मौर्योत्तर काल(200ईसा पूर्व- 300ईस्वी)
- मौर्योत्तर काल मौर्य साम्राज्य में 200 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी तक का काल है।
- इस काल में भारत में सिक्कों का निर्माण हुआ। मौर्योत्तर काल को सिक्का निर्माण काल भी कहा जाता है, यानी सिक्के का निर्माण इसी काल से शुरू हुआ।
- इस काल में सिक्के बनाने के लिए कई तकनीकों का इस्तेमाल किया गया जैसे पंचिंग तकनीक।
- मौर्य साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े हिस्से पर शासन किया, जिसमें आधुनिक अफ़गानिस्तान का कंधार भी शामिल है।
- मौर्य साम्राज्य का अंत लगभग 187 ईसा पूर्व हुआ।
- मौर्य साम्राज्य के विघटन के परिणामस्वरूप कई क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ और उसी समय, मध्य एशिया और पश्चिमी चीन के लोगों के विभिन्न समूहों ने भारत पर आक्रमण किया जो मौर्योत्तर काल का हिस्सा है।
- मौर्यों के पतन और गुप्तों के उदय (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी) के बीच की अवधि को मौर्योत्तर काल कहते हैं।
- दक्कन, मध्य भारत और पूर्वी भारत में, कई क्षेत्रीय शासकों जैसे शुंग, कण्व, कलिंग -चेदियों और सातवाहन वंश का उदय हुआ।
- मध्य एशिया की कई विदेशी शक्ति का आगमन हुआ। जैसे – इंडो -ग्रीक, शक, हिन्द पार्थियन और कुषाण।
साहित्यिक स्रोत (Literary Sources) :-
- पुराण (वायु और मत्स्य पुराण) – इससे पता चलता है कि शुगवंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग था।
- हर्षचरित – इसकी रचना बाणभट्ट ने की थी। इसमें अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की चर्चा है।
- पतंजलि का महाभाष्य – पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। इस ग्रंथ में यवनों के आक्रमण की चर्चा है।
- गार्गी संहिता – इसमें भी यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है।
- मालविकाग्निमित्र – यह कालिदास का नाटक है जिससे शुंगकालीन राजनीतिक गतिविधियों का ज्ञान प्राप्त होता है।
- दिव्यावदान – इसमें पुष्यमित्र शुंग को अशोक के 84,000 स्तूपों को तोड़ने वाला बताया गया है।
पुरातात्विक स्रोत(Archaeological Sources):-
- अयोध्या अभिलेख – इस अभिलेख को पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी धनदेव ने लिखवाया था। इसमें पुष्यमित्र शुंग द्वारा कराये गये दो अश्वमेध यज्ञ की चर्चा है।
- बेसनगर का अभिलेख – यह यवन राजदूत हेलियोडोरस का है जो गरुड़-स्तंभ के ऊपर खुदा हुआ है। इससे भागवत धर्म की लोकप्रियता सूचित होती है।
- भरहुत का लेख – इससे भी शुंगकाल के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
Leave a Reply