- भारत में पुर्तगाली शक्ति के पतन के कारणों में कई कारक शामिल हैं, जिनमें नौसैनिक प्रतिस्पर्धा, स्थानीय प्रतिरोध और आर्थिक चुनौतियाँ शामिल हैं।
- पुर्तगाली 15वीं शताब्दी के अंत में भारत आने वाले पहले यूरोपीय लोगों में से थे, जिनका नेतृत्व 1498 में वास्को दा गामा ने किया था।
- वे मसाला व्यापार पर एकाधिकार स्थापित करने के उद्देश्य से आए थे और बाद में उन्होंने भारत के पश्चिमी तट पर कई व्यापारिक चौकियाँ और किले स्थापित किए।
- पुर्तगाल के राजा हेनरी ने प्रशिक्षण और अनुसंधान संगठनों की स्थापना करके समुद्री नौवहन को बढ़ावा दिया।
- पुर्तगाली अफ्रीका के सभी तटों पर नौकायन करने वाले पहले व्यक्ति थे।
- वास्को दा गामा 1497 में राजा इमैनुएल के समर्थन से एक गुजराती पायलट अब्दुल मजीद के मार्गदर्शन में रवाना हुए और 21 मई, 1498 को कालीकट में उतरे और भारत के लिए समुद्री मार्ग की खोज की गई।
- वे भारत आने वाले पहले यूरोपीय लोगों में से थे और जाने वाले आखिरी।
- कालीकट के ज़मोरिन, मन विक्रम ने वास्को-दा-गामा का गर्मजोशी से स्वागत किया।
- पुर्तगालियों के अधीन तीन जहाजों के प्रवेश ने भारतीय इतिहास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।
- पुर्तगाली 1505 से 1961 तक भारत में रहे।
- पुर्तगाली शक्ति भारत आने वाली पहली यूरोपीय शक्ति थी और 1961 ई. में वापस लौटने वाली अंतिम शक्ति भी थी, जब भारत सरकार ने उनसे गोवा, दमन और दीव पर कब्ज़ा कर लिया था।
- हालाँकि उनका शासन ब्रिटिश साम्राज्य से ज़्यादा समय तक चला, लेकिन इसका अपने क्षेत्रों के बाहर बहुत कम प्रभाव था।
पुर्तगालियों के पतन के कारण
1.खोया हुआ व्यावसायिक प्रभाव:-
- व्यावसायिक प्रभाव का ह्रास:- 18वीं शताब्दी तक, पुर्तगालियों ने भारत में अपना व्यापारिक प्रभाव काफी हद तक खो दिया था। व्यापारिक प्रभुत्व में गिरावट के कारण उनका प्रभाव धीरे-धीरे कम हो गया।
- शक्तिशाली राजवंशों और मराठों का उदय:- उत्तर भारत में शक्तिशाली राजवंशों के आगमन और मराठों के एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरने से भारत में पुर्तगालियों की स्थिति कमजोर हो गई। मराठों के निकट पड़ोसी होने के कारण पुर्तगालियों का प्रभाव और भी कम हो गया।
- साल्सेट और बेसीन पर मराठों का कब्जा: –1739 में, मराठों ने पुर्तगालियों से साल्सेट और बेसीन पर कब्जा कर लिया, जिससे उनके क्षेत्रीय और व्यापारिक प्रभाव में और गिरावट आई। यह घटना पुर्तगालियों के ह्रास का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी।
- व्यापारिक अव्यवस्था और अनैतिकता:- पुर्तगालियों की व्यापारिक रणनीतियों में गिरावट आई, जिससे कई लोग स्वतंत्र रूप से व्यापार करने लगे। कुछ लोग चोरी और डकैती की ओर भी मुड़ गए। उनकी अनैतिक व्यापारिक नीतियों के कारण स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनका विरोध बढ़ा, जिससे उनका व्यावसायिक प्रभाव और कमजोर हो गया।
2. धार्मिक अत्याचार:-
