परिचय:
भारत सरकार देश के भीतर स्वतंत्र राज्यों के पक्ष में नहीं थी क्योंकि इससे पूरे देश की सुरक्षा बाधित होती। अंग्रेजों ने लंबे समय तक रियासतों पर शासन किया और राज्यों को जबरन हड़प लिया। स्वतंत्रता के समय, अंग्रेजों की वापसी के समय, उन्होंने पाकिस्तान और भारत के बीच एक विकल्प छोड़ा। चूंकि लगभग 565 से अधिक रियासतें हैं, इसलिए सभी राज्यों को अलग-अलग नियंत्रित करना काफी कठिन था।
उस समय, 1947 में भारत के स्वतंत्रता सेनानी सरदार वल्लभभाई पटेल ने विलय के लिए अनुकूल शर्तों का प्रस्ताव रखा और उन रियासतों के पास गए जो सेना के साथ संघ में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थे और भारत में शामिल होने के लिए सहमत हुए।
भारत के एकीकरण और इन रियासतों के भारतीय संघ में विलय की प्रक्रिया को समझने के लिए इस पर विस्तार से विचार करना आवश्यक है।
1. रियासतों की स्थिति स्वतंत्रता के समय:
- 1947 में भारत की स्वतंत्रता के समय, देश की एकता और अखंडता के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी इन देशी रियासतों का एकीकरण। ये रियासतें भारतीय भूभाग के बड़े हिस्से पर फैली हुई थीं, और कुछ रियासतों ने स्वतंत्र राष्ट्र बनने की इच्छा भी व्यक्त की थी। ब्रिटिश सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि स्वतंत्रता के बाद ये रियासतें स्वतंत्र होंगी और वे भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय स्वयं ले सकती हैं।
2. सरदार वल्लभभाई पटेल और वी.पी. मेनन का नेतृत्व:
- देशी रियासतों के एकीकरण का कार्यभार तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल और उनके सचिव वी.पी. मेनन ने संभाला। पटेल और मेनन ने समझा कि भारत की एकता और सुरक्षा के लिए इन रियासतों का एकीकरण अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने इन रियासतों के शासकों को समझाने और उन्हें भारतीय संघ में शामिल करने के लिए कूटनीतिक और सामरिक उपायों का उपयोग किया।
3. माउंटबेटन योजना और रियासतों का विकल्प:
- लॉर्ड माउंटबेटन की योजना के अनुसार, देशी रियासतों को तीन विकल्प दिए गए थे:
- भारत में शामिल होना
- पाकिस्तान में शामिल होना
- स्वतंत्र रहना
- सरदार पटेल और वी.पी. मेनन ने जोर देकर कहा कि भारत के भौगोलिक और राजनीतिक एकता के लिए रियासतों का भारतीय संघ में शामिल होना आवश्यक है। उन्होंने रियासतों के शासकों को ‘विलय पत्र’ (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित किया।
4. विलय की प्रक्रिया:
- अधिकांश रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय संघ में शामिल होने का निर्णय लिया। पटेल और मेनन ने व्यक्तिगत रूप से शासकों से बातचीत की और उन्हें भारतीय संघ में शामिल होने के लिए राजी किया।
- कुछ रियासतों, जैसे जोधपुर, हैदराबाद, जूनागढ़, और जम्मू-कश्मीर इत्यादि ने शुरुआत में भारतीय संघ में शामिल होने से इनकार कर दिया या विलंब किया। इन रियासतों के साथ भारतीय सरकार ने कूटनीति और बल प्रयोग का संयोजन कर उन्हें संघ में शामिल किया।
i. जोधपुर | Jodhpur
- जोधपुर के राजा को भारत के साथ गठबंधन करने का आग्रह करने के लिए, पड़ोसी राज्य बीकानेर के दीवान को नियुक्त किया गया था।
- नतीजतन, जोधपुर और विलय के साधन पर हस्ताक्षर किए गए।
ii. भोपाल | Bhopal
- लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के संघ में किसी भी एकीकरण को रोकने का प्रयास किया, भोपाल के नवाब से यह तर्क देकर कि हिंदू-प्रभुत्व वाले प्रांत में मुसलमानों के हितों को संकट में डाल दिया जाएगा, पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा।
