष्ट्रकूट वंश के कुछ महत्वपूर्ण राजा थे:
- दंतिदुर्ग (735 – 756 ई.)
- दंडीदुर्ग राष्ट्रकूट वंश के संस्थापक और राष्ट्रकूट वंश के पहले शासक थे। उन्होंने मान्यखेत को राष्ट्रकूट साम्राज्य की राजधानी बनाया जिसे मालखेड के नाम से भी जाना जाता था।
- उन्होंने मालवा पर कब्जा कर लिया और चालुक्य साम्राज्य के शासक कीर्तिवर्मन द्वितीय को हराकर उस पर कब्ज़ा कर लिया।
- उन्होंने हिरण्य गर्भ (स्वर्ण गर्भ) नामक अनुष्ठान किया था जिसके बारे में माना जाता था कि इससे बलि देने वाले का पुनर्जन्म क्षत्रिय (शासक वर्ग) के रूप में होता है, भले ही वह जन्म से क्षत्रिय न हो।
- कृष्ण प्रथम (756 – 774 ई.)
- कृष्ण प्रथम दंतिदुर्ग के उत्तराधिकारी बने और वे एक महान विजेता थे।
- उनके शासनकाल में राष्ट्रकूट साम्राज्य महाराष्ट्र से लेकर कर्नाटक तक फैला हुआ था।
- उन्होंने वेंगी के पूर्वी चालुक्यों और गंग वंश को हराया। एलोरा में चट्टान को काटकर बनाए गए अखंड कैलाश मंदिर का निर्माण उन्होंने ही करवाया था।
- गोविंदा तृतीय (793 – 814 ई.)
- वह राष्ट्रकूट वंश के सबसे महान शासकों में से एक थे।
- वह उत्तर भारतीय राज्यों (मालवा और कन्नौज) के खिलाफ अपने अभियानों में सफल रहे।
- संजन शिलालेख में पाल सम्राट धर्मपाल और प्रतिहार सम्राट नागबट्टा द्वितीय पर उनकी जीत का उल्लेख है।
- उनके शासनकाल में, राष्ट्रकूट साम्राज्य दक्षिण में केप कोमोरिन से लेकर उत्तर में कन्नौज और पूर्व में बनारस से लेकर पश्चिम में भरूच तक फैला हुआ था।
- अमोघवर्ष (814 – 878 ई.)
- अमोघवर्ष राष्ट्रकूट वंश का सबसे महान शासक भी था और उसने लगभग 68 वर्षों तक शासन किया।
- काव्यशास्त्र पर पहली कन्नड़ पुस्तक, कविराजमार्ग उसके द्वारा लिखी गई थी।
- उसने वैवाहिक गठबंधनों के माध्यम से पश्चिमी गंगा राजवंश के साथ शांति स्थापित की।
- उसने वेंगी के चालुक्यों को हराया और वीरनारायण की उपाधि धारण की। उसके शासनकाल के दौरान, राष्ट्रकूट वंश ने मालवा और गंगावड़ी पर नियंत्रण खो दिया।
- राष्ट्रकूट राजवंश की राजधानी मान्यखेत का निर्माण उसके द्वारा किया गया था (दंतीदुर्ग ने इसे शुरू में राजधानी बनाया था)। वह जैन धर्म का अनुयायी था। उसे दक्षिण का अशोक कहा जाता था।
- इन्द्र तृतीय (915 -927 ई.)
- इंद्र तृतीय अमोघवर्ष के पोते थे।
- कृष्ण द्वितीय के शासनकाल के दौरान पूर्वी चालुक्यों द्वारा पराजित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रकूट साम्राज्य को फिर से स्थापित किया।
- 915 ई. में महिपाल को हराने और कन्नौज को लूटने के बाद, उन्हें अपने समय का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता था।
- कृष्ण तृतीय (934 – 963 ई.)
