सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन परिचय
- सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 नडियाद, गुजरात में हुआ था।
- उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल और माता का नाम लाडबा देवी था।
- उनकी शिक्षा नाडियाड हाई स्कूल जहां से उन्होंने 1897 में मैट्रिक पास किया।
- उन्होंने बाद में लंदन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की और भारत आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे और इसमें उन्हें बड़ी सफलता मिली।
- ये वो दौर था जब पूरे देशभर में स्वतंत्रता के लिए आंदोलन चल रहे थे। वहीं इन आंदोलनों में महात्मा गांधी की मुख्य भूमिका थी।
- सरदार पटेल महात्मा गांधी से बहुत प्रेरित थे। यही कारण था कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।
- देश को आजादी दिलाने और आजादी के बाद देश का शासन सुचारु रुप से चलाने में सरदार पटेल का विशेष योगदान रहा है।
- वर्ष 1917 में भारत में प्लेग और 1918 में अकाल जैसी आपदाएँ भी आईं और दोनों ही मौकों पर सरदार पटेल ने संकट निवारण के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।
- वर्ष 1917 में उन्हें ‘गुजरात सभा’ का सचिव चुना गया, जो एक राजनीतिक संस्था थी, जिसने गांधीजी को उनके अभियानों में बहुत मदद की थी।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भूमिका:-
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान को इस प्रकार देखा जा सकता है: खेड़ा सत्याग्रह, 1917
- गुजरात के खेड़ा जिले में एक प्रमुख स्थानीय नेता के रूप में, सरदार पटेल ने सत्याग्रह को संगठित और नेतृत्व करने में महात्मा गांधी को सक्रिय रूप से समर्थन और सहायता प्रदान की।
- सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान से स्थानीय समुदाय को सशक्त नेतृत्व और दिशा प्रदान की और भूमि राजस्व पर ब्रिटिश द्वारा आरोपित अनुचित कर के विरोध में सम्मिलित होने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया।
- उन्होंने विरोध के लिए समर्थन जुटाने के लिए बैठकें, रैलियां और अन्य प्रकार की सार्वजनिक भागीदारी का आयोजन किया।
- उन्होंने किसानों के मुद्दों का शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाधान खोजने के लिए सरकारी अधिकारियों के साथ बातचीत की।
असहयोग आंदोलन, 1920-22
- सरदार पटेल की असहयोग आंदोलन में सक्रिय भागीदारी वास्तव में महत्वपूर्ण थी और उन्होंने अहमदाबाद और गुजरात में स्वतंत्रता संग्राम पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा।
- सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान से असहयोग आंदोलन के लिए लगभग 300,000 सदस्यों को भर्ती किया और 1.5 मिलियन रुपये एकत्रित किये।
- उन्होंने इस क्षेत्र में ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ विरोध के
- प्रतीकात्मक कार्य के रूप में ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं को जलाने के लिए अलाव का आयोजन भी किया।
- सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान से आर्थिक और सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता के प्रतीक के रूप में खादी के उपयोग की वकालत की।
बारडोली सत्याग्रह, 1928
- बारडोली सत्याग्रह में सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान के कारण उन्हें लोकप्रिय उपनाम ‘सरदार’ मिला, जिसका अर्थ है ‘नेता’ या ‘प्रमुख’।
- बारडोली सत्याग्रह के दौरान, सरदार पटेल बारडोली के लोगों के साथ एकजुटता से खड़े थे, जो अंग्रेजों द्वारा लगाए गए भूमि करों के बोझ के साथ-साथ अकाल के विनाशकारी प्रभावों से पीड़ित थे।
- भोजन की कमी और उच्च करों के दोहरे संकट ने स्थानीय आबादी को भारी कठिनाइयों का कारण बना दिया था।
- ग्रामीण प्रतिनिधियों के साथ चर्चा करने और लोगों द्वारा सामना किए जा रहे मुद्दों की गहन समझ प्राप्त करने के पश्चात्, सरदार पटेल ने विद्रोह शुरू किया।
- बारडोली सत्याग्रह की केंद्रीय रणनीति ब्रिटिश को कर भुगतान का पूर्ण रूप से अस्वीकार करना था। यह अहिंसक प्रतिरोध इतना प्रभावी था कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण प्रकरण के रूप में चिह्नित हुआ।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व
- सरदार पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के एक सक्रिय और प्रभावशाली सदस्य थे। उन्होंने कांग्रेस के अंदर विभिन्न नेतृत्वकारी भूमिकाएँ निभाईं और कई स्वतंत्रता आंदोलन गतिविधियों में भाग लिया।
- उन्होंने 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 46वें सत्र (कराची सत्र) की अध्यक्षता की, जिसे गांधी-इरविन पैक्ट की पुष्टि के लिए बुलाया गया था।
- यह सत्र मौलिक अधिकारों के प्रस्ताव को पारित करने के लिए जाना जाता है।
- 1934 में, उन्होंने केंद्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष की भूमिका संभाली।
सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930-34
- पटेल ने सक्रिय रूप से नमक सत्याग्रह में भाग लिया, जो नमक उत्पादन और वितरण पर ब्रिटिश एकाधिकार के खिलाफ एक अहिंसक विरोध था।
- दांडी यात्रा के बाद गांधी और पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया और सरदार पटेल पर मुकदमा चलाया गया।