- धार्मिक नीतियों और राजनीतिक चिंताएं:- जेसुइट्स की गतिविधियों जैसी पुर्तगालियों की धार्मिक नीतियों ने राजनीतिक चिंताओं को जन्म दिया। उनकी धार्मिक हस्तक्षेपों से स्थानीय शासकों और जनसाधारण के बीच असंतोष बढ़ा।
- अंतर-विवाह की अवधारणा:- पुर्तगालियों ने अंतर-विवाह की अवधारणा को बढ़ावा दिया, जिससे स्थानीय सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं में टकराव हुआ। इस नीति ने समाज में धार्मिक और सामाजिक तनाव को बढ़ाया।
- हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़:- पुर्तगालियों ने हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की, जिससे हिंदू समुदाय के बीच गहरा आक्रोश फैला। उनकी यह नीति धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक बनी और स्थानीय लोगों के बीच विद्रोह की भावना को जन्म दिया।
- मुस्लिम विरोधी भावना का उभार:- पुर्तगालियों ने मुस्लिम विरोधी भावना को भड़काया, जिससे धार्मिक विभाजन और अधिक गहरा हुआ। उनके इस रवैये से हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव और संघर्ष बढ़ा।
- जबरन धर्म परिवर्तन:- पुर्तगालियों द्वारा ईसाई धर्म में जबरन धर्म परिवर्तन की रणनीति से स्थानीय लोग बेहद नाराज थे। उनकी इस नीति ने धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन और व्यापक असंतोष को जन्म दिया, जिससे उनके प्रति विरोध बढ़ता गया।
3. पश्चिम का प्रभाव:-
- ब्राजील की खोज और पश्चिम पर केंद्रित रणनीतियां:- ब्राजील की खोज के बाद, पुर्तगाल की उपनिवेशीकरण रणनीतियां पश्चिम पर अधिक केंद्रित हो गईं। इस बदलाव ने भारत में पुर्तगालियों के हितों को कम प्राथमिकता दी और उनकी उपस्थिति कमजोर हो गई।
- स्पेन द्वारा पुर्तगाल पर कब्जा और एकीकरण:- 1580-81 में स्पेन द्वारा पुर्तगाल पर कब्जा और दोनों राज्यों (स्पेन और पुर्तगाल) के एकीकरण ने पुर्तगाल की राजनीतिक और वाणिज्यिक स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया। इस एकीकरण के परिणामस्वरूप भारत में पुर्तगाल के हितों की उपेक्षा होने लगी।
- समुद्री मार्ग पर एकाधिकार का अंत:- भारत के समुद्री मार्ग पर पुर्तगालियों का एकाधिकार अनिश्चितकालीन नहीं था। डच और अंग्रेजों ने समुद्री नौवहन क्षमताएं हासिल कर लीं, और जल्द ही कई व्यापारिक कंपनियां भारत आ गईं, जिससे पुर्तगालियों का प्रभाव कम होने लगा।
- नए प्रतिद्वंद्वियों का उभरना:- पुर्तगालियों को अपने से ज़्यादा प्रभावशाली और संसाधन संपन्न नए प्रतिद्वंद्वियों (डच और अंग्रेज) के आगे झुकना पड़ा। इन नए प्रतिद्वंद्वियों के पास मज़बूत नौसेना और अधिक संसाधन थे, जो पुर्तगालियों के लिए एक गंभीर ख़तरा साबित हुए।
- भारत में पुर्तगालियों का ह्रास:- डच और अंग्रेजों ने पुर्तगाली विरोध को सफलतापूर्वक मात दी और भारत में उनके कब्जों पर कब्जा कर लिया। इस प्रक्रिया ने भारत में पुर्तगालियों के व्यापारिक और राजनीतिक प्रभाव को लगभग समाप्त कर दिया।
4. दोषपूर्ण शासन प्रणाली:-