- इंद्र तृतीय के बाद राष्ट्रकूट वंश के कमज़ोर शासकों ने राज किया, जिसके अधीन राजवंश ने अपने साम्राज्य के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों पर नियंत्रण खो दिया।
- वह राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक था।
- उसने मालवा के परमारों और वेंगी के चालुक्यों के विरुद्ध युद्ध किया।
- 949 ई. में, उसने चोल राजा परंतक प्रथम को हराया और उसके साम्राज्य के उत्तरी भागों पर कब्ज़ा कर लिया।
राष्ट्रकूटों का शासनतंत्र:-
- राष्ट्रकूटों ने एक सुव्यवस्थित शासन प्रणाली को जन्म दिया था। इस काल का प्रशासन राजतन्त्रात्मक था वहीं राजा को सभी अधिकार प्राप्त थे। वहीं राजपद आनुवंशिक होता था और शासन संचालन के लिए सम्पूर्ण राज्य को राष्ट्रों, विषयों, भूक्तियों तथा ग्रामों में विभाजित किया गया था। राष्ट्र, जिसे ‘मण्डल’ कहा जाता था, प्रशासन की सबसे बड़ी इकाई थी।
- वहीं प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ‘ग्राम’ थी। राष्ट्र के प्रधान को ‘राष्ट्रपति’ या ‘राष्ट्रकूट’ कहा जाता था। एक राष्ट्र चार या पाँच ज़िलों के बराबर होता था। पूर्व में राष्ट्र कई विषयों एवं ज़िलों में विभाजित था। एक विषय में 2000 गाँव होते थे। विषय का प्रधान ‘विषयपति’ कहलाता था। विषयपति की सहायता के लिए ‘विषय महत्तर’ होते थे। विषय को ग्रामों या भुक्तियों में विभाजित किया गया था। प्रत्येक भुक्ति में लगभग 100 से 500 गाँव होते थे।
- ये आधुनिक तहसील की तरह ही थे। भुक्ति के प्रधान को ‘भोगपति’ या ‘भोगिक’ कहा जाता था। इसका पद आनुवांशिक होता था। वेतन के बदले इन्हें ‘करमुक्त भूमि’ प्रदान की जाती थी। वहीं भुक्ति को भी छोटे-छोटे गाँव में बाँट दिया जाता था, जिनमें 10 से 30 गाँव होते थे। जिसमें नगर के अधिकारी को ‘नगरपति’ कहाँ जाता था।
- प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ‘ग्राम’ होती थी। ग्राम के अधिकारी को ‘ग्रामकूट’, ‘ग्रामपति’, ‘गावुण्ड’ आदि नामों से पुकारा जाता था। इस काल में एक ग्राम सभा भी होती थी, जिसमें ग्राम के प्रत्येक परिवार का सदस्य होता था। बता दें कि गाँव की समस्याओं का निवारण करना इन्हीं का प्रमुख कार्य था।
राष्ट्रकूट वंश का विस्तार धर्म:-
- राष्ट्रकूट शासकों के संरक्षण में हिंदू एवं जैन धर्म का अधिक विकास हुआ।
- उस समय हिंदू धर्म सर्वाधिक प्रचलित था और प्रारंभिक राष्ट्रकूट शासक हिंदू धर्म के अनुयायी थे तथा विष्णु एवं शिव की आराधना करते थ।
- राष्ट्रकूट शासक अपनी शासकीय मुद्राओं पर गरुढ़, शिव अथवा विष्णु के आयुधों का प्रयोग करते थे।
- राष्ट्रकूट वंश में हिंदू धर्म के साथ ही जैन धर्म का भी अधिक प्रचार-प्रसार हुआ।
- उस समय जैन घर्म को ‘राजकीय संरक्षण’ प्रदान था।
- राष्ट्रकूट शासक ‘अमोघवर्ष’ के समय में जैन धर्म का सर्वाधिक विकास हुआ।
- अमोघवर्ष के गुरु ‘जिनसेन’ जैन थे, जिन्होंने ‘आदि पुराण’ की रचना की थी।
- राष्ट्रकूट वंश के युवराज कृष्ण के अध्यापक ‘गुणभद्र’ प्रसिद्ध जैनाचार्य थे।
राष्ट्रकूट राजवंश की कला और वास्तुकला:-
यहां कुछ प्रसिद्ध राष्ट्रकूट वास्तुशिल्प चमत्कार हैं:
- एलोरा की गुफाएँ: यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल एलोरा की गुफाएँ बौद्ध, हिंदू और जैन चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिरों का एक अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करती हैं। भगवान शिव को समर्पित प्रसिद्ध कैलासा मंदिर इस परिसर का मुख्य आकर्षण है।
- एलीफेंटा गुफाएँ: मुंबई के पास एलीफेंटा द्वीप पर स्थित एलीफेंटा गुफाओं में जटिल मूर्तियों और नक्काशी के साथ चट्टान को काटकर बनाए गए मंदिर हैं। मुख्य गुफा में भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति है जिसे महेशमूर्ति के नाम से जाना जाता है।