- आंदोलन के दौरान, पटेल ने ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार, करों का भुगतान करने से अस्वीकृत और अहिंसक विरोध एवं हड़तालों को बढ़ावा दिया।
- उन्होंने व्यक्तिगत अवज्ञा की वकालत करने में गांधी के साथ स्वयं को जोड़ा और परिणामस्वरूप, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और लगभग 9 महीने के लिए जेल की सजा सुनाई गई।
भारत छोड़ो आंदोलन, 1942
- 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों के आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सरदार पटेल ने पूरे भारत में प्रभावशाली भाषण दिए, लोगों को बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों में सम्मिलित होने, सविनय अवज्ञा के आंदोलनों में शामिल होने, कर भुगतान का बहिष्कार करने और सिविल सेवा बंद करने के लिए प्रेरित एवं संगठित किया।
- उन्होंने आंदोलन का समर्थन करने के लिए धन संग्रहण वाले अभियानों का नेतृत्व करने के साथ-साथ राष्ट्रीय नेताओं को गिरफ्तारी से बचाने के लिए रणनीतियों को लागू किया।
रियासतों का एकीकरण:
- देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार वल्लभ भाई पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री बने।
- 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण किया।
- उड़ीसा से 23, नागपुर से 38, काठियावाड़ से 250 तथा मुंबई, पंजाब जैसे 562 रियासतों को भारत में मिलाया ।
- जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ तथा हैदराबाद राज्य को छोड़कर सरदार पटेल ने सभी रियासतों को भारत में मिला लिया था।
- इन तीनों रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवंबर 1947 को भारतीय संघ में मिला लिया गया और जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया ।
- हैदराबाद, भारत की सबसे बड़ी रियासत थी । वहाँ के निजाम ने पाकिस्तान के प्रोत्साहन से स्वतंत्र राज्य का दावा किया और अपनी सेना बढ़ाने लगा । हैदराबाद में काफी मात्रा में हथियारों के आयात से सरदार पटेल चिंतित हो गए । अतः 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद में प्रवेश कर गई । 3 दिन बाद निजाम ने आत्मसमर्पण कर भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया ।
मृत्यु:-
- उनकी 15 दिसंबर 1950 को बंबई में मृत्यु हो गई।
सम्मान और प्रशंसा:-
- भारत के लौह पुरुष: – भारत की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने में उनकी अद्वितीय भूमिका के लिए उन्हें “भारत के लौह पुरुष” की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
- भारत रत्न: – 1991 में, उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया।
- राष्ट्रीय एकता दिवस:- 2014 में, भारत सरकार ने सरदार पटेल की जयंती पर राष्ट्रीय एकता दिवस मनाने की शुरुआत की।
- स्टैच्यू ऑफ यूनिटी: – सरदार पटेल की एक विशाल प्रतिमा 31 अक्टूबर, 2018 को गुजरात के केवडिया में उनकी 143वीं जयंती के अवसर पर अनावरण किया गया था। इस प्रतिमा को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के रूप में जाना जाता है और यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा होने का दावा करती है।
- सरदार सरोवर बांध: – गुजरात में नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध का नाम उनके सम्मान में रखा गया है।
- सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी: – हैदराबाद में स्थित पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए यह प्रतिष्ठित संस्थान सरदार पटेल के नाम पर है।
‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’
- ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ (Statue of Unity) अखंड भारत के निर्माता तथा भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री व प्रथम गृहमंत्री “सरदार वल्लभ भाई पटेल” को समर्पित एक स्मारक है। ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ (Statue of Unity) को गुजरात राज्य के नर्मदा जिले के केवड़िया में ‘सरदार सरोवर बांध’ के निकट स्थापित किया गया है। जिसकी कुल ऊंचाई ‘182 मीटर’ (597 फीट) हैं। वहीं इसके बाद विश्व की दूसरी सबसे ऊँची प्रतिमा चीन में ‘स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध’ की है, जिसकी कुल ऊंचाई 153 मीटर (502 फीट) हैं।
- ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ (Statue of Unity) का कुल वजन 1700 टन है। जिसमें पैर की ऊंचाई 80 फीट, हाथ की 70 फीट, कंधे की 140 फीट और चेहरे की ऊंचाई 70 फीट है। वहीं इस भव्य मूर्ति के भीतर एक लाइब्रेरी भी है, जहां पर ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल‘ से जुड़े हुए इतिहास को दर्शाया गया है।
- ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ (Statue of Unity) की आधारशिला वर्ष 2014 में भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिवस की 138वीं वर्षगांठ पर रखी गई थी। वहीं ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ (Statue of Unity) का उद्घाटन वर्ष 2018 में सरदार पटेल की 142वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी’ के द्वारा किया गया था। इसके बाद से ही यह स्थल दुनिया में पर्टयन का विशेष केंद्र बना हुआ है।
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