- हालांकि, भोपाल के नागरिकों को यह समझ में आ गया था कि यह केवल नवाब को राज्य के नियंत्रण में रखने के लिए किया जा रहा था और इसका किसी भी समुदाय के वास्तविक हितों से बहुत कम लेना-देना था।
- इस प्रकार भारत के साथ विलय के दस्तावेज पर नवाब द्वारा हस्ताक्षर किए जाने की आवश्यकता थी।
iii. त्रावणकोर | Travancore
- त्रावणकोर (केरल) के पास पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन भंडार माना जाता था, जिससे यह विश्वास हुआ कि यह स्वतंत्र रूप से रह सकता है।
- परिणामस्वरूप, यह अपनी स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता था।
- जवाहरलाल नेहरू ने त्रावणकोर के दीवान, सी. पी. रामास्वामी अय्यर को समझाने की कोशिश की, लेकिन जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिल्ली में आमंत्रित किए जाने के बावजूद उन्होंने विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
- इसके अतिरिक्त, सी.पी. कम्युनिस्ट विरोधी रुख ने उन्हें राज्य के कम्युनिस्टों के साथ अलोकप्रिय बना दिया।
- 25 जुलाई, 1947 को सी.पी. को हत्या के प्रयास का सामना करना पड़ा।
- त्रावणकोर के राजा को उनके अस्पताल के बिस्तर से भारत में शामिल होने की उनकी सिफारिश के परिणामस्वरूप विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए गए थे।
iv. जूनागढ़:
- जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में शामिल होने का निर्णय लिया, जबकि रियासत की जनता ने भारत में विलय का समर्थन किया। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय सेना ने हस्तक्षेप किया और नवाब को पाकिस्तान भागने पर मजबूर किया। इसके बाद जूनागढ़ का भारत में विलय हो गया।
v. हैदराबाद:
- हैदराबाद के निज़ाम ने स्वतंत्र रहने की इच्छा व्यक्त की और भारतीय संघ में शामिल होने से इनकार कर दिया। इसके जवाब में, भारतीय सरकार ने ‘ऑपरेशन पोलो’ शुरू किया और भारतीय सेना ने हैदराबाद में प्रवेश किया। 13 सितंबर 1948 को, हैदराबाद का भारत में विलय हो गया।
vi. जम्मू-कश्मीर:
- जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्र रहने का निर्णय लिया था। लेकिन अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान समर्थित कबीलों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया। महाराजा ने भारतीय सहायता की मांग की और विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद, भारतीय सेना ने पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के खिलाफ अभियान चलाया, और जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ।
5. राज्यों का पुनर्गठन:
- विलय के बाद, भारत सरकार ने इन रियासतों को भारतीय संघ के राज्यों में पुनर्गठित किया। 1956 में ‘राज्यों का पुनर्गठन अधिनियम’ के तहत भाषाई और प्रशासनिक आधार पर राज्यों की सीमाओं को पुन: निर्धारित किया गया। इससे भारतीय संघ की प्रशासनिक व्यवस्था अधिक संगठित और मजबूत हुई।
6. प्रभाव और परिणाम:
- देशी रियासतों के एकीकरण ने भारत की एकता और अखंडता को सुनिश्चित किया। इसके बिना भारत एक बिखरा हुआ, कमजोर और अस्थिर राष्ट्र बन सकता था। इस एकीकरण ने भारतीय संघ को एक मजबूत, स्थिर और संगठित देश बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सरदार पटेल की इस भूमिका के कारण उन्हें ‘लौह पुरुष’ और ‘भारत के बिस्मार्क’ की उपाधि दी गई। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश भाग को एकजुट कर भारत को एक सशक्त और एकीकृत राष्ट्र बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई।
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