- एलीफेंटा गुफाएं मुंबई के पास श्रीपुरी नामक एक द्वीप पर स्थित हैं (पहले इसका नाम श्रीपुरी था, लेकिन वहां के निवासी इसे घारापुरी कहते थे)।
- बाद में इसका नाम वहां रखी बड़ी हाथी की मूर्ति के नाम पर रखा गया।
- एलोरा गुफाओं और एलीफेंटा गुफाओं में समानताएं हैं जो कारीगरों की निरंतरता को प्रदर्शित करती हैं।
- एलीफेंटा गुफाओं के प्रवेश द्वार में विशाल द्वारपालक मूर्तियां शामिल हैं।
- गर्भगृह के चारों ओर प्राकार को घेरने वाली दीवार पर नटराज, गंगाधर, अर्धनारीश्वर, सोमस्कंद और त्रिमूर्ति की मूर्तियां हैं ।
- दिलवाड़ा के जैन मंदिर: इनका निर्माण 10वीं और 11वीं शताब्दी में हुआ था। राजस्थान के माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा मंदिर अपनी उत्कृष्ट संगमरमर शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध हैं। जैन तीर्थंकरों को समर्पित ये राष्ट्रकूट वंश के मंदिर जटिल नक्काशी और अलंकृत वास्तुकला का प्रदर्शन करते हैं।
- काशीविश्वेश्वर मंदिर: यह कर्नाटक के लक्कुंडी शहर में स्थित है। काशीविश्वेश्वर मंदिर राष्ट्रकूट वास्तुकला का एक उल्लेखनीय उदाहरण है। इसमें विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं को दर्शाती विस्तृत नक्काशी है।
- महादेव मंदिर, इटागी: कर्नाटक के इटागी में स्थित महादेव मंदिर राष्ट्रकूट वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है। यह अपने प्रभावशाली पैमाने, जटिल नक्काशी और सोपस्टोन के अनूठे उपयोग के लिए जाना जाता है।
- नवलिंग मंदिर, कुकनूर: कर्नाटक के कुकनूर में नवलिंग मंदिर भगवान शिव को समर्पित नौ मंदिरों का एक समूह है। प्रत्येक मंदिर में अद्वितीय डिजाइन और नक्काशी के साथ एक लिंग (भगवान शिव का प्रतीक) है।
- राष्ट्रकूट राजवंश के शासक अमोघवर्ष प्रथम या उनके पुत्र कृष्ण द्वितीय ने नौवीं शताब्दी में नवलिंग मंदिर परिसर का निर्माण कराया था ।
- कुक्कनूर वह शहर है जहाँ यह मंदिर स्थित है। यह भारतीय राज्य कर्नाटक के कोप्पल जिले में , इटागी के उत्तर में और गडग के पूर्व में स्थित है।
- दक्षिण भारत में नौ मंदिर समूह द्रविड़ स्थापत्य शैली में बनाए गए थे। इसका नाम , नवलिंग , एक लिंग की उपस्थिति से आता है , जो हिंदू धर्म में शिव का सामान्य प्रतिनिधित्व है ।
- कैलासनाथ मंदिर:
- कैलासनाथ मंदिर भारत के महाराष्ट्र में एलोरा गुफाओं में चट्टान को काटकर बनाया गया सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है ।
- राष्ट्रकूट शासन के दक्कन से दक्षिण भारत में फैलने के बाद , राजा कृष्ण प्रथम ने कैलासनाथ मंदिर परियोजना का निर्माण करवाया । कर्नाटक द्रविड़ स्थापत्य शैली को अपनाया गया।
- मुख्य मंदिर, प्रवेश द्वार, नंदी मंडप और चारों ओर प्रांगण वाला प्रांगण, मंदिर के चार प्रमुख घटक हैं ।
- कैलास मंदिर अपनी अद्भुत मूर्तियों के साथ एक वास्तुशिल्प आश्चर्य है। यह मूर्ति देवी दुर्गा द्वारा मारे जा रहे भैंस राक्षस को दर्शाती है।
- एक अन्य मूर्ति में रावण शिव के घर कैलास पर्वत को हटाने का प्रयास कर रहा था । दीवारों पर भी रामायण की तस्वीरें बनी हुई थीं। कैलास मंदिर में द्रविड़ शैली अधिक है ।
राष्ट्रकूट राजवंश का पतन:-
- राष्ट्रकूट वंश के सम्राट खोट्टिम अमोघवर्ष चतुर्थ (968-972) अपनी राजधानी की रक्षा में विफल रहे और उनके शासन ने इस वंश पर से लोगों का विश्वास उठा दिया।
- युद्ध में पतन के बाद सम्राट भागकर पश्चिमी घाटों में चले गए, जहां उनका वंश साहसी गंग और कदंब वंशों के सहयोग से तब तक गुमनाम जीवन व्यतीत करता रहा, जब तक तैलप प्रथम चालुक्य ने लगभग 975 में सत्ता संघर्ष में विजय नहीं प्राप्त कर ली।
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