- अल्फोंजो-डी-अल्बुकर्क का प्रभावशाली शासन:- भारत में सबसे प्रभावशाली पुर्तगाली वायसराय अल्फोंजो-डी-अल्बुकर्क था। उसके शासनकाल में पुर्तगाली प्रशासन प्रभावी और सशक्त था, लेकिन उसके बाद पुर्तगाली प्रशासन कमजोर होने लगा।
- उत्तराधिकारियों की अप्रभावीता:- अल्बुकर्क के उत्तराधिकारियों ने भारत में पुर्तगाली प्रशासन को मजबूत रखने में असफलता पाई। उनके शासन की कमज़ोरी और अप्रभावीता के कारण प्रशासनिक ढांचा ढहने लगा।
- अधिकारियों की अनदेखी और भ्रष्टाचार:- भारतीय सरकार ने पुर्तगाली अधिकारियों की अनदेखी की और उनके वेतन को कम रखा। इस कारण, पुर्तगाली अधिकारी रिश्वतखोरी और धोखाधड़ी में लिप्त हो गए। वे अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए ही काम करने लगे और प्रशासनिक जिम्मेदारियों की उपेक्षा की।
- धन लोलुपता और अत्याचार:- पुर्तगाली अधिकारी धन के प्रति लालची हो गए और उनके कार्यों में अहंकार और अत्याचार बढ़ गया। वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगे, जिससे प्रशासनिक व्यवस्था और भी कमजोर हो गई।
- अनुशासनहीनता और प्रतिस्पर्धा:- भारत में डच, फ्रांसीसी, और ब्रिटिश लोगों के आगमन से पुर्तगाली शक्ति का पतन सुनिश्चित हुआ। इन देशों के अधिकारी पुर्तगालियों की तुलना में अधिक अनुशासित, योग्य और कूटनीतिज्ञ थे, जिससे पुर्तगाली शासन प्रणाली और भी कमजोर पड़ गई।
5. विजयनगर साम्राज्य का पतन:-
- विजयनगर साम्राज्य और पुर्तगालियों के संबंध:- पुर्तगालियों के विजयनगर साम्राज्य के साथ अच्छे संबंध थे। इन संबंधों ने पुर्तगालियों को दक्षिण भारत में व्यापार और राजनीतिक समर्थन प्राप्त करने में सहायता की।
- तालीकोटा के युद्ध का प्रभाव:- तालीकोटा के युद्ध (1565) के दौरान विजयनगर साम्राज्य की हार हुई। इस हार ने दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य की शक्ति को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया।
- विजयनगर साम्राज्य के पतन का असर:- विजयनगर साम्राज्य के पतन के साथ ही भारत में पुर्तगाली प्रभाव भी कम हो गया। विजयनगर साम्राज्य के पतन ने पुर्तगालियों के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और व्यापारिक साझेदार को समाप्त कर दिया, जिससे उनका प्रभाव क्षेत्र भी सीमित हो गया।
6. कमज़ोर सैन्य और अनुशासन:-
- कमज़ोर सैन्य संरचना:- पुर्तगाल की साम्राज्यवादी नीति का आधार मजबूत नहीं था। उनके पास एक प्रभावी थल सेना का अभाव था, जिससे वे कब्जे वाले क्षेत्रों पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित नहीं कर सके। इस कमी के कारण उनके साम्राज्य की स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
- शक्तिशाली नौसेना का अभाव:- पुर्तगालियों के पास एक शक्तिशाली नौसेना का भी अभाव था। जब अंग्रेज और डच नौसेनाएं उभरीं, तो पुर्तगाली उनके सामने टिक नहीं सके। इसने पुर्तगालियों के समुद्री व्यापार और सामरिक स्थिति को कमजोर कर दिया।
- अत्याचारी प्रतिशोध की नीति:- पुर्तगालियों के संबंध अत्याचारी प्रतिशोध की नीति पर आधारित थे। वास्को दा गामा, कैब्राल, और अन्य पुर्तगाली अधिकारियों ने स्थानीय शासकों को उकसाया और अपमानित किया, जिससे स्थानीय लोगों में असंतोष और विद्रोह की भावना बढ़ी।
- अनुशासनहीनता और प्रभाव का ह्रास:- पुर्तगाली अधिकारियों की अनुशासनहीनता और अत्याचारी रवैये ने उनके प्रभाव को और कमजोर कर दिया। उनके कठोर और असंवेदनशील व्यवहार के कारण स्थानीय समर्थन खोने लगा, जिससे उनका सैन्य और राजनीतिक प्रभाव तेजी से घटता गया।
7. भ्रष्ट व्यापार नीति और नैतिक पतन:-
- व्यापार पर एकाधिकार की इच्छा:- पुर्तगाली व्यापारियों का उद्देश्य भारत में व्यापार पर अपना एकाधिकार स्थापित करना था। वे प्रतिस्पर्धा और संयुक्त स्टॉक कंपनियों की स्थापना के खिलाफ थे, जिससे अन्य व्यापारिक शक्तियों के साथ संघर्ष हुआ।
- राज्य नियंत्रित व्यापार:- पुर्तगाली व्यापार राज्य द्वारा शुरू और नियंत्रित किया जाता था, जिसके कारण पुर्तगाली अधिकारी व्यापारिक गतिविधियों की बजाय अपने व्यक्तिगत लाभ पर अधिक ध्यान केंद्रित करते थे। इससे व्यापार नीति में भ्रष्टाचार और अनैतिकता बढ़ी।
- महत्वाकांक्षा और देशभक्ति का पतन:- जब पुर्तगाली भारत पहुंचे, तो उनमें महत्वाकांक्षा और देशभक्ति की भावना बहुत प्रबल थी। हालांकि, समय के साथ ये गुण धीरे-धीरे कम होते गए, और व्यापारिक नैतिकता का पतन शुरू हो गया।
- समुद्री लूट और हिंसा:- पुर्तगाली नाविक अपनी शक्ति के अहंकार में समुद्र तट पर अन्य जहाजों को लूटते थे और नागरिकों को परेशान करते थे। इस आक्रामक व्यवहार के परिणामस्वरूप पुर्तगाल के साथ अन्य व्यापारियों का व्यापार बंद हो गया, जिससे उनका व्यापारिक प्रभाव और भी कमजोर हो गया।
8. दक्षिण में मुगल साम्राज्य का विस्तार:-
- मालाबार तट पर पुर्तगालियों की सत्ता स्थापना:- जब पुर्तगाली मालाबार तट पर आए, तो उस समय वहां छोटे-छोटे राज्य थे। इन राज्यों के आपसी झगड़ों का फायदा उठाकर पुर्तगालियों ने अपनी सत्ता स्थापित कर ली।
- दक्षिण में मुगल साम्राज्य का विस्तार: – दक्षिण भारत में मुगल साम्राज्य के विस्तार के साथ ही पुर्तगालियों की स्थिति कमजोर हो गई। स्थानीय विवादों से उन्हें अब कोई लाभ नहीं मिल सकता था, क्योंकि मुगल साम्राज्य ने क्षेत्र में अपनी शक्ति मजबूत कर ली थी।
- शाहजहाँ द्वारा पुर्तगालियों को दण्डित करना:- मुगल सम्राट शाहजहाँ ने पुर्तगालियों के खिलाफ कार्रवाई की और उनसे हुबली को छीन लिया। यह घटना उनके प्रभाव में और गिरावट का संकेत थी।
- मराठा शक्ति का उदय और प्रभाव:- इस समय, मराठा शक्ति के उदय ने पश्चिमी तट पर पुर्तगालियों के विस्तार को रोक दिया। मराठों की बढ़ती शक्ति ने पुर्तगालियों के लिए दक्षिण भारत में अपना प्रभुत्व बनाए रखना और भी कठिन बना दिया।
- सैन्य संघर्षों, आर्थिक चुनौतियों, आंतरिक भ्रष्टाचार, स्थानीय समर्थन की कमी और अंग्रेजों के उदय के कारण पुर्तगाली भारत में खुद को स्थापित करने में विफल रहे